अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 23 अक्टूबर 2024

सोरठि महला ५ घरु ३ चउपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मिलि पंचहु नही सहसा चुकाइआ ॥ सिकदारहु नह पतीआइआ ॥ उमरावहु आगै झेरा ॥ मिलि राजन राम निबेरा ॥१॥ अब ढूढन कतहु न जाई ॥ गोबिद भेटे गुर गोसाई ॥ रहाउ ॥ आइआ प्रभ दरबारा ॥ ता सगली मिटी पूकारा ॥ लबधि आपणी पाई ॥ ता कत आवै कत जाई ॥२॥ तह साच निआइ निबेरा ॥ ऊहा सम ठाकुरु सम चेरा ॥ अंतरजामी जानै ॥ बिनु बोलत आपि पछानै ॥३॥ सरब थान को राजा ॥ तह अनहद सबद अगाजा ॥ तिसु पहि किआ चतुराई ॥ मिलु नानक आपु गवाई ॥४॥१॥५१॥

अर्थ: राग सोरठि, घर ३ में गुरू अर्जनदेव जी की चार-बंदों वाली बाणी। अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा से मिलता है। हे भाई ! नगर के पैंचाँ को मिल के (कामादिक वैरीयो से हो रहा) सहम दूर नहीं किया जा सकता। सरदारों लोगों से भी तस्सली नहीं मिल सकती (कि यह वैरी तंग नहीं करेगे) सरकारी हाकिम के आगे भी यह झगड़ा (पेश करने से कुछ नहीं बनता) भगवान पातिशाह को मिल के फैसला हो जाता है (और, कामादिक वैरीयो का भय खत्म हो जाता है) ॥१॥ अब (कामादिक वैरीयो से हो रहे सहम से बचने के लिए) किसी ओर जगह (सहारा) खोजने की जरूरत ना रह गई, जब गोबिंद को, गुरु को सृष्टि के खसम को मिल गए ॥ रहाउ ॥ हे भाई ! जब मनुष्य भगवान की हजूरी में पहुंचता है (चित् जोड़ता है), तब इस की (कामादिक वैरीयो के विरुध) सारी शिकैत खत्म हो जाती है। तब मनुख वह वसत हासिल कर लेता है जो सदा इस की अपनी बनी रहती है, तब विकारों में फंस कर भटकने से बच जाता है ॥२॥ हे भाई ! भगवान की हजूरी में सदा कायम रहने वाले न्याय अनुसार (कामादिकाँ के साथ हो रही टकर का) फैसला हो जाता है। उस दरगाह में (जुल्मी का कोई लिहाज नहीं किया जाता) स्वामी और नौकर एक जैसा समझा जाता है। हरेक के दिल की जानने वाला भगवान (हजूरी में पहुंचे हुए सवाली के दिल की) जानता है, (उस के) बोले बिना वह भगवान आप (उस के दिल की पीड़ा को) समझ लेता है ॥३॥ हे भाई ! भगवान सारे लोकों का स्वामी है, उस के साथ मिलाप-अवस्था में मनुख के अंदर भगवान की सिफ़त-सालाह की बाणी एक-रस पूरा प्रभाव डाल लेती है (और, मनुख ऊपर कामादिक वैरी अपना जोर नहीं पा सकते)। (पर, हे भाई ! उस को मिलने के लिए) उस के साथ कोई चलाकी नहीं की जा सकती। नानक जी ! (कहो-हे भाई ! अगर उस को मिलना है, तो) आपा-भाव गवा के (उस को) मिल ॥४॥१॥५१॥

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