अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 13 अप्रैल 2025

अंग : 133
वैसाखि धीरनि किउ वाढीआ जिना प्रेम बिछोहु ॥ हरि साजनु पुरखु विसारि कै लगी माइआ धोहु ॥ पुत्र कलत्र न संगि धना हरि अविनासी ओहु ॥ पलचि पलचि सगली मुई झूठै धंधै मोहु ॥ इकसु हरि के नाम बिनु अगै लईअहि खोहि ॥ दयु विसारि विगुचणा प्रभ बिनु अवरु न कोइ ॥ प्रीतम चरणी जो लगे तिन की निरमल सोइ ॥ नानक की प्रभ बेनती प्रभ मिलहु परापति होइ ॥ वैसाखु सुहावा तां लगै जा संतु भेटै हरि सोइ ॥३॥*
*बारह माहा मांझ महला ५ घरु ४

अर्थ: (वैसाख वाला दिन हरेक स्त्री मर्द के वास्ते रीझों वाला दिन होता है, पर) वैसाख में उन सि्त्रयों का दिल कैसे स्थिर हो जो पति से विछुड़ी हुई हैं। जिन के अंदर प्यार (का प्रगटावा) नहीं है। (इस तरह उस जीव को धैर्य कैसे आए जिसे) सज्जन प्रभू विसार के सम-मोहनी माया चिपकी हुई है? ना पुत्र, ना स्त्री, ना धन, ना ही कोई मनुष्य साथ निभता है। एक अविनाशी परमात्मा ही असल साथी है। नाशवंत धंधों का मोह (सारी लुकाई को ही) व्याप रहा है (माया के मोह में) बार बार फंस के सारा संसार ही (आत्मिक मौत) मर रहा है। एक परमात्मा के नाम के सिमरन के बिना और जितने भी कर्म यहाँ किए जाते हैं, वह सारे मरने से पहले ही छीन लिए जाते हैं (भाव, उच्च आत्मिक अवस्था का अंग नहीं बन सकते)। प्यार स्वरूपी प्रभू को विसार के खुआरी ही होती है। परमात्मा के बिना जिंद का और कोई साथी नहीं होता। जो लोग प्रभू प्रीतम के चरणों में लगते हैं, उनकी (लोक परलोक में) भली शोभा होती है। हे प्रभू! (तेरे दर पे) मेरी विनती है कि मुझे तेरा जी-भर के मिलाप नसीब हो। (ऋतु फिरने से चारों तरफ वनस्पति भले ही सुहावनी हो जाए, पर) जिंद को वैसाख का महीना तभी सुहावना लग सकता है जब हरी संत प्रभू मिल जाए।3।

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