संधिआ वेले का हुक्मनामा – 25 दसंबर 2022

टोडी महला ५ ॥ स्वामी सरनि परिओ दरबारे ॥ कोटि अपराध खंडन के दाते तुझ बिनु कउनु उधारे ॥१॥ रहाउ ॥ खोजत खोजत बहु परकारे सरब अरथ बीचारे ॥ साधसंगि परम गति पाईऐ माइआ रचि बंधि हारे ॥१॥ चरन कमल संगि प्रीति मनि लागी सुरि जन मिले पिआरे ॥ नानक अनद करे हरि जपि जपि सगले रोग निवारे ॥२॥१०॥१५॥

अर्थ: हे मालिक-प्रभू! मैं तेरी शरण आ पड़ा हूँ, मैं तेरे दर पर (आ गिरा हूँ)। हे करोड़ों भूल नाश करने के समर्थ दातार! तेरे बिना और कौन मुझे भूलों से बचा सकता है ? ॥१॥ रहाउ ॥ हे भाई! कई तरीकों के साथ खोज कर कर के मैंने सभी बातें विचारी हैं (और, इस नतीजे ऊपर पहुँचा हूँ, कि) गुरु की संगत में टिक कर सब से ऊँची आतमिक अवस्था प्राप्त कर लेते हैं, और माया के (मोह के) बंधन में फँस के (मनुष्य जन्म की बाजी) हार जाते हैं ॥१॥ जिस मनुष्य को प्यारे गुरमुख सज्जन मिल पड़ते हैं उस के मन में परमात्मा के कोमल चरणों का प्यार बन जाता है। हे नानक जी! वह मनुष्य परमात्मा का नाम जप जप के आतमिक आनंद मानता है और वह (अपने अंदर से) सारे रोग दूर कर लेता है ॥२॥१०॥१५॥

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