अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 23 सितंबर 2025

अंग : 769
सूही महला ३ ॥ जुग चारे धन जे भवै बिनु सतिगुर सोहागु न होई राम ॥ निहचलु राजु सदा हरि केरा तिसु बिनु अवरु न कोई राम ॥ तिसु बिनु अवरु न कोई सदा सचु सोई गुरमुखि एको जाणिआ ॥ धन पिर मेलावा होआ गुरमती मनु मानिआ ॥ सतिगुरु मिलिआ ता हरि पाइआ बिनु हरि नावै मुकति न होई ॥ नानक कामणि कंतै रावे मनि मानिऐ सुखु होई ॥१॥ सतिगुरु सेवि धन बालड़ीए हरि वरु पावहि सोई राम ॥ सदा होवहि सोहागणी फिरि मैला वेसु न होई राम ॥ फिरि मैला वेसु न होई गुरमुखि बूझै कोई हउमै मारि पछाणिआ ॥ करणी कार कमावै सबदि समावै अंतरि एको जाणिआ ॥ गुरमुखि प्रभु रावे दिनु राती आपणा साची सोभा होई ॥ नानक कामणि पिरु रावे आपणा रवि रहिआ प्रभु सोई ॥२॥ गुर की कार करे धन बालड़ीए हरि वरु देइ मिलाए राम ॥ हरि कै रंगि रती है कामणि मिलि प्रीतम सुखु पाए राम ॥ मिलि प्रीतम सुखु पाए सचि समाए सचु वरतै सभ थाई ॥ सचा सीगारु करे दिनु राती कामणि सचि समाई ॥ हरि सुखदाता सबदि पछाता कामणि लइआ कंठि लाए ॥ नानक महली महलु पछाणै गुरमती हरि पाए ॥३॥ सा धन बाली धुरि मेली मेरै प्रभि आपि मिलाई राम ॥ गुरमती घटि चानणु होआ प्रभु रवि रहिआ सभ थाई राम ॥ प्रभु रवि रहिआ सभ थाई मंनि वसाई पूरबि लिखिआ पाइआ ॥ सेज सुखाली मेरे प्रभ भाणी सचु सीगारु बणाइआ ॥ कामणि निरमल हउमै मलु खोई गुरमति सचि समाई ॥ नानक आपि मिलाई करतै नामु नवै निधि पाई ॥४॥३॥४॥
अर्थ: हे भाई! (युग चाहे कोई भी हो) गुरू (की शरण पड़े) बिना पति प्रभू का मिलाप नहीं होता, जीव-स्त्री चाहे चारों युगों में भटकती फिरे। उस प्रभू-पति का हुकम अटल है (कि गुरू के द्वारा ही उसका मिलाप प्राप्त होता है)। उसके बिना कोई और उसकी बराबरी का नहीं (जो इस हुकम को बदलवा सके)। हे भाई! जिस प्रभू के बिना उस जैसा और कोई नहीं। वह प्रभू स्वयं ही सदा कायम रहने वाला है। गुरू के सन्मुख रहने वाली जीव-स्त्री उस एक के साथ गहरी सांझ बनाती है। जब गुरू की मति पर चल के जीव-स्त्री का मन (परमात्म की याद में) रीझ जाता है, तब जीव-स्त्री का प्रभू-पति से मिलाप हो जाता है। हे भाई! जब गुरू मिलता है तब ही प्रभू की प्राप्ति होती है (गुरू ही) प्रभू का नाम जीव-स्त्री के हृदय में बसाता है, और परमात्मा के नाम के बिना (माया के बँधनों से) खलासी नहीं होती। हे नानक! अगर मन प्रभू की याद में रीझ जाए, तो जीव-स्त्री प्रभू के मिलाप का आनंद भोगती है, उसके हृदय में आनंद पैदा हुआ रहता है।1। हे अंजान जीवात्मा! गुरू के बताए हुए काम किया कर, (इस तरह) तू प्रभू-पति को प्राप्त कर लेगी। तू सदा के लिए पति वाली (सोहागनि) हो जाएगी, फिर कभी प्रभू-पति से विछोड़ा नहीं होगा। कोई विरली जीव-स्त्री ही गुरू के बताए हुए मार्ग पर चल के इस बात को समझती है (कि गुरू के द्वारा प्रभू से मिलाप होने पर) फिर उससे कभी विछोड़ा नहीं होता। वह जीव-स्त्री (अपने अंदर से) अहंकार दूर करके प्रभू से सांझ कायम रखती है। वह जीव-स्त्री (प्रभू सिमरन का) करने-योग्य कार्य करती रहती है, गुरू के शबद में लीन रहती है, अपने हृदय में एक प्रभू के साथ जीव-स्त्री पहचान बनाए रखती है। हे नानक! गुरू के सन्मुख रहने वाली जीव-स्त्री दिन-रात अपने प्रभू का नाम सिमरती रहती है, (लोक-परलोक में) उसको सदा कायम रहने वाली इज्जत मिलती है। वह जीव-स्त्री अपने उस प्रभू-पति को हर वक्त याद करती है जो हर जगह व्यापक है।2। हे अंजान जिंदे! गुरू का बताया हुआ काम किया कर। गुरू प्रभू-पति के साथ मिला देता है। जो जीव-स्त्री प्रभू के प्रेम-रंग में रंगी जाती है, वह प्यारे प्रभू को मिल के आत्मिक आनंद पाती है। प्रभू प्रीतम को मिल के वह आत्मिक आनंद भोगती है, सदा स्थिर प्रभू में लीन रहती है, वह सदा स्थिर प्रभू उसे हर जगह बसता दिखाई देता है। वह जीव स्त्री सदा-स्थिर प्रभू की याद में मस्त रहती है, यही सदा कायम रहने वाला (आत्मिक) श्रंृगार दिन-रात वह किए रखती है। गुरू के शबद में जुड़ के वह जीव-स्त्री सारे सुख देने वाले प्रभू के साथ सांझ डालती है, उसको अपने गले से लगाए रखती है (गले में परोए रखती है, हर वक्त उसका जाप करती है)। हे नानक! वह जीव स्त्री मालिक प्रभू का महल ढॅूँढ लेती है, गुरू की मति पर चल के वह प्रभू-पति का मिलाप प्राप्त कर लेती है।3। हे भाई! जिस अंजान जीव स्त्री को धुर दरगाह से मिलाप के लेख प्राप्त हुआ, उसको प्रभू ने स्वयं अपने चरणों से जोड़ लिया। उस जीव-स्त्री के हृदय में ये रौशनी हो गई कि परमात्मा हर जगह मौजूद है। सब जगह व्यापक प्रभू को उस जीव-स्त्री ने अपने मन में बसा लिया, पिछले जन्म के लिखे लेख (उसके माथे पर) उघड़ आए। वह जीव-स्त्री प्यारे प्रभू को अच्छी लगने लग पड़ी, उसकी हृदय-सेज आनंद-भरपूर हो गई, सदा-स्थिर प्रभू के नाम सिमरन को उसने (अपने जीवन का) श्रृंगार बना लिया। जो जीव-स्त्री गुरू की मति ले के सदा-स्थिर प्रभू के नाम में लीन हो जाती है, वह (अपने अंदर से) अहंकार की मैल दूर कर लेती है, वह पवित्र जीवन वाली बन जाती है। हे नानक! (कह–) करतार ने स्वयं उसे अपने साथ मिला लिया, उसने परमात्मा का नाम प्राप्त कर लिया, जो उसके लिए सृष्टि के नौ खजानों के तूल्य है।4।3।4।

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