संधिआ वेले का हुक्मनामा – 13 जनवरी 2023

जैतसरी महला ५ घरु ३ दुपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ देहु संदेसरो कहीअउ प्रिअ कहीअउ ॥ बिसमु भई मै बहु बिधि सुनते कहहु सुहागनि सहीअउ ॥१॥ रहाउ ॥ को कहतो सभ बाहरि बाहरि को कहतो सभ महीअउ ॥ बरनु न दीसै चिहनु न लखीऐ सुहागनि साति बुझहीअउ ॥१॥ सरब निवासी घटि घटि वासी लेपु नही अलपहीअउ ॥ नानकु कहत सुनहु रे लोगा संत रसन को बसहीअउ ॥२॥१॥२॥

अर्थ: राग जैतसरी, घर ३ में गुरू अर्जन देव जी की दो-बंदों वाली बाणी। अकाल पुरख एक है और सतिगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। (हे गुर-सिखों!) मुझे प्यारे प्रभू का मीठा संदेशा दो। मैं (उस प्यारे के बारे में) कई प्रकार (की बातें) सुन सुन के हैरान हो रही हूँ। हे सुहागवती सखियों! (तुम) बताओ (वह किस तरह का है ?) ॥१॥ रहाउ ॥ कोई कहता है, वह सब से बाहर ही वस्ता है, कोई कहता है, वह सब के अन्दर वस्ता है। उस का रंग नहीं दिखता, उस का कोई लक्षण नज़र नहीं आता। हे सुहागनों! तुम मुझे सच्ची बात समझाओ ॥१॥ वह परमात्मा सब में निवास रखने वाला है, प्रत्येक शरीर में वसने वाला है (फिर भी, उस को माया का) जरा भी लेप नहीं है। नानक जी कहते हैं-हे लोगों! सुनों, वह प्रभू संत जनों की जीभ (जिव्हा) पर वस्ता है (संत जन हर समय उसी का नाम जपते हैं) ॥२॥१॥२॥

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