अंग : 608
सोरठि महला ५ घरु १ तितुके ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ किस हउ जाची किसु आराधी जा सभु को कीता होसी ॥ जो जो दीसै वडा वडेरा सो सो खाकू रलसी ॥ निरभउ निरंकारु भव खंडनु सभि सुख नव निधि देसी ॥१॥ हरि जीउ तेरी दाती राजा ॥ माणसु बपुड़ा किआ सालाही किआ तिस का मुहताजा ॥ रहाउ ॥ जिनि हरि धिआइआ सभु किछु तिस का तिस की भूख गवाई ॥ अैसा धनु दीआ सुखदातै निखुटि न कब ही जाई ॥ अनदु भइआ सुख सहजि समाणे सतिगुरि मेलि मिलाई ॥२॥ मन नामु जपि नामु आराधि अनदिनु नामु वखाणी ॥ उपदेसु सुणि साध संतन का सभ चूकी काणि जमाणी ॥ जिन कउ क्रिपालु होआ प्रभु मेरा से लागे गुर की बाणी ॥३॥ कीमति कउणु करै प्रभ तेरी तू सरब जीआ दइआला ॥ सभु किछु कीता तेरा वरतै किआ हम बाल गुपाला ॥ राखि लेहु नानकु जनु तुमरा जिउ पिता पूत किरपाला ॥४॥१॥
अर्थ: राग सोरठि, घर १ में गुरु अर्जनदेव जी की तीन-तुकी बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे भाई! जब जिव परमात्मा का ही पैदा किया हुआ है, तो (उस करतार को छोड़ के) मैं और किस से कुछ माँगू? मैं और किस की आस रखता फिरूँ? जो भी कोई बड़ा या धनि मनुख दीखता है, हरेक ने (मर कर) मिटटी में मिल जाना है (एक परमात्मा ही सदा कायम रहने वाला दाता है) हे भाई! सारे सुख और जगत के सरे नौ खजाने वह निरंकार ही देने वाला है जिस को किसी का कोई डर नहीं, और, जो सब जीवों का जनम मरण नास करने वाला है।१। हे प्रभु जी! मैं तुम्हारी (दी हुई) दातों से रिजक पा सकता हूँ, मैं किसी बेचारे मनुख की बढाई क्यों करता फिरूँ? मुझे किसी मनुख की मोहताजी क्यों हो?।रहाउ। हे भाई! जिस मनुख ने परमात्मा की भक्ति शुरू कर दी, जगत की हरेक चीज ही उस की बन जाती है, परमात्मा उस के अंदर (माया की) भूख दूर कर देता है। सुखदाते प्रभु ने उस को ऐसा (नाम-)धन दे दिया है जो(उसके पास कभी भी नहीं ख़तम होता। गुरु ने उस परमात्मा के चरणों में (जब) मिला दिया, तो आत्मिक अडोलता के कारण उस के अन्दर आनंद और सारे सुख आ बसते है।२।
हे (मेरे) मन! हर समय परमात्मा का नाम जपा कर, सिमरा कर, उचारा कर। संत जनों का उपदेश सुन के जमों की भी सारी मुथाजी (गुलामी) खत्म हो जाती है। (पर, हे मन!) सतिगुरू की बाणी में वही मनुष्य सुरति जोड़ते हैं, जिन पर प्यारा प्रभू आप दयावान होता है।3।
हे प्रभू! तेरी (मेहर की) कीमत कौन पा सकता है? तू सारे ही जीवों पर मेहर करने वाला है। हे गोपाल प्रभू! हम जीवों की क्या बिसात है? जगत में हरेक काम तेरा ही किया हुआ होता है। हे प्रभू! नानक तेरा दास है, (इस दास की) रक्षा उसी तरह करता रह, जैसे पिता अपने पुत्रों पर कृपालु हो के करता है।4।1।