अंग : 675
धनासरी महला ५ ॥ दीन दरद निवारि ठाकुर राखै जन की आपि ॥ तरण तारण हरि निधि दूखु न सकै बिआपि ॥१॥ साधू संगि भजहु गुपाल ॥ आन संजम किछु न सूझै इह जतन काटि कलि काल ॥ रहाउ ॥ आदि अंति दइआल पूरन तिसु बिना नही कोइ ॥ जनम मरण निवारि हरि जपि सिमरि सुआमी सोइ ॥२॥ बेद सिम्रिति कथै सासत भगत करहि बीचारु ॥ मुकति पाईऐ साधसंगति बिनसि जाइ अंधारु ॥३॥ चरन कमल अधारु जन का रासि पूंजी एक ॥ ताणु माणु दीबाणु साचा नानक की प्रभ टेक ॥४॥२॥२०॥
अर्थ: हे भाई ! परमात्मा अनाथों के दुख दूर करके अपने सेवको की लाज रखता है। वह प्रभु ( संसार -सुमंदर से पार ) करने के लिए ( मानों जहाज ) है, वह हरी सारे सुखों का खजाना है, ( उस की शरण पड़ने से) दुःख लग नहीं सकता ॥੧॥ हे भाई! गुरु की संगत में रह कर परमात्मा का नाम जपा कर। इन्ही यत्नो से ही संसार के झंझटों से छुटकारा प्राप्त कर। (मुझे इस के बिना कोई और युगती नहीं सूझती॥रहाउ॥ हे भाई! जो दया का घर सर्ब व्यापक प्रभु सदा ही (जीवों के सर पर राखा) है और उस के बिना (उस जैसा) और कोई नहीं। उसी मालिक का नाम सदा सुमिरा कर, उसी हरी का नाम जप कर अपना जन्म मरन का चक्र दूर कर॥2॥ हे भाई! वेद-स्मृति-शास्त्र (हरेक धर्म पुस्तक जिस परमात्मा का) वर्णन करती है, भक्त जन (भी जिस परमात्मा के गुणों के) विचार करते हैं, साधु-संगत में (उसका नाम स्मरण करके जगत के झमेलों से) निजात मिलती है, (माया के मोह के) अंधेरे दूर हो जाते हैं।3।हे नानक! (कह: हे भाई!) परमात्मा के सुंदर चरण ही भक्तों (के आत्मिक जीवन) की राशि-पूंजी है, परमात्मा की ओट ही उनका बल है, सहारा है, सदा कायम रहने वाला आसरा है।4।2।20।