वडहंसु महला ३ ॥ गुरमुखि सभु वापारु भला जे सहजे कीजै राम ॥ अनदिनु नामु वखाणीऐ लाहा हरि रसु पीजै राम ॥ लाहा हरि रसु लीजै हरि रावीजै अनदिनु नामु वखाणै ॥ गुण संग्रहि अवगण विकणहि आपै आपु पछाणै ॥ गुरमति पाई वडी वडिआई सचै सबदि रसु पीजै ॥ नानक हरि की भगति निराली गुरमुखि विरलै कीजै ॥१॥ गुरमुखि खेती हरि अंतरि बीजीऐ हरि लीजै सरीरि जमाए राम ॥ आपणे घर अंदरि रसु भुंचु तू लाहा लै परथाए राम ॥ लाहा परथाए हरि मंनि वसाए धनु खेती वापारा ॥ हरि नामु धिआए मंनि वसाए बूझै गुर बीचारा ॥ मनमुख खेती वणजु करि थाके त्रिसना भुख न जाए ॥ नानक नामु बीजि मन अंदरि सचै सबदि सुभाए ॥२॥
अर्थ :-हे भाई ! अगर गुरु के द्वारा आत्मिक अढ़ोलता में टिक के (हरि-नाम का) व्यापार किया जाए, तो यह सारा व्यापार मनुख के लिए भला होता है । हे भाई ! परमात्मा का नाम हर समय उच्चारना चाहिए, भगवान के नाम का रस पीणा चाहिए-यही है मनुष्य के जन्म की कमाई । हरि-नाम का स्वाद लेना चाहिए, हरि-नाम हृदय में बसाना चाहिए-यही मनुष्य के जन्म का लाभ है । जो मनुख हर समय भगवान का नाम उच्चारण करता है, वह (अपने अंदर आत्मिक) गुण इक्कठे कर के अपने आत्मिक जीवन को परखता रहता है, (इस तरह उस के सारे) औगुण दूर हो जाते हैं । हे भाई ! जिस मनुख ने गुरु की शिक्षा हासिल कर ली, उस को बड़ी इज्ज़त प्राप्त हुई । हे भाई ! सदा-थिर भगवान की सिफ़त-सालाह के शब्द में जुड़ के हरि-नाम-रस पीणा चाहिए । गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक ! परमात्मा की भक्ति एक आश्चर्ज दाति है, पर किसी विरले मनुख ने गुरु की शरण में आकर भक्ति की है ।1 ।