अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 07 अप्रैल 2025

ਅੰਗ : 817
रागु बिलावलु महला ५ दुपदे घरु ५
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ अवरि उपाव सभि तिआगिआ दारू नामु लइआ ॥ ताप पाप सभि मिटे रोग सीतल मनु भइआ ॥१॥ गुरु पूरा आराधिआ सगला दुखु गइआ ॥ राखनहारै राखिआ अपनी करि मइआ ॥१॥ रहाउ ॥ बाह पकड़ि प्रभि काढिआ कीना अपनइआ ॥ सिमरि सिमरि मन तन सुखी नानक निरभइआ ॥२॥१॥६५॥

ਅਰਥ: राग बिलावलु, घर 5 में गुरु अर्जनदेव जी की दो बन्दों वाली बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। (हे भाई! जिस मनुख ने सिर्फ गुरु का पल्ला पकड़ा है, और सभी कोशिशें छोड़ दी हैं और परमात्मा के नाम की (ही) दवा बरती है, उस के सारे दुःख कलेश, सारे पाप, सारे रोग मिट गए हैं, उस का मन (विकारों की तपिश से बच कर) ठंडा-ठार हो गया है॥1॥ हे भाई! जो मनुख पूरे गुरु को अपने हृदय में बसाये रखता है, उस का सारा दुःख-कलेश दूर हो जाता है, (क्योंकि) रक्षा करने के समरथ परमात्मा ने (उस ऊपर) कृपा कर के (दुखों कलेशों से सदा) उस की रक्षा की है॥1॥रहाउ॥ (हे भाई! जिस मनुख ने गुरु को अपने हृदये में बसाया है) प्रभु ने (उस की) बाँह पकड़ कर उस को अपना बना लिया है। हे नानक! प्रभु का नाम सुमिरन कर के उस का मन उस का हृदय आनंद भरपूर हो गया है, और उस को (ताप पाप रोग आदिक का) कोई डर नहीं रह जाता॥2॥1॥65॥

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