अंग : 804
मात पिता सुत साथि न माइआ ॥ साधसंगि सभु दूखु मिटाइआ ॥१॥ रवि रहिआ प्रभु सभ महि आपे ॥ हरि जपु रसना दुखु न विआपे ॥१॥ रहाउ ॥ तिखा भूख बहु तपति विआपिआ ॥ सीतल भए हरि हरि जसु जापिआ ॥२॥ कोटि जतन संतोखु न पाइआ ॥ मनु त्रिपताना हरि गुण गाइआ ॥३॥ देहु भगति प्रभ अंतरजामी ॥ नानक की बेनंती सुआमी ॥४॥५॥१०॥
अर्थ: हे भाई! माँ, बाप, पुत्र, माया-(इन सब में से कोई भी जीव का सदा के लिए)साथ नहीं बन सकता, (दुःख आने पर भी सहाई नहीं बन सकता)। गुरु की संगत में टिकाव कर के सारा दुःख-कलेश दूर कर सकतें हैं॥१॥ हे भाई!(जो ) परमात्मा खुद ही सब जीवों में व्यापक है, उस(के नाम) का जाप जिव्हा से करता रह, इस प्रकार कोई दुःख जोर नहीं पकड़ सकता॥१॥रहाउ॥ हे भाई! जगत माया की तृष्णा, माया की भूख और सड़न में फसा पड़ा है। जो मनुख परमात्मा की सिफत-सलाह करते है, (उनके हृदय) ठन्डे ठार हो जाते हैं॥२॥हे भाई ! करोड़ों यत्न करके भी(माया की तृष्णा से)संतोख प्राप्त नही होता। प्रभु के कीर्तिगान से मन तृप्त हो जाता है।३।हे प्रत्येक की दिल की जानने वाले प्रभु ! हे मालिक ! तेरे दास)नानक की(तेरे दर पर)बेनती है कि अपनी भक्ति का दान दे।४।५।१०।