अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 3 सतंबर 2024

डहंसु महला ४ घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मै मनि वडी आस हरे किउ करि हरि दरसनु पावा ॥ हउ जाइ पुछा अपने सतगुरै गुर पुछि मनु मुगधु समझावा ॥ भूला मनु समझै गुर सबदी हरि हरि सदा धिआए ॥ नानक जिसु नदरि करे मेरा पिआरा सो हरि चरणी चितु लाए ॥१॥

राग वडहंस, घर २ में गुरु रामदास जी की बानी॥ अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे हरी! मेरे मन में बड़ी तीव्र इच्छा है की मैं किसी तरह, तेरा दर्शन कर सकूँ। मैं अपने गुरु के पास जा के गुरु से पूछती हूँ और गुरु से पूछ के अपने मुर्ख मन को शिक्षा देती रहती हूँ। कुराहे पड़ा हुआ मेरा मन गुरु के शब्द में जुड़ कर ही अकल सीखता है और फिर वह सदा परमात्मा का नाम याद करता रहता है। हे नानक! जिस मनुख ऊपर मेरा प्यारा प्रभु कृपा की नज़र करता है, वह प्रभु के चरणों में अपना मन जोड़ी रखता है॥१॥

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