अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 7 मार्च 2025

*सोरठि महला ३ ॥*
*बिनु सतिगुर सेवे बहुता दुखु लागा जुग चारे भरमाई ॥ हम दीन तुम जुगु जुगु दाते सबदे देहि बुझाई ॥१॥ हरि जीउ क्रिपा करहु तुम पिआरे ॥ सतिगुरु दाता मेलि मिलावहु हरि नामु देवहु आधारे ॥ रहाउ ॥ मनसा मारि दुबिधा सहजि समाणी पाइआ नामु अपारा ॥ हरि रसु चाखि मनु निरमलु होआ किलबिख काटणहारा ॥२॥ सबदि मरहु फिरि जीवहु सद ही ता फिरि मरणु न होई ॥ अंम्रितु नामु सदा मनि मीठा सबदे पावै कोई ॥३॥ दातै दाति रखी हथि अपणै जिसु भावै तिसु देई ॥ नानक नामि रते सुखु पाइआ दरगह जापहि सेई ॥४॥११॥*

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