आसा ॥ कहा सुआन कउ सिम्रिति सुनाए ॥ कहा साकत पहि हरि गुन गाए ॥१॥ राम राम राम रमे रमि रहीऐ ॥ साकत सिउ भूलि नही कहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥ कऊआ कहा कपूर चराए ॥ कह बिसीअर कउ दूधु पीआए ॥२॥ सतसंगति मिलि बिबेक बुधि होई ॥ पारसु परसि लोहा कंचनु सोई ॥३॥ साकतु सुआनु सभु करे कराइआ ॥ जो धुरि लिखिआ सु करम कमाइआ ॥४॥ अम्रितु लै लै नीमु सिंचाई ॥ कहत कबीर उआ को सहजु न जाई ॥५॥७॥२०॥
अर्थ: (जैसे) कुत्ते को स्मृतियां सुनाने का कोई लाभ नहीं होता, वैसे ही साकत के पास परमात्मा के गुण गाने से साकत पर असर नहीं पड़ता।1। (हे भाई! आप ही) सदा परमात्मा का सिमरन करना चाहिए, कभी भी किसी साकत को सिमरन करने की शिक्षा नहीं देनी चाहिए।1। रहाउ। कौए को मुश्क कपूर खिलाने से कोई गुण नहीं निकलता (क्योंकि कौए की गंद खाने की आदत नहीं जा सकती, इसी तरह) सांप को दूध पिलाने से भी कोई फायदा नहीं हो सकता (वह डंग मारने से फिर भी नहीं टलेगा)।2। यह अच्छे-बुरे काम की परख करने वाली अक्ल साध-संगति में बैठ के ही आती है, जैसे पारस को छू के वह लोहा भी सोना हो जाता है।3। कुक्ता और साकत जो कुछ करते हैं, प्रेरित हुए ही करते हैं, पिछले किए कर्मों के अनुसार जो कुछ आदि से इनके माथे पर लिखा है (भाव, जो संस्कार इसके मन में बन चुके हैं) उसी तरह अब किए जाते हैं।4। कबीर जी कहते हैं – अगर अमृत (भाव, मिठास वाला जल) ले के नीम के पौधे को बारंबार सींचते रहें, तो भी उस पौधे का मूल स्वभाव (कड़वापन) दूर नहीं हो सकता।5।7।20।