अंग : 682
धनासरी महला ५ ॥*
*अउखी घड़ी न देखण देई अपना बिरदु समाले ॥ हाथ देइ राखै अपने कउ सासि सासि प्रतिपाले ॥१॥ प्रभ सिउ लागि रहिओ मेरा चीतु ॥ आदि अंति प्रभु सदा सहाई धंनु हमारा मीतु ॥ रहाउ ॥ मनि बिलास भए साहिब के अचरज देखि बडाई ॥ हरि सिमरि सिमरि आनद करि नानक प्रभि पूरन पैज रखाई ॥२॥१५॥४६॥
अर्थ: हे भाई! (वह प्रभू अपने सेवक को) कोई दुख देने वाला समय देखने नहीं देता, वह अपना मूढ़-कदीमां का (प्यार वाला) स्वभाव सदा याद रखता है। प्रभू अपना हाथ दे कर अपने सेवक की रक्षा करता है, (सेवक को उसकी) प्रत्येक साँस के साथ पालता रहता है ॥१॥ हे भाई! मेरा मन (भी) उस प्रभू से जुड़ा रहता है, जो शुरु से आखिर तक सदा ही मददगार बना रहता है। हमारा वह मित्र प्रभू धन्य है (उस की सदा सिफ़त-सलाह करनी चाहिए) ॥ रहाउ ॥ हे भाई! मालिक-प्रभू के हैरान करने वाले कौतक देख के, उस की वडियाई देख के, (सेवक के) मन में (भी) खुशियाँ बनी रहती है। हे नानक जी! तूँ भी परमात्मा का नाम सिमर सिमर के आतमिक आनंद मान। (जिस भी मनुष्य ने सिमरन किया) प्रभू ने पूरे तौर पर उस की इज्ज़त रख ली ॥२॥१५॥४६॥