अंग : 713
टोडी महला ५ ॥ सतिगुर आइओ सरणि तुहारी ॥ मिलै सूखु नामु हरि सोभा चिंता लाहि हमारी ॥१॥ रहाउ ॥ अवर न सूझै दूजी ठाहर हारि परिओ तउ दुआरी ॥ लेखा छोडि अलेखै छूटह हम निरगुन लेहु उबारी ॥१॥ सद बखसिंदु सदा मिहरवाना सभना देइ अधारी ॥ नानक दास संत पाछै परिओ राखि लेहु इह बारी ॥२॥४॥९॥
अर्थ: हे गुरू! मैं तेरी शरण आया हूँ। मेरी चिंता दूर कर (मेहर कर, तेरे दर से मुझे) परमात्मा का नाम मिल जाए, (यही मेरे वास्ते) सुख (है, यही मेरे वास्ते) शोभा (है)।1। रहाउ।
हे प्रभू! (मैं अन्य आसरों की तरफ से) हार के तेरे दर पर आ पड़ा हूँ, अब मुझे और कोई आसरा नहीं सूझता। हे प्रभू! हम जीवों के कर्मों का लेखा ना कर, हम तभी सुर्खरू हो सकते हैं, अगर हमारे कर्मों का लेखा ना किया जाए। हे प्रभू! हम गुणहीन जीवों को (विकारों से तू खुद) बचा ले।1।
हे भाई! परमात्मा सदा बख्शिशें करने वाला है, सदा मेहर करने वाला है, वह सब जीवों को आसरा देता है। हे दास नानक! (तू भी आरजू कर और कह–) मैं गुरू की शरण आ पड़ा हूँ, मुझे इस जनम में (विकारों से) बचाए रख।2।4।9।