धनासरी महला ५ ॥ पानी पखा पीसउ संत आगै गुण गोविंद जसु गाई ॥ सासि सासि मनु नामु सम्हारै इहु बिस्राम निधि पाई ॥१॥ तुम्ह करहु दइआ मेरे साई ॥ ऐसी मति दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते मोहु मानु छूटै बिनसि जाइ भरमाई ॥ अनद रूपु रविओ सभ मधे जत कत पेखउ जाई ॥२॥ तुम्ह दइआल किरपाल क्रिपा निधि पतित पावन गोसाई ॥ कोटि सूख आनंद राज पाए मुख ते निमख बुलाई ॥३॥ जाप ताप भगति सा पूरी जो प्रभ कै मनि भाई ॥ नामु जपत त्रिसना सभ बुझी है नानक त्रिपति अघाई ॥४॥१०॥
अर्थ: (हे प्रभु! कृपा कर) मैं (तेरे) संतों की सेवा में (रह के, उनके लिए) पानी (ढोता रहूँ, उनको) पंखा (झलता रहूँ, उनके लिए आटा) पीसता रहूँ, और, हे गोबिंद! तेरी सिफत सलाह तेरे सुन गाता रहूँ। मेरे मन प्रतेक साँस के साथ (तेरा) नाम याद करता रहे, मैं तेरा यह नाम प्राप्त कर लूँ जो सुख शांति का खज़ाना है ॥१॥ हे मेरे खसम-प्रभु! (मेरे ऊपर) दया कर। हे मेरे ठाकुर! मुझे ऐसी अक्ल दो कि मैं सदा ही तेरा नाम सिमरता रहूँ ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्रभु! तेरी कृपा से (मेरे अंदर से) माया का मोह ख़त्म हो जाए, अहंकार दूर हो जाए, मेरी भटकना का नास हो जाए, मैं जहाँ जहाँ जा के देखूँ सब में मुझे तूँ आनंद-सरूप ही वसता दिखे ॥२॥ हे धरती के खसम! तूँ दयाल हैं, कृपाल हैं, तूँ दया का खज़ाना हैं, तूँ विकारियों को पवित्र करने वाले हैं। जब मैं आँख झमकण जितने समय के लिए मुँहों तेरा नाम उचारता हूँ, मुझे इस तरह जापता है कि मैं राज-भाग के करोड़ों सुख आनन्द प्रापत कर लिए हैं ॥३॥ वही जाप ताप वही भगती पूरन मानों, जो परमात्मा के मन में पसंद आती है। हे नानक जी! परमात्मा का नाम जपिया सारी त्रिसना खत्म हो जाती है, (माया वाले पदार्थों से) पूरन तौर से संतुस्टी हो जाती है ॥४॥१०