बैराड़ी महला ४ ॥ हरि जनु राम नाम गुन गावै ॥ जे कोई निंद करे हरि जन की अपुना गुनु न गवावै ॥१॥ रहाउ ॥ जो किछु करे सु आपे सुआमी हरि आपे कार कमावै ॥ हरि आपे ही मति देवै सुआमी हरि आपे बोलि बुलावै ॥१॥ हरि आपे पंच ततु बिसथारा विचि धातू पंच आपि पावै ॥ जन नानक सतिगुरु मेले आपे हरि आपे झगरु चुकावै ॥२॥३॥
अर्थ: परमात्मा का भगत हर समय परमात्मा के गुण गाता रहता है। अगर कोई मनुष्य उस भगत की निंदा (भी) करता है तो वह भगत अपना स्वभाव नहीं छोड़ता ॥१॥ रहाउ ॥ (भगत अपनी निंदा सुन के भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता, क्योंकि वह जनता है कि) जो कुछ कर रहा है मालिक प्रभु आप ही (जीवों में बैठ के) कर रहा है, वह आप ही हरेक काम कर रहा है। मालिक प्रभु आप ही (हरेक जीव को) समझ देता है, आप ही (हरेक जीव में बैठा) बोल रहा है, आप ही (हरेक जीव को) बोलने की प्रेरणा कर रहा है ॥१॥ (भगत जनता है कि) परमात्मा ने आप ही (अपने आप से) पांच तत्वों का जगत-बिखेरा हुआ है, आप ही इन पांच तत्वों में पांच विषय भरे हुए हैं। हे नानक जी! परमात्मा आप ही अपने सेवक को मिलाता है, और, आप ही (उस के अंदर से हरेक प्रकार की) खिचोतान ख़त्म करता है ॥२॥३॥