अंग : 796
बिलावलु महला ३ घरु १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ध्रिगु ध्रिगु खाइआ ध्रिगु ध्रिगु सोइआ ध्रिगु ध्रिगु कापड़ु अंगि चड़ाइआ ॥ ध्रिगु सरीरु कुट्मब सहित सिउ जितु हुणि खसमु न पाइआ ॥ पउड़ी छुड़की फिरि हाथि न आवै अहिला जनमु गवाइआ ॥१॥ दूजा भाउ न देई लिव लागणि जिनि हरि के चरण विसारे ॥ जगजीवन दाता जन सेवक तेरे तिन के तै दूख निवारे ॥१॥ रहाउ ॥
अर्थ: राग बिलावलु, घर 1 में गुरु अमरदास जी की बाणी। अकाल पुरख एक है सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। अगर इस शरीर के द्वारा इस जन्म में खसम-प्रभु का मिलाप हासिल नहीं किया, तो यह सरीर फिटकारने योग्य है, (नाक कान आँखे आदिक सभी) परिवार सहित फिटकार-योग्य हैं। (मनुख का सब कुछ) खाना फिटकार योग्य है, सोना (सुख-आराम) फिटकार योग्य है, सरीर ऊपर कपडा पहनना फिटकार-योग्य है। (यह मनुख शारीर प्रभु के देश पहुचने के लिए एक सीडी है) जो यह सीडी (हाथ से) निकल जाए तो फिर हाथ नहीं आती। मनुख अपना बड़ा कीमती जीवन गँवा लेता है॥1॥ माया का मोह जिस ने (जीव को) परमात्मा के चरण (मन में बसाने) भुला दिए हैं, (परमात्मा के चरणों में) सुरत जोड़ने नहीं देता। हे प्रभु! तूं आप ही जगत को आत्मिक जीवन देने वाला है। जो बंदे तेरे सेवक बनते है, उनके (मोह से पैदा होने वाले सारे) दुःख आपने दूर कर दिए है॥1॥रहाउ॥