अंग : 582
वडहंसु महला ३ महला तीजा ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ प्रभु सचड़ा हरि सालाहीऐ कारजु सभु किछु करणै जोगु ॥ सा धन रंड न कबहू बैसई ना कदे होवै सोगु ॥ ना कदे होवै सोगु अनदिनु रस भोग सा धन महलि समाणी ॥ जिनि प्रिउ जाता करम बिधाता बोले अम्रित बाणी ॥ गुणवंतीआ गुण सारहि अपणे कंत समालहि ना कदे लगै विजोगो ॥ सचड़ा पिरु सालाहीऐ सभु किछु करणै जोगो ॥१॥
अर्थ: राग वडहंस में गुरु अमरदास जी की बानी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे भाई! कायम रहने वाले हरी-प्रभु की सिफत सलाह करनी चाहिये, वेह सब कुछ करने में समर्थ है। हे भाई! जिस जिव इस्त्री ने सिरजनहार प्रीतम-प्रभु से गहरी साँझ जोड़ ली, जो उस प्रभु की आत्मिक जीवन देने वाली बनी उचारती है, उस जिव=इस्त्री की कबी नि-खस्मी नहीं होती, न ही उसे कोई चिंता सताती है, उस को कभी कोई गम नहीं आता, वह हर समय परमात्मा का नाम-रस मानती है, और सदा प्रभु के चरणों में लीं रहती है। है भाई! गुणों वाली जिव-इस्त्री परमात्मा के गुण याद करती रहतीं है। प्रभु खसम को अपने हिरदय मैं बसी रखती हैं, उनको परमात्मा से कभी विचोदा नहीं होता। हे भाई! उस सदा-थिर रहने वाले प्रभु=पति की सिफत सलाह करनी चाहिए, वेह प्रभु सब कुछ करने की ताकत रखता है।१। ❀ नोट: सिरलेख के अंक १,२,३ आदि को पहला, दूजा, तीजा पड़ना है।