सोरठि महला ३ ॥ हरि जीउ तुधु नो सदा सालाही पिआरे जिचरु घट अंतरि है सासा ॥ इकु पलु खिनु विसरहि तू सुआमी जाणउ बरस पचासा ॥ हम मूड़ मुगध सदा से भाई गुर कै सबदि प्रगासा ॥१॥ हरि जीउ तुम आपे देहु बुझाई ॥ हरि जीउ तुधु विटहु वारिआ सद ही तेरे नाम विटहु बलि जाई ॥ रहाउ ॥ हम सबदि मुए सबदि मारि जीवाले भाई सबदे ही मुकति पाई ॥ सबदे मनु तनु निरमलु होआ हरि वसिआ मनि आई ॥ सबदु गुर दाता जितु मनु राता हरि सिउ रहिआ समाई ॥२॥ सबदु न जाणहि से अंने बोले से कितु आए संसारा ॥ हरि रसु न पाइआ बिरथा जनमु गवाइआ जमहि वारो वारा ॥ बिसटा के कीड़े बिसटा माहि समाणे मनमुख मुगध गुबारा ॥३॥ आपे करि वेखै मारगि लाए भाई तिसु बिनु अवरु न कोई ॥ जो धुरि लिखिआ सु कोइ न मेटै भाई करता करे सु होई ॥ नानक नामु वसिआ मन अंतरि भाई अवरु न दूजा कोई ॥४॥४॥
हे प्यारे प्रभु जी! (कृपा करो) जितना समय मेरे सरीर में प्राण हैं, मैं सदा तुम्हारी सिफत-सलाह करता रहूँ। हे मालिक-प्रभु! जब तूँ मुझे एक पल-भर एक-क्षण बिसरता है, मुझे लगता हैं पचास बरस बीत गए हैं। हे भाई! हम सदा से मुर्ख अनजान चले आ रहे थे, गुरु के शब्द की बरकत से (हमारे अंदर आत्मिक जीवन का) प्रकाश हुआ है।१। हे प्रभु जी! तू सवयं ही (अपना नाम जपने की मुझे समझ बक्श। हे प्रभु! में तुम से सदा सदके जाऊं, मैं तेरे नाम से कुर्बान जाऊं।रहाउ। हे भाई! हम (जीव) गुरु के शब्द के द्वारा (विकारों से) मर सकते हैं, शब्द के द्वारा ही (विकारों को) मार के (गुरु) आत्मिक जीवन देता है, गुरु के शब्द में जुड़ने से ही विकारों से मुक्ति मिलती है। गुरु के शब्द से मन पवित्र होता है, और परमात्मा मन में आ बसता है। हे भाई! गुरु का शब्द (ही नाम की दाति) देने वाला है, जब शब्द में मन रंगा जाता है तो परमात्मा में लीन हो जाता है।2। हे भाई! जो मनुष्य गुरु के शब्द के साथ सांझ नहीं डालते वह (माया के मोह में आत्मिक जीवन की ओर से) अंधे-बहरे हुए रहते हैं, संसार में आ के भी वे कुछ नहीं कमाते। उन्हें प्रभु के नाम का स्वाद नहीं आता, वे अपना जीवन व्यर्थ गवा जाते हैं, वे बार-बार पैदा होते मरते रहते हैं। जैसे गंदगी के कीड़े गंदगी में ही टिके रहते हैं।, वैसे ही अपने मन के पीछे चलने वाले मूर्ख मनुष्य (अज्ञानता के) अंधकार में ही (मस्त रहते हैं)।3। पर, हे भाई! (जीवों के भी क्या वश?) प्रभु खुद ही (जीवों को) पैदा करके संभाल करता है, खुद ही (जीवन के सही) रास्ते पर डालता है, उस प्रभु के बिना और कोई नहीं (जो जीवों को रास्ता बता सके)। हे भाई! कर्तार जो कुछ करता है वही होता है, धुर दरगाह से (जीवों के माथे पर लेख) लिख देता है, उसे कोई और मिटा नहीं सकता। हे नानक! (कह:) हे भाई! (उस प्रभु की मेहर से ही उसका) नाम (मनुष्य के) मन में बस सकता है, कोई और ये दाति देने के काबिल नहीं है।4।4।