अंग : 667
धनासरी महला ४ ॥ हम अंधुले अंध बिखै बिखु राते किउ चालह गुर चाली ॥ सतगुरु दइआ करे सुखदाता हम लावै आपन पाली ॥१॥ गुरसिख मीत चलहु गुर चाली ॥ जो गुरु कहै सोई भल मानहु हरि हरि कथा निराली ॥१॥ रहाउ॥ हरि के संत सुणहु जन भाई गुरु सेविहु बेगि बेगाली ॥ सतगुरु सेवि खरचु हरि बाधहु मत जाणहु आजु कि काल्ही ॥२॥ हरि के संत जपहु हरि जपणा हरि संतु चलै हरि नाली ॥ जिन हरि जपिआ से हरि होए हरि मिलिआ केल केलाली ॥३॥ हरि हरि जपनु जपि लोच लुोचानी हरि किरपा करि बनवाली ॥ जन नानक संगति साध हरि मेलहु हम साध जना पग राली ॥४॥४॥
अर्थ: हे भाई! हम जीव माया के मोह में बहुत अँधे हो के मायावी पदार्थों के जहर में मगन रहते हैं। हम कैसे गुरु के बताए हुए राह पर चल सकते हैं? सुखों को देने वाला गुरु (खुद ही) मेहर करे, और हमें अपने साथ लगा ले।੧। हे गुरसिख मित्रो! गुरु के बताए हुए राह पर चलो। (गुरु कहता है कि परमात्मा की महिमा किया केरो, ये) जो कुछ गुरु कहता है, इसको (अपने लिए) भला समझो, (क्योंकि) प्रभु की महिमा अनोखी (तब्दीली जीवन में पैदा कर देती है)।੧। रहाउ। हे हरि के संत जनो! हे भाईयो! सुनो, जल्दी ही गुरु की शरण पड़ जाओ। गुरु की शरण पड़ कर (जीवन-यात्रा के लिए) परमात्मा के नाम की खर्ची (पल्ले) बाँधो। कहीं ये ना समझ लेना कि आज (ये काम कर लेंगे) सवेरे (ये काम कर लेंगे। टाल-मटोल नहीं करना)।੨। हे हरि के संत जनो! परमात्मा के नाम का जाप किया करो। (इस जाप की इनायत से) हरि का संत हरि की रजा में चलने लग जाता है। हे भाई! जो मनुष्य परमात्मा का नाम जपते हैं, वे परमात्मा का रूप हो जाते हैं। रंग-तमाशे करने वाला तमाशेबाज (चोजी) प्रभु उन्हें मिल जाता है।੩। हे दास नानक! (कह:) हे बनवारी प्रभु! मुझे तेरा नाम जपने की चाहत लगी हुई है। मेहर कर, मुझे साधु-संगत में मिलाए रख, मुझे तेरे संत-जनों की धूल मिली रहे।੪।੪।