अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 06 नवंबर 2025

अंग : 539
बिहागड़ा महला ४ ॥ हउ बलिहारी तिन्ह कउ मेरी जिंदुड़ीए जिन्ह हरि हरि नामु अधारो राम ॥ गुरि सतिगुरि नामु द्रिड़ाइआ मेरी जिंदुड़ीए बिखु भउजलु तारणहारो राम ॥ जिन इक मनि हरि धिआइआ मेरी जिंदुड़ीए तिन संत जना जैकारो राम ॥ नानक हरि जपि सुखु पाइआ मेरी जिंदुड़ीए सभि दूख निवारणहारो राम ॥१॥ सा रसना धनु धंनु है मेरी जिंदुड़ीए गुण गावै हरि प्रभ केरे राम ॥ ते स्रवन भले सोभनीक हहि मेरी जिंदुड़ीए हरि कीरतनु सुणहि हरि तेरे राम ॥ सो सीसु भला पवित्र पावनु है मेरी जिंदुड़ीए जो जाइ लगै गुर पैरे राम ॥ गुर विटहु नानकु वारिआ मेरी जिंदुड़ीए जिनि हरि हरि नामु चितेरे राम ॥२॥ ते नेत्र भले परवाणु हहि मेरी जिंदुड़ीए जो साधू सतिगुरु देखहि राम ॥ ते हसत पुनीत पवित्र हहि मेरी जिंदुड़ीए जो हरि जसु हरि हरि लेखहि राम ॥ तिसु जन के पग नित पूजीअहि मेरी जिंदुड़ीए जो मारगि धरम चलेसहि राम ॥ नानकु तिन विटहु वारिआ मेरी जिंदुड़ीए हरि सुणि हरि नामु मनेसहि राम ॥३॥ धरति पातालु आकासु है मेरी जिंदुड़ीए सभ हरि हरि नामु धिआवै राम ॥ पउणु पाणी बैसंतरो मेरी जिंदुड़ीए नित हरि हरि हरि जसु गावै राम ॥ वणु त्रिणु सभु आकारु है मेरी जिंदुड़ीए मुखि हरि हरि नामु धिआवै राम ॥ नानक ते हरि दरि पैन्हाइआ मेरी जिंदुड़ीए जो गुरमुखि भगति मनु लावै राम ॥४॥४॥
अर्थ: हे मेरी सुंदर जिन्दे! मैं उन से कुर्बान हूँ जिन्होंने परमात्मा के नाम को (अपनी जिन्दगी का) सहारा बना लिया है। हे मेरी सुंदर जिन्दे! गुरू ने, सतिगुरू ने उनके हृदय में परमात्मा का नाम पक्की तरह टिका दिया है। गुरू (माया के मोह के) जहर (-भरे) संसार-समुँद्र से पार लगाने की समर्था रखता है। हे मेरी सुंदर जिन्दे! जिन संत जनों ने एक-मन हो कर परमात्मा का नाम सिमरिया है, उनकी (हर जगह) शोभा-वडियाई होती है। हे नानक जी! हे मेरी सुंदर जिन्दे! परमात्मा का नाम जप कर सुख मिल जाता है, हरी-नाम सभी दुखों को दूर करने की समर्था​ वाला है ॥१॥ हे मेरी सुंदर जिन्दे! वह जिव्हा भाग्य वाली है, मुबारक है, जो (सदा) परमात्मा के गुण गाती रहती है। हे मेरी सुंदर जिन्दे! हे प्रभू! वह कान सुंदर हैं अच्छे हैं जो तेरे कीर्तन सुनते रहते हैं। हे मेरी सुंदर जिन्दे! वह सिर भाग्य वाला है पवित्र है, जो गुरू के चरणों में जा लगता है। हे मेरी सुंदर जिन्दे! नानक जी (उस) गुरू से कुर्बान जाते हैं जिस ने परमात्मा का नाम चेते कराया है ॥२॥ हे मेरी सुंदर जिन्दे! वह आँखें भली हैं सफल हैं जो गुरू का दर्शन करती रहती हैं। हे मेरी सुंदर जिन्दे! वह हाथ पवित्र हैं जो परमात्मा की सिफ़त-सलाह लिखते रहते हैं। हे मेरी सुंदर जिन्दे! उस मनुष्य के (वह) पैर सदा पूजे जाते हैं जो (पैर) धर्म के रास्ते पर चलते रहते हैं। हे मेरी सुंदर जिन्दे! नानक जी उन (वड-भागी) मनुष्यों​ से कुर्बान जाते हैं जो परमात्मा का नाम सुन कर नाम को मानते हैं (जीवन आधार बना लेते हैं) ॥३॥ हे मेरी सुंदर जिन्दे! धरती, पाताल, आकाश़-प्रत्येक ही परमात्मा का नाम सिमर रहा है। हे मेरी सुंदर जिन्दे! हवा पानी, आग-प्रत्येक तत्त्व भी परमात्मा की सिफ़त-सलाह का गीत गा रहा है। हे मेरी सुंदर जिन्दे! जंगल, घास,* *यह सारा दिखता संसार-अपने मुँह से प्रत्येक ही परमात्मा का नाम जप रहा है। हे नानक जी! हे मेरी सुंदर जिन्दे! जो जो जीव गुरू की शरण पड़ कर परमात्मा की भगती में अपना मन जोड़ते हैं, वह सभी परमात्मा के द्वार पर आदर पाते हैं ॥४॥४॥

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