संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 29 जनवरी 2025

धनासिरी महला ५ ॥ अब हरि राखनहारु चितारिआ ॥ पतित पुनीत कीए खिन भीतरि सगला रोगु बिदारिआ ॥१॥ रहाउ ॥ गोसटि भई साध कै संगमि काम क्रोधु लोभु मारिआ ॥ सिमरि सिमरि पूरन नाराइन संगी सगले तारिआ ॥१॥ अउखध मंत्र मूल मन एकै मनि बिस्वासु प्रभ धारिआ ॥ चरन रेन बांछै नित नानकु पुनह पुनह बलिहारिआ ॥२॥१६॥

अर्थ :-हे भाई ! जिन मनुष्यों ने इस मनुखा जन्म में (विकारों से) बचा सकने वाले परमात्मा को याद करना शुरू कर दिया, परमात्मा ने एक छिन में उनको विकारीआँ से पवित्र जीवन वाले बना दिया, उन का सारा रोग काट दिया।1।रहाउ। हे भाई ! गुरु की संगत में जिन मनुष्यों का मेल हो गया, (परमात्मा ने उन के अंदर से) काम क्रोध लोभ मार मुकाया। सर्व-व्यापक परमात्मा का नाम बार बार सिमर के उन्हों ने आपने सारे साथी भी (संसार-सागर से) पार निकाल लए।1। हे मन ! परमात्मा का एक नाम ही सभी दवाइयों का मूल है, सारे मंत्रों का मूल है। जिस मनुख ने आपने मन में परमात्मा के लिए श्रद्धा धार के लिए है, नानक उस मनुख के चरणों की धूल सदा माँगता है, नानक उस मनुख से सदा सदके जाता है।2।16।

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