संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 15 फरवरी 2025

धनासरी महला ५ ॥
हलति सुखु पलति सुखु नित सुखु सिमरनो
नामु गोबिंद का सदा लीजै ॥
मिटहि कमाणे पाप चिराणे
साधसंगति मिलि मुआ जीजै ॥१॥ रहाउ ॥
राज जोबन बिसरंत हरि माइआ महा दुखु
एहु महांत कहै ॥
आस पिआस रमण हरि कीरतन
एहु पदारथु भागवंतु लहै ॥१॥
सरणि समरथ अकथ अगोचरा
पतित उधारण नामु तेरा ॥
अंतरजामी नानक के सुआमी
सरबत पूरन ठाकुरु मेरा ॥२॥२॥५४॥
{अंग-६८३}

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