सोरठि महला ५ ॥ मेरा सतिगुरु रखवाला होआ ॥ धारि क्रिपा प्रभ हाथ दे राखिआ हरि गोविदु नवा निरोआ ॥१॥ रहाउ ॥ तापु गइआ प्रभि आपि मिटाइआ जन की लाज रखाई ॥ साधसंगति ते सभ फल पाए सतिगुर कै बलि जांई ॥१॥ हलतु पलतु प्रभ दोवै सवारे हमरा गुणु अवगुणु न बीचारिआ ॥ अटल बचनु नानक गुर तेरा सफल करु मसतकि धारिआ ॥२॥२१॥४९॥
अर्थ :-हे भाई ! मेरा गुरु (मेरा) सहाई बना है, (गुरु की शरण की बरकत के साथ) भगवान ने कृपा कर के (अपने) हाथ दे के (बालक हरि गोबिंद को) बचा लिया है, (अब बालक) हरि गोबिंद बिलकुल राजी-बाजी हो गया है।1। (हे भाई ! बालक हरि गोबिंद का) ताप उतर गया है, भगवान ने आप उतारा है, भगवान ने अपने सेवक की इज्ज़त रख ली है । हे भाई ! गुरु की संगत से (मैंने) सारे फल प्राप्त कीये हैं, मैं (सदा) गुरु से (ही) कुरबान जाता हूँ।1। (हे भाई जो भी मनुख भगवान का पला पकड़े रखता है, उस का) यह लोक और परलोक दोनो ही परमात्मा सवार देता है, हम जीवों का कोई गुण या औगुण परमात्मा चित् में नहीं रखता । हे नानक ! (बोल-) हे गुरु ! तेरा (यह) बचन कभी टलने वाला नहीं (कि परमात्मा ही जीव का लोक परलोक में राखा है) । हे गुरु ! तूं अपना बरकत वाला हाथ (हम जीवों के) माथे पर रखता हैं।2।21।49।