अंग : 659
रागु सोरठि बाणी भगत भीखन की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ नैनहु नीरु बहै तनु खीना भए केस दुध वानी ॥ रूधा कंठु सबदु नही उचरै अब किआ करहि परानी ॥१॥ राम राइ होहि बैद बनवारी ॥ अपने संतह लेहु उबारी ॥१॥ रहाउ ॥ माथे पीर सरीरि जलनि है करक करेजे माही ॥ ऐसी बेदन उपजि खरी भई वा का अउखधु नाही ॥२॥ हरि का नामु अम्रित जलु निरमलु इहु अउखधु जगि सारा ॥ गुर परसादि कहै जनु भीखनु पावउ मोख दुआरा ॥३॥१॥
अर्थ: हे सुंदर राम! हे प्रभू! अगर तू हकीम बने तो तू अपने संतों को (देह अध्यास से) बचा लेता है (भाव, तू आप ही हकीम बन के संतों को देह-अध्यास से बचा लेता है)।1। रहाउ। हे जीव! (वृद्ध अवस्था में कमजोर होने के कारण) तेरी आँखों में पानी बह रहा है, तेरा शरीर क्षीण हो रहा है, तेरे केश दूध जैसे सफेद हो गए हैं, तेरा गला (कफ़ से) रुकने के कारण बोल नहीं सकता; अभी (भी) तू क्या कर रहा है? (भाव, अब भी तू परमात्मा को याद क्यों नहीं करता? तू क्यों शरीर के मोह में फंसा हुआ है? तू क्यों देह-अध्यास नहीं छोड़ता?)।1। हे प्राणी! (वृद्ध होने के कारण) तेरे सिर में पीड़ा टिकी रहती है, शरीर में जलन रहती है, कलेजे में दर्द उठती है (किस-किस अंग का फिक्र करें? सारे ही जिस्म में बुढ़ापे का) एक ऐसा बड़ा रोग उठ खड़ा हुआ है कि इसका कोई इलाज नहीं है (फिर भी इस शरीर से तेरा मोह नहीं मिटता)।2। (इस शारीरिक रोग को मिटाने का) एक ही श्रेष्ठ इलाज जगत में है, वह है प्रभू का नाम-रूपी निर्मल जल। दास भीखण कहता है– (अपने) गुरू की कृपा से मैंने इस नाम को जपने का रास्ता ढूँढ लिया है, जिसके कारण मैंने शारीरिक मोह से खलासी पा ली है।3।1।