अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 30 अक्टूबर 2024

सूही महला ३ ॥ जे लोड़हि वरु बालड़ीए ता गुर चरणी चितु लाए राम ॥ सदा होवहि सोहागणी हरि जीउ मरै न जाए राम ॥ हरि जीउ मरै न जाए गुर कै सहजि सुभाए सा धन कंत पिआरी ॥ सचि संजमि सदा है निरमल गुर कै सबदि सीगारी ॥ मेरा प्रभु साचा सद ही साचा जिनि आपे आपु उपाइआ ॥ नानक सदा पिरु रावे आपणा जिनि गुर चरणी चितु लाइआ ॥१॥

हे अंजान जिव-स्त्री! अगर तूं प्रभु-पति का मिलाप चाहती है, तो अपने गुरु के चरणों में मन जोड़ कर रख। तूं सदा के लिए सुहाग-भाग्य वाली बन जाएगी, (क्योंकि) प्रभु-पति न कभी मरता है ना ही कभी नास होता है। प्रभु-पति कभी मरता नहीं ना ही कभी नास होता है। जो जिव-इस्त्री गुरु के द्वारा आत्मिक अडोलता में प्रेम में लीं रहती है, वह खसम प्रभु को प्यारी लगती है। सदा-थिर प्रभु में जुड़ के, (विकारों की) बंदिश में न रह के, वह जिव स्त्री पवित्र जीवन वाली हो जाती है, गुरु के शब्द की बरकत से वेह अपने आत्मिक जीवन को सुहागन बना लेती है। हे सखी! मेरा प्रभु सदा कायम रहने वाला है, सदा ही कायम रहते वाला है, उस ने अपने आप को खुद ही प्रकट किया हुआ है। हे नानक! जिस जिव-स्त्री ने गुरु के चरणों में अपना मन जोड़ लिया, वह सदा प्रभु-पति का मिलाप मानती।१।

Share On Whatsapp


Leave a Reply