अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 30 अप्रैल 2025

अंग : 461
आसा महला ५ ॥*
*दिनु राति कमाइअड़ो सो आइओ माथै ॥ जिसु पासि लुकाइदड़ो सो वेखी साथै ॥ संगि देखै करणहारा काइ पापु कमाईऐ ॥ सुक्रितु कीजै नामु लीजै नरकि मूलि न जाईऐ ॥ आठ पहर हरि नामु सिमरहु चलै तेरै साथे ॥ भजु साधसंगति सदा नानक मिटहि दोख कमाते ॥१॥ वलवंच करि उदरु भरहि मूरख गावारा ॥ सभु किछु दे रहिआ हरि देवणहारा ॥ दातारु सदा दइआलु सुआमी काइ मनहु विसारीऐ ॥ मिलु साधसंगे भजु निसंगे कुल समूहा तारीऐ ॥ सिध साधिक देव मुनि जन भगत नामु अधारा ॥ बिनवंति नानक सदा भजीऐ प्रभु एकु करणैहारा ॥२॥ खोटु न कीचई प्रभु परखणहारा ॥ कूड़ु कपटु कमावदड़े जनमहि संसारा ॥ संसारु सागरु तिन्ही तरिआ जिन्ही एकु धिआइआ ॥ तजि कामु क्रोधु अनिंद निंदा प्रभ सरणाई आइआ ॥ जलि थलि महीअलि रविआ सुआमी ऊच अगम अपारा ॥ बिनवंति नानक टेक जन की चरण कमल अधारा ॥३॥ पेखु हरिचंदउरड़ी असथिरु किछु नाही ॥ माइआ रंग जेते से संगि न जाही ॥ हरि संगि साथी सदा तेरै दिनसु रैणि समालीऐ ॥ हरि एक बिनु कछु अवरु नाही भाउ दुतीआ जालीऐ ॥ मीतु जोबनु मालु सरबसु प्रभु एकु करि मन माही ॥ बिनवंति नानकु वडभागि पाईऐ सूखि सहजि समाही ॥४॥४॥१३॥

अर्थ: जो कुछ दिन रात हर समय अच्छा बुरा काम तूँ किया है, वह संस्कार-रूप बन कर तेरे मन में लिखा गया है। जिस से तूँ (अपने किए काम) छुपा रहा हैं वह तो तेरे साथ ही बैठा देखता जा रहा है। सिरजनहार (प्रत्येक जीव के) साथ (बैठा प्रत्येक के किए काम) देखता रहता है। सो कोई बुरा काम नहीं करना चाहिए, (बल्कि) अच्छा काम करना चाहिए, परमात्मा का नाम सिमरन करना चाहिए (नाम की बरकत से) नर्क में कभी भी नहीं जाना पड़ता। आठों पहर परमात्मा का नाम सिमरता रह, परमात्मा का नाम तेरे साथ जाएगा। हे नानक जी! (कहो-हे भाई!) साध संगत में टिक कर परमात्मा का भजन किया कर (भजन की बरकत से पिछले) किए हुए विकार मिट जाते हैं ॥१॥ हे मुर्ख! हे गंवार! तूँ (ओरों से) छल कपट कर के (अपना) पेट भरता हैं (रोजी कमाता है। तुझे यह बात भुल चुकी हुई है कि) हरी दातार (सब जीवों को) प्रत्येक चीज दे रहा है। सब दातें देने वाला मालिक सदा दयावान रहता है, उस को कभी भी अपने मन से भुलाना नहीं चाहिए। साध संगत में मिल (-बैठ), झिझक उतार कर उस का भजन किया कर, (भजन की बरकत से अपनी) सारी कुलें तर जाती हैं। योग-साधना में पूर्ण योगी, योग-साधन करने वाले, देवते, समाधी लगाने वाले, भक्त-सभी की जिन्दगी का हरी-नाम ही सहारा बना चला आ रहा है। नानक जी बेनती करते* *हैं, सदा उस परमात्मा का भजन करना चाहिए जो आप ही सारे संसार का पैदा करने वाला है ॥२॥ (कभी किसी से) धोखा नहीं करना चाहिए, (परमात्मा खरे खोटे की) पहचान करने की समर्था रखता है। जो मनुष्य (ओरों को ठगने के लिए) झूठ बोलते हैं, वह संसार में (दुबारा दुबारा) जमते (मरते) रहते हैं। जिन मनुष्यों ने एक परमात्मा का सिमरन किया है, वह संसार-समुँद्र से पार निकल गए हैं। जो काम क्रोध त्याग कर अच्छों की निंदा छोड़ कर प्रभू की शरण आ गए हैं, (वह संसार-समुँद्र से पार निकल गए हैं।) (हे भाई!) जो परमात्मा पानी में धरती में आकाश़ में सभी जगह मौजूद है, जो सब से उच्चा है, जो अपहुँच है और बेअंत है, नानक जी बेनती करते हैं, वह अपने सेवकों (की जिंदगी) का सहारा है, उस के सुंदर कोमल चरण उस के सेवकों के लिए आसरा हैं ॥३॥ (यह सारा संसार जो दिख रहा है इस को) धूएं का पहाड़ (कर के) देख (इस में) कोई भी चीज सदा कायम रहने वाली नहीं। माया के जितने भी मौज-मेले हैं वह सभी (किसी के) साथ नहीं जाते। परमात्मा ही सदा तेरे साथ निभन वाला साथी है, दिन रात हर समय उस को अपने हृदय में संभाल कर रखना चाहिए। एक परमात्मा के बिना अन्य कुछ भी (सदा टिके रहने वाला) नहीं (इस लिए परमात्मा के बिना) कोई अन्य प्यार (मन में से) निकाल देना चाहिए। मित्र, जवानी, धन, अपना अन्य सब कुछ-यह सब कुछ एक परमात्मा को ही अपने मन में समझ। नानक जी बेनती करते हैं (-हे भाई!) परमात्मा बड़ी किस्मत से मिलता है (जिन को मिलता है वह सदा) आनंद में आतमिक अडोलता में लीन रहते हैं ॥४॥४॥१३॥*

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