धनासरी महला ५ ॥ जिस कउ बिसरै प्रानपति दाता सोई गनहु अभागा ॥ चरन कमल जा का मनु रागिओ अमिअ सरोवर पागा ॥१॥ तेरा जनु राम नाम रंगि जागा ॥ आलसु छीजि गइआ सभु तन ते प्रीतम सिउ मनु लागा ॥ रहाउ ॥ जह जह पेखउ तह नाराइण सगल घटा महि तागा ॥ नाम उदकु पीवत जन नानक तिआगे सभि अनुरागा ॥२॥१६॥४७॥

अर्थ :-हे भाई ! उस मनुख को बद-किस्मत समझो, जिस को जीवन का स्वामी-भगवान विसर जाता है। जिस मनुख का मन परमात्मा के कोमल चरणों का प्रेमी हो जाता है, वह मनुख आत्मिक जीवन देने वाले नाम-जल का सरोवर खोज लेता है।1।हे भगवान ! तेरा सेवक तेरे नाम-रंग में टिक के (माया के मोह की तरफ से सदा) सुचेत रहता है। उस के शरीर में से सारा आलस खत्म हो जाता है, उस का मन, (हे भाई !) प्रीतम-भगवान के साथ जुड़ा रहता है।रहाउ। हे भाई ! (उस के सुमिरन की बरकत के साथ) मैं (भी) जिधर जिधर देखता हूँ, ऊपर ऊपर परमात्मा ही सारे शरीरो में मौजूद दिखता है जैसे धागा (सारे मोतियों में पिरोया होता है)। हे नानक ! भगवान के दास उस का नाम-जल पीते हुए ही ओर सारे मोह-प्यार छोड़ देते हैं।2।19।47।



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ਅੰਗ : 682
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਜਿਸ ਕਉ ਬਿਸਰੈ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਦਾਤਾ ਸੋਈ ਗਨਹੁ ਅਭਾਗਾ ॥ ਚਰਨ ਕਮਲ ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਰਾਗਿਓ ਅਮਿਅ ਸਰੋਵਰ ਪਾਗਾ ॥੧॥ ਤੇਰਾ ਜਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਰੰਗਿ ਜਾਗਾ ॥ ਆਲਸੁ ਛੀਜਿ ਗਇਆ ਸਭੁ ਤਨ ਤੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿਉ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਜਹ ਜਹ ਪੇਖਉ ਤਹ ਨਾਰਾਇਣ ਸਗਲ ਘਟਾ ਮਹਿ ਤਾਗਾ ॥ ਨਾਮ ਉਦਕੁ ਪੀਵਤ ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਿਆਗੇ ਸਭਿ ਅਨੁਰਾਗਾ ॥੨॥੧੬॥੪੭॥
धनासरी महला ५ ॥ जिस कउ बिसरै प्रानपति दाता सोई गनहु अभागा ॥ चरन कमल जा का मनु रागिओ अमिअ सरोवर पागा ॥१॥ तेरा जनु राम नाम रंगि जागा ॥ आलसु छीजि गइआ सभु तन ते प्रीतम सिउ मनु लागा ॥ रहाउ ॥ जह जह पेखउ तह नाराइण सगल घटा महि तागा ॥ नाम उदकु पीवत जन नानक तिआगे सभि अनुरागा ॥२॥१६॥४७॥

ਅਰਥ:- ਹੇ ਭਾਈ! ਉਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਬਦ-ਕਿਸਮਤ ਸਮਝੋ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਜਿੰਦ ਦਾ ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਵਿਸਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਮਨ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਕੋਮਲ ਚਰਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰੇਮੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨਾਮ-ਜਲ ਦਾ ਸਰੋਵਰ ਲੱਭ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।1। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰਾ ਸੇਵਕ ਤੇਰੇ ਨਾਮ-ਰੰਗ ਵਿਚ ਟਿਕ ਕੇ (ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਲੋਂ ਸਦਾ) ਸੁਚੇਤ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚੋਂ ਸਾਰਾ ਆਲਸ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦਾ ਮਨ, (ਹੇ ਭਾਈ!) ਪ੍ਰੀਤਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਰਹਾਉ। ਹੇ ਭਾਈ! (ਉਸ ਦੇ ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ) ਮੈਂ (ਭੀ) ਜਿਧਰ ਜਿਧਰ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ, ਉਥੇ ਉਥੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਹੀ ਸਾਰੇ ਸਰੀਰਾਂ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਦਿੱਸਦਾ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਧਾਗਾ (ਸਾਰੇ ਮਣਕਿਆਂ ਵਿਚ ਪ੍ਰੋਇਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ)। ਹੇ ਨਾਨਕ! ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਾਸ ਉਸ ਦਾ ਨਾਮ-ਜਲ ਪੀਂਦਿਆਂ ਹੀ ਹੋਰ ਸਾਰੇ ਮੋਹ-ਪਿਆਰ ਛੱਡ ਦੇਂਦੇ ਹਨ।2। 19। 47।
अर्थ :-हे भाई ! उस मनुख को बद-किस्मत समझो, जिस को जीवन का स्वामी-भगवान विसर जाता है। जिस मनुख का मन परमात्मा के कोमल चरणों का प्रेमी हो जाता है, वह मनुख आत्मिक जीवन देने वाले नाम-जल का सरोवर खोज लेता है।1।हे भगवान ! तेरा सेवक तेरे नाम-रंग में टिक के (माया के मोह की तरफ से सदा) सुचेत रहता है। उस के शरीर में से सारा आलस खत्म हो जाता है, उस का मन, (हे भाई !) प्रीतम-भगवान के साथ जुड़ा रहता है।रहाउ। हे भाई ! (उस के सुमिरन की बरकत के साथ) मैं (भी) जिधर जिधर देखता हूँ, ऊपर ऊपर परमात्मा ही सारे शरीरो में मौजूद दिखता है जैसे धागा (सारे मोतियों में पिरोया होता है)। हे नानक ! भगवान के दास उस का नाम-जल पीते हुए ही ओर सारे मोह-प्यार छोड़ देते हैं।2।19।47।



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