टोडी महला ५ ॥ साधसंगि हरि हरि नामु चितारा ॥ सहजि अनंदु होवै दिनु राती अंकुरु भलो हमारा ॥ रहाउ ॥ गुरु पूरा भेटिओ बडभागी जा को अंतु न पारावारा ॥ करु गहि काढि लीओ जनु अपुना बिखु सागर संसारा ॥१॥ जनम मरन काटे गुर बचनी बहुड़ि न संकट दुआरा ॥ नानक सरनि गही सुआमी की पुनह पुनह नमसकारा ॥२॥९॥२८॥
हे भाई! जो मनुख गुरु की सांगत में टिक के परमात्मा का नाम सिमरन करता रहता है (उस के अन्दर आत्मिक अदोलता पैदा हो जाती है, उस) आत्मिक अदोलता के कारण (उस के अन्दर) दिन रात (हर समय) आनंद बना रहता है। ( हे भाई! साध संगरकी बरकत से) हम जीवों के पिछले किये कर्मो का भला अंगूर फूट पड़ता है। हे भाई! जिस परमात्मा के गुणों का अंत नहीं पाया जा सकता, जिस की हस्ती का आर पार का किनारा नहीं मिल सकता, वह परमात्मा अपने सेवक को (उसका) हाथ पकड़ के खाली संसार समुन्दर से बहार निकाल लेता है, (जिस सेवक को) बड़ी किस्मत से पूरा गुरु प्राप्त होता है ।१। हे भाई! गुरू के बचनों पर चलने से जनम-मरण में डालने वाली फाहियां कट जाती हैं, कष्टों भरे चौरासी के चक्करों का दरवाजा दोबारा नहीं देखना पड़ता। हे नानक! (कह– हे भाई! गुरू की संगति की बरकति से) मैंने भी मालिक-प्रभू का आसरा लिया है, मैं (उसके दर पर) बार बार सिर निवाता हूँ।2।9।27।