अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 13 मई 2025

अंग : 891
रामकली महला ५ ॥ बीज मंत्रु हरि कीरतनु गाउ ॥ आगै मिली निथावे थाउ ॥ गुर पूरे की चरणी लागु ॥ जनम जनम का सोइआ जागु ॥१॥ हरि हरि जापु जपला ॥ गुर किरपा ते हिरदै वासै भउजलु पारि परला ॥१॥ रहाउ ॥ नामु निधानु धिआइ मन अटल ॥ ता छूटहि माइआ के पटल ॥ गुर का सबदु अम्रित रसु पीउ ॥ ता तेरा होइ निरमल जीउ ॥२॥ सोधत सोधत सोधि बीचारा ॥ बिनु हरि भगति नही छुटकारा ॥ सो हरि भजनु साध कै संगि ॥ मनु तनु रापै हरि कै रंगि ॥३॥ छोडि सिआणप बहु चतुराई ॥ मन बिनु हरि नावै जाइ न काई ॥ दइआ धारी गोविद गुोसाई ॥ हरि हरि नानक टेक टिकाई ॥४॥१६॥२७॥
अर्थ: (हे भाई! जिस मनुष्य ने) परमात्मा ( के नाम) का जाप किया, (जिस मनुष्य के) हृदय में गुरू की कृपा से (परमात्मा का नाम) आ बसता है, वह संसार-समुंद्र से पार लांघ गया।1। रहाउ।
(हे भाई!) परमात्मा की सिफत (के गीत) गाया करो (परमात्मा को वश में करने का) यह सबसे श्रेष्ठ मंत्र है। (कीर्तन की बरकति से) परलोक में निआसरे जीवों को भी आसरा मिल जाता है। (हे भाई!) पूरे गुरू के चरणों में पड़ा रह, इस तरह कई जन्मों से (माया के मोह की) नींद में सोया हुआ तू जाग पड़ेगा।1।
हे मन! परमात्मा का नाम कभी ना समाप्त होने वाला खजाना है, इसको सिमरते रहो, तब ही तेरे माया (के मोह) के पर्दे फटेंगे। हे मन! गुरू का शबद आत्मिक जीवन देने वाला रस है, इसको पीता रह, तब ही तेरी जीवात्मा पवित्र होगी।2।
हे मन! हमने बहुत विचार-विचार करके ये निर्णय निकाला है कि परमात्मा की भक्ति के बिना (माया के मोह से) खलासी नहीं हो सकती। प्रभू की वह भगती गुरू की संगति में (प्राप्त होती है। जिसको प्राप्त होती है, उसका) मन और तन परमात्मा के प्रेम-रंग में रंगा जाता है।3।
हे मन! (अपनी) समझदारी और बहती चतुराई को छोड़ दे। (जैसे काई लगने के कारण जमीन में पानी नहीं जा पाता, वैसे ही अहंकार के कारण गुरू के उपदेश का असर नहीं होता), परमात्मा के नाम के बिना ये (अहंकार रूपी) काई दूर नहीं होती। हे नानक! (कह-) जिस मनुष्य पर धरती का पति प्रभू दया करता है, वह मनुष्य परमात्मा के नाम का आसरा लेता है।4।16।17।

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