बिलावलु महला ५ ॥ बंधन काटै सो प्रभू जा कै कल हाथ ॥ अवर करम नही छूटीऐ राखहु हरि नाथ ॥१॥ तउ सरणागति माधवे पूरन दइआल ॥ छूटि जाइ संसार ते राखै गोपाल ॥१॥ रहाउ ॥ आसा भरम बिकार मोह इन महि लोभाना ॥ झूठु समग्री मनि वसी पारब्रहमु न जाना ॥२॥ परम जोति पूरन पुरख सभि जीअ तुम्हारे ॥ जिउ तू राखहि तिउ रहा प्रभ अगम अपारे ॥३॥ करण कारण समरथ प्रभ देहि अपना नाउ ॥ नानक तरीऐ साधसंगि हरि हरि गुण गाउ ॥४॥२७॥५७॥
हे भाई! जिस प्रभु के हाथ में (हरेक) ताकत है, वः प्रभु (सरन पड़े मनुख के माया के सारे) बंधन काट देता है। (हे भाई! प्रभु की सरन आए बिना) और और काम करने से (इन बंधनों से आजादी नहीं मिल सकती (केवल! हर समय यह अरदास करो-) हे हरि! हे नाथ! हमारी रक्षा कर॥१॥ हे माया के पति प्रभु! हे (सारे गुणों से) भरपूर प्रभु! हे दया के सोमे प्रभु! (मैं) तेरी सरन आया हूँ (हाँ मेरी संसार के मोह से रक्षा कर)। (हे भाई!) सृष्टि का पालक प्रभु (जिस मनुख की)रक्षा करता है, वह मनुख संसार के मोह से बच जाता है॥१॥रहाउ॥ (हे भाई! बद-किस्मत जीव) दुनिया की सारी आशाएँ, वहम, विकार, माया का मोह-इन में ही फँसा रहता है। जिस माया, के साथ अंत तक साथ नहीं निभना, वो ही इस के मन में टिकी रहती है, (कभी भी यह) परमात्मा के साथ साँझ नहीं बना पाता॥२॥ हे सबसे ऊँचे प्रकाश के श्रोत! हे सब गुणों से भरपूर प्रभु! हे सर्व-व्यापक प्रभु! (हम) सारे जीव तेरे ही पैदा किए हुए हैं। हे अगम्य (पहुँच से परे) और बेअंत प्रभु! जैसे तू ही हमें रखता है, मैं उसी तरह ही रह सकता हूँ (माया के बंधनो से तू ही मुझे बचा सकता है)।੩। हे नानक! (कह:) हे जगत के रचनहार प्रभु! हे सब कुछ कर सकने वाले प्रभु! (मुझे) अपना नाम बख्श। (हे भाई!) साधु-संगत में टिक के सदा परमात्मा की महिमा के गीत गाया कर, (इसी तरह ही संसार-समुंदर से) पार लांघा जा सकता है।੪।੨੭।੫੭।