Share On Whatsapp

Leave a comment






Share On Whatsapp

Leave a comment




Share On Whatsapp

Leave a comment




Share On Whatsapp

Leave a Comment
Davinder Khehrs : waheguru ji





Share On Whatsapp

View All 3 Comments
rajinder Kaur : Wahegurji Wahegurji Wahegurji Wahegurji Wahegurji Wahegurji Wahegurji Wahegurji
mani : waheguru ggg



Share On Whatsapp

Leave a comment




Share On Whatsapp

Leave a comment






Share On Whatsapp

Leave a comment


सलोक ॥ संत उधरण दइआलं आसरं गोपाल कीरतनह ॥ निरमलं संत संगेण ओट नानक परमेसुरह ॥१॥ चंदन चंदु न सरद रुति मूलि न मिटई घांम ॥ सीतलु थीवै नानका जपंदड़ो हरि नामु ॥२॥ पउड़ी ॥ चरन कमल की ओट उधरे सगल जन ॥ सुणि परतापु गोविंद निरभउ भए मन ॥ तोटि न आवै मूलि संचिआ नामु धन ॥ संत जना सिउ संगु पाईऐ वडै पुन ॥ आठ पहर हरि धिआइ हरि जसु नित सुन ॥१७॥

अर्थ: जो संत जन गोपाल प्रभू के कीर्तन को अपने जीवन का सहारा बना लेते हैं, दयाल प्रभू उन संतों को (माया की तपस से) बचा लेता है, उन संतों की संगति करने से पवित्र हो जाते हैं। हे नानक! (तू भी ऐसे गुरमुखों की संगति में रह के) परमेश्वर का पल्ला पकड़।1। चाहे चंदन (का लेप किया) हो चाहे चंद्रमा (की चाँदनी) हो, और चाहे ठंडी ऋतु हो – इनसे मन की तपस बिल्कुल भी समाप्त नहीं हो सकती। हे नानक! प्रभू का नाम सिमरने से ही मनुष्य (का मन) शांत होता है।2। प्रभू के सुंदर चरणों का आसरा ले के सारे जीव (दुनिया की तपस से) बच जाते हैं। गोबिंद की महिमा सुन के (बँदगी वालों के) मन निडर हो जाते हैं। वे प्रभू का नाम-धन इकट्ठा करते हैं और उस धन में कभी घाटा नहीं पड़ता। ऐसे गुरमुखों की संगति बड़े भाग्यों से मिलती है, ये संत जन आठों पहर प्रभू को सिमरते हैं और सदा प्रभू का यश सुनते हैं।17।



Share On Whatsapp

Leave a comment




Share On Whatsapp

Leave a Comment
Love Aman Singh : 8958169451





Share On Whatsapp

Leave a comment




Share On Whatsapp

Leave a comment




Share On Whatsapp

Leave a comment






Share On Whatsapp

Leave a comment




Share On Whatsapp

Leave a comment




Share On Whatsapp

Leave a Comment
Ramdgopal Singh : waheguru ji




  ‹ Prev Page Next Page ›