रामकली महला ४ ॥ सतगुरु दाता वडा वड पुरखु है जितु मिलिऐ हरि उर धारे ॥ जीअ दानु गुरि पूरै दीआ हरि अम्रित नामु समारे ॥१॥ राम गुरि हरि हरि नामु कंठि धारे ॥ गुरमुखि कथा सुणी मनि भाई धनु धनु वड भाग हमारे ॥१॥ रहाउ ॥ कोटि कोटि तेतीस धिआवहि ता का अंतु न पावहि पारे ॥ हिरदै काम कामनी मागहि रिधि मागहि हाथु पसारे ॥२॥ हरि जसु जपि जपु वडा वडेरा गुरमुखि रखउ उरि धारे ॥ जे वड भाग होवहि ता जपीऐ हरि भउजलु पारि उतारे ॥३॥ हरि जन निकटि निकटि हरि जन है हरि राखै कंठि जन धारे ॥ नानक पिता माता है हरि प्रभु हम बारिक हरि प्रतिपारे ॥४॥६॥१८॥
अर्थ: हे मेरे राम! मैं बहुत भाग्यशाली हो गया हूँ, गुरू के द्वारा, हे हरी! तेरा नाम मैंने अपने गले में परो लिया है। गुरू की शरण पड़ कर मैंने तेरी सिफत सालाह सुनी है, और वह मेरे मन को प्यारी लग रही है।1। रहाउ। हे भाई! प्रभू के नाम की दाति देने वाला गुरू ही सब से बड़ा व्यक्ति है। गुरू को मिलने से मनुष्य परमात्मा को अपने हृदय में बसा लेता है। जिस मनुष्य को पूरे गुरू ने आत्मिक जीवन की दाति दे दी, वह मनुष्य प्रभू के जीवन देने वाले नाम को (हृदय में) संभाल के रखता है।1। हे भाई! तेतीस करोड़ (देवते) परमात्मा का ध्यान धरते रहते हैं, पर उसके गुणों का अंत, गुणों का परला छोर नहीं पा सकते। (अनेकों ऐसे भी है जो अपने) हृदय में काम-वासना धार के (परमात्मा के दर से) स्त्री (ही) माँगते हैं, (उसके आगे) हाथ पसार के (दुनिया के) धन पदार्थ (ही) माँगते हैं।2। हे भाई! परमात्मा की सिफत-सालाह किया कर, परमात्मा के नाम का जाप ही सबसे बड़ा काम है। मैं तो गुरू की शरण पड़ कर हरी-नाम ही अपने हृदय में बसाता हॅूँ। हे भाई! यदि (कोई) अति भाग्यशाली हो तो ही हरी-नाम जपा जा सकता है (जो मनुष्य जपता है उसको) संसार-समुंद्र से पार लंघा देता है।3। हे भाई! संत जन परमात्मा के नजदीक बसते हैं, परमात्मा संतजनों के पास बसता है। परमात्मा अपने सेवकों को अपने गले से लगा के रखता है। हे नानक! (कह- हे भाई!) परमात्मा हमारा पिता है, परमात्मा हमारी माँ है। हमें बच्चों को परमात्मा ही पालता है।4।6।18।