अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 26 दिसंबर 2025

अंग : 590
सलोकु मः ३ ॥ भगत जना कंउ आपि तुठा मेरा पिआरा आपे लइअनु जन लाइ ॥ पातिसाही भगत जना कउ दितीअनु सिरि छतु सचा हरि बणाइ ॥ सदा सुखीए निरमले सतिगुर की कार कमाइ ॥ राजे ओइ न आखीअहि भिड़ि मरहि फिरि जूनी पाहि ॥ नानक विणु नावै नकीं वढीं फिरहि सोभा मूलि न पाहि ॥१॥ मः ३ ॥ सुणि सिखिऐ सादु न आइओ जिचरु गुरमुखि सबदि न लागै ॥ सतिगुरि सेविऐ नामु मनि वसै विचहु भ्रमु भउ भागै ॥ जेहा सतिगुर नो जाणै तेहो होवै ता सचि नामि लिव लागै ॥ नानक नामि मिलै वडिआई हरि दरि सोहनि आगै ॥२॥ पउड़ी ॥ गुरसिखां मनि हरि प्रीति है गुरु पूजण आवहि ॥ हरि नामु वणंजहि रंग सिउ लाहा हरि नामु लै जावहि ॥ गुरसिखा के मुख उजले हरि दरगह भावहि ॥ गुरु सतिगुरु बोहलु हरि नाम का वडभागी सिख गुण सांझ करावहि ॥ तिना गुरसिखा कंउ हउ वारिआ जो बहदिआ उठदिआ हरि नामु धिआवहि ॥११॥
अर्थ: प्यारा प्रभु अपने भगतों पर आप प्रसन्न होता है और आप ही उसने उनको अपने से जोड़ लिया है। भक्तों के सिर पर सच्चा छत्र झुला कर भक्तों को पातशाही बख्शी है। सतगुरु की बताई कार कमा कर वह सदा सुखी और पवित्र रहते हैं। राजे उनको नहीं कहते जो आपस में लड़ मरते हैं और फिर योनियों में पड़ जाते हैं। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! नाम से दूर, राजे भी, नाक-कटवाए फिरते हैं और सोभा नहीं पाते॥१॥ जब तक सतिगुरु के सन्मुख हो के मनुष्य सतिगुरु के शब्द में नहीं जुड़ता तब तक सतिगुरु की शिक्षा निरी सुन के स्वाद नहीं आता, सतिगुरु की बताई हुई सेवा करके ही नाम मन में बसता है और अंदर से भ्रम और डर दूर हो जाता है। जब मनुष्य जैसा अपने सतिगुरु को समझता है, वैसा ही खुद बन जाए (भाव, जब अपने सतिगुरु वाले गुण धारण करे) तब उसकी तवज्जो सच्चे नाम में जुड़ती है; हे नानक! (ऐसे जीवों को) नाम के कारण यहाँ आदर मिलता है और आगे हरि की दरगाह में वे शोभा पाते हैं।2। गुरसिखों के मन में हरि के प्रति प्यार होता है और (उस प्यार के सदका वे) अपने सतिगुरु की सेवा करते आते हैं; (सतिगुरु के पास आ के) प्यार से हरि-नाम का व्यापार करते हैं और हरि नाम का लाभ कमा के ले जाते हैं। अर्थ- (ऐसे) गुरसिखों के मुँह उज्जवल होते हैं और हरि की दरगाह में वे प्यारे लगते हैं। गुरु सतिगुरु हरि के नाम का (जैसे) बोहल है, बड़े भाग्यशाली सिख आ के गुणों की सांझ पाते हैं; सदके हूँ उन गुरसिखों से, जो बैठते-उठते (भाव, हर वक्त) हरि का नाम स्मरण करते हैं।11।

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