धनासरी महला ५ घरु १२ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बंदना हरि बंदना गुण गावहु गोपाल राइ ॥ रहाउ ॥ वडै भागि भेटे गुरदेवा ॥ कोटि पराध मिटे हरि सेवा ॥१॥ चरन कमल जा का मनु रापै ॥ सोग अगनि तिसु जन न बिआपै ॥२॥ सागरु तरिआ साधू संगे ॥ निरभउ नामु जपहु हरि रंगे ॥३॥ पर धन दोख किछु पाप न फेड़े ॥ जम जंदारु न आवै नेड़े ॥४॥ त्रिसना अगनि प्रभि आपि बुझाई ॥ नानक उधरे प्रभ सरणाई ॥५॥१॥५५॥
अर्थ :राग धनासरी, घर १२ में गुरू अर्जन देव जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है हे भाई! परमात्मा को सदा नमस्कार करा करो, प्रभू पातिश़ाह के गुण गाते रहो ॥ रहाउ ॥ हे भाई! जिस मनुष्य को बड़ी किस्मत से गुरू मिल जाता है, (गुरू के द्वारा) परमात्मा की सेवा-भगती करने से उस के करोड़ों पाप मिट जाते हैं ॥१॥ हे भाई! जिस मनुष्य का मन परमात्मा के सुंदर चरणों (के प्रेम-रंग) में रंग जाता है, उस मनुष्य ऊपर चिंता की आग ज़ोर नहीं पा सकती ॥२॥ हे भाई! गुरू की संगत में (नाम जपने की बरकत से) संसार-समुँद्र से पार निकल जाते हैं। प्रेम से निरभउ प्रभू का नाम जपा करो ॥३॥ हे भाई! (सिमरन का सदका) पराए धन (आदि) के कोई अैब पाप मंदे कर्म नहीं होते, भयानक यम भी नज़दीक नहीं आते (मौत का डर नहीं लगता, आत्मिक मौत नज़दीक़ नहीं आती ॥४॥ हे भाई! (जो मनुष्य प्रभू के गुण गाते हैं) उन की तृष्णा की आग प्रभू ने आप बुझा दी है। हे नानक जी! प्रभू की श़रण पड़ कर (अनेकों जीव तृष्णा की आग में से) बच निकलते हैं ॥५॥१॥५५॥