संधिआ वेले का हुक्मनामा – 28 अक्तूबर 2022

बेद पुरान सभै मत सुनि कै करी करम की आसा ॥ काल ग्रसत सभ लोग सिआने उठि पंडित पै चले निरासा ॥१॥ मन रे सरिओ न एकै काजा ॥ भजिओ न रघुपति राजा ॥१॥ रहाउ ॥ बन खंड जाइ जोगु तपु कीनो कंद मूलु चुनि खाइआ ॥ नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ ॥२॥ भगति नारदी रिदै न आई काछि कूछि तनु दीना ॥ राग रागनी डि्मभ होइ बैठा उनि हरि पहि किआ लीना ॥३॥ परिओ कालु सभै जग ऊपर माहि लिखे भ्रम गिआनी ॥ कहु कबीर जन भए खालसे प्रेम भगति जिह जानी ॥४॥३॥

अर्थ :-जिन सयाने लोगों ने वेद पुरान आदि के सारे मत सुन के कर्म-काँड की आशा रखी, (यह आशा रखी कि कर्म-काँड के साथ जीवन संवरेगा), वह सारे (आत्मिक) मौत में ही ग्रसे रहे। पंडित लोक भी आशा पूरी होने के बिना ही उॅठ के चले गए (जगत त्याग गए)।1। हे मन ! तुमने प्रकाश-रूप परमात्मा का भजन नहीं किया, तेरे से यह एक काम भी (जो करने-योग्य था) नहीं हो सका।1।रहाउ। कई लोकों ने जंगलों में जा के योग साधे, तप किये, गाजर-मूली आदि चुन खा के गुजारा किया; योगी, कर्म-काँडी, ‘अलख’ कहने वाले योगी, मोनधारी-यह सारे यम के लेखे में ही लिखे गए (भावार्थ, इन के साधन मौत के डर से बचा नहीं सकते)।2। जिन मनुष्यों ने शरीर पर तो (धार्मिक चिन्ह) चक्र आदि लगा लिए हैं, पर प्रेमा-भक्ति उसके हृदय में पैदा नहीं हुई, राग-रागनियां तो गाता है पर निरी पाखण्ड की मूर्ति ही बना बैठा है, ऐसे मनुष्य को परमात्मा से कुछ नहीं मिलता।3। सारे जगत पर काल का सहम पड़ा हुआ है, भरमी-ज्ञानी भी उसी ही लेखे में लिखे गए हैं (वे भी मौत के सहम में ही हैं)। हे कबीर! कह– जिन मनुष्यों ने प्रेमा-भक्ति करनी समझ ली है वह (मौत के सहम से) आजाद हो गए हैं।4।3।

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