ਲਖ ਖੁਸੀਆ ਪਾਤਿਸਾਹੀਆ ਜੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥
ਨਿਮਖ ਏਕ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੇਇ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਹੋਇ ||



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सोरठि महला ५ ॥ गई बहोड़ु बंदी छोड़ु निरंकारु दुखदारी ॥ करमु न जाणा धरमु न जाणा लोभी माइआधारी ॥ नामु परिओ भगतु गोविंद का इह राखहु पैज तुमारी ॥१॥ हरि जीउ निमाणिआ तू माणु ॥ निचीजिआ चीज करे मेरा गोविंदु तेरी कुदरति कउ कुरबाणु ॥ रहाउ ॥ जैसा बालकु भाइ सुभाई लख अपराध कमावै ॥ करि उपदेसु झिड़के बहु भाती बहुड़ि पिता गलि लावै ॥ पिछले अउगुण बखसि लए प्रभु आगै मारगि पावै ॥२॥ हरि अंतरजामी सभ बिधि जाणै ता किसु पहि आखि सुणाईऐ ॥ कहणै कथनि न भीजै गोबिंदु हरि भावै पैज रखाईऐ ॥ अवर ओट मै सगली देखी इक तेरी ओट रहाईऐ ॥३॥ होइ दइआलु किरपालु प्रभु ठाकुरु आपे सुणै बेनंती ॥ पूरा सतगुरु मेलि मिलावै सभ चूकै मन की चिंती ॥ हरि हरि नामु अवखदु मुखि पाइआ जन नानक सुखि वसंती ॥४॥१२॥६२॥

अर्थ: हे प्रभू! तूँ (आत्मिक जीवन की) लुप्त हो चुकी (रास-पूँजी) को वापिस दिलाने वाला हैं, तुँ (विकारों की) कैद से छुड़ाने वाला हैं, तेरा कोई खास स्वरूप बयान नहीं किया जा सकता, तूँ (जीवों को दुःख में धीरज देने वाला हैं। हे प्रभू! मैं कोई अच्छा कर्म कोई अच्छा धर्म करना नहीं जनता, मैं लोभ में फँसा रहता हूँ, मैं माया के मोह में ग्रस्त रहता हूँ। परन्तु हे प्रभू! मेरा नाम “गोबिंद का भगत” पड़ चुका है। सो, अब तूँ अपने नाम की आप लाज रख ॥१॥ हे प्रभू जी! तूँ उन लोगो को मान देता हैं, जिनका कोई मान नहीं करता। मैं तेरी ताकत से सदके जाता हूँ। हे भाई! मेरा गोबिंद नाकाम और नकारे गए लोगों को भी आदर के योग्य बना देता है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! जैसे कोई बच्चा अपनी लग्न अनुसार स्वभाव अनुसार लाखों गलतियाँ करता है, उस का पिता उस को शिक्षा दे दे कर कई तरीकों से झिड़कता भी है, परन्तु फिर अपने गल से (उस को) लगा लेता है, इसी तरह प्रभू-पिता भी जीवों के पिछले गुनाह बख़्श लेता है, और आगे के लिए (जीवन के) ठीक रास्ते पर पा देता है ॥२॥ हे भाई! परमात्मा प्रत्येक के दिल की जानने वाला है, (जीवों की) प्रत्येक (आत्मिक) हालत को जानता है। (उस को छोड़ कर) अन्य किस पास (अपनी हालत) कह कर सुनाई जा सकती है ? हे भाई! परमात्मा केवल जुबानी बातों से ख़ुश नहीं होता। (कार्या कर के जो मनुष्य) परमात्मा को अच्छा लग जाता है, उस की वह इज़्ज़त रख लेता है। हे प्रभू! मैं अन्य सभी आसरे देख लिए हैं, मैं एक तेरा आसरा ही रखा हुआ है ॥३॥ हे भाई! मालिक-प्रभू दयावान हो कर कृपाल हो कर आप ही (जिस मनुष्य की) बेनती सुन लेता है, उसको पूरा गुरू मिला देता है (इस तरह, उस मनुष्य के) मन की प्रत्येक चिंता ख़त्म हो जाती है। दास नानक जी! (कहो – गुरू जिस मनुष्य के) मुँह में परमात्मा की नाम-दवाई पा देता है, वह मनुष्य आत्मिक आनंद में जीवन बितीत करता है ॥४॥१२॥६२॥



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ਅੰਗ : 624

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਗਈ ਬਹੋੜੁ ਬੰਦੀ ਛੋੜੁ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਦੁਖਦਾਰੀ ॥ ਕਰਮੁ ਨ ਜਾਣਾ ਧਰਮੁ ਨ ਜਾਣਾ ਲੋਭੀ ਮਾਇਆਧਾਰੀ ॥ ਨਾਮੁ ਪਰਿਓ ਭਗਤੁ ਗੋਵਿੰਦ ਕਾ ਇਹ ਰਾਖਹੁ ਪੈਜ ਤੁਮਾਰੀ ॥੧॥ ਹਰਿ ਜੀਉ ਨਿਮਾਣਿਆ ਤੂ ਮਾਣੁ ॥ ਨਿਚੀਜਿਆ ਚੀਜ ਕਰੇ ਮੇਰਾ ਗੋਵਿੰਦੁ ਤੇਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਕਉ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਜੈਸਾ ਬਾਲਕੁ ਭਾਇ ਸੁਭਾਈ ਲਖ ਅਪਰਾਧ ਕਮਾਵੈ ॥ ਕਰਿ ਉਪਦੇਸੁ ਝਿੜਕੇ ਬਹੁ ਭਾਤੀ ਬਹੁੜਿ ਪਿਤਾ ਗਲਿ ਲਾਵੈ ॥ ਪਿਛਲੇ ਅਉਗੁਣ ਬਖਸਿ ਲਏ ਪ੍ਰਭੁ ਆਗੈ ਮਾਰਗਿ ਪਾਵੈ ॥੨॥ ਹਰਿ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਸਭ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ਤਾ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਆਖਿ ਸੁਣਾਈਐ ॥ ਕਹਣੈ ਕਥਨਿ ਨ ਭੀਜੈ ਗੋਬਿੰਦੁ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਪੈਜ ਰਖਾਈਐ ॥ ਅਵਰ ਓਟ ਮੈ ਸਗਲੀ ਦੇਖੀ ਇਕ ਤੇਰੀ ਓਟ ਰਹਾਈਐ ॥੩॥ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ਕਿਰਪਾਲੁ ਪ੍ਰਭੁ ਠਾਕੁਰੁ ਆਪੇ ਸੁਣੈ ਬੇਨੰਤੀ ॥ ਪੂਰਾ ਸਤਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵੈ ਸਭ ਚੂਕੈ ਮਨ ਕੀ ਚਿੰਤੀ ॥ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਵਖਦੁ ਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸੁਖਿ ਵਸੰਤੀ ॥੪॥੧੨॥੬੨॥

ਅਰਥ : ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ (ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੀ) ਗਵਾਚੀ ਹੋਈ (ਰਾਸਿ-ਪੂੰਜੀ) ਨੂੰ ਵਾਪਸ ਦਿਵਾਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ, ਤੂੰ (ਵਿਕਾਰਾਂ ਦੀ) ਕੈਦ ਵਿਚੋਂ ਛੁਡਾਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ, ਤੇਰਾ ਕੋਈ ਖ਼ਾਸ ਸਰੂਪ ਨਹੀਂ ਦੱਸਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ, ਤੂੰ (ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ) ਦੁੱਖਾਂ ਵਿਚ ਢਾਰਸ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੈਂ ਕੋਈ ਚੰਗਾ ਕਰਮ ਕੋਈ ਚੰਗਾ ਧਰਮ ਕਰਨਾ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦਾ, ਮੈਂ ਲੋਭ ਵਿਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਗ੍ਰਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ। ਪਰ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੇਰਾ ਨਾਮ ‘ਗੋਬਿੰਦ ਦਾ ਭਗਤ’ ਪੈ ਗਿਆ ਹੈ। ਸੋ, ਹੁਣ ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਨਾਮ ਦੀ ਆਪ ਲਾਜ ਰੱਖ ॥੧॥ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ ਜੀ! ਤੂੰ ਉਹਨਾਂ ਬੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਮਾਣ ਦੇਂਦਾ ਹੈਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਮਾਣ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ। ਮੈਂ ਤੇਰੀ ਤਾਕਤ ਤੋਂ ਸਦਕੇ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ। ਹੇ ਭਾਈ! ਮੇਰਾ ਗੋਬਿੰਦ ਨਕਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਭੀ ਆਦਰ-ਜੋਗ ਬਣਾ ਦੇਂਦਾ ਹੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਜਿਵੇਂ ਕੋਈ ਬੱਚਾ ਆਪਣੀ ਲਗਨ ਅਨੁਸਾਰ ਸੁਭਾਵ ਅਨੁਸਾਰ ਲੱਖਾਂ ਗ਼ਲਤੀਆਂ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦਾ ਪਿਉ ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਦੇ ਕੇ ਕਈ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਝਿੜਕਦਾ ਭੀ ਹੈ, ਪਰ ਫਿਰ ਆਪਣੇ ਗਲ ਨਾਲ (ਉਸ ਨੂੰ) ਲਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ, ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਭੂ-ਪਿਤਾ ਭੀ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਪਿਛਲੇ ਗੁਨਾਹ ਬਖ਼ਸ਼ ਲੈਂਦਾ ਹੈ, ਤੇ ਅਗਾਂਹ ਵਾਸਤੇ (ਜੀਵਨ ਦੇ) ਠੀਕ ਰਸਤੇ ਉਤੇ ਪਾ ਦੇਂਦਾ ਹੈ ॥੨॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਹਰੇਕ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਜਾਣਨ ਵਾਲਾ ਹੈ, (ਜੀਵਾਂ ਦੀ) ਹਰੇਕ (ਆਤਮਕ) ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਦਾ ਹੈ। (ਉਸ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ) ਹੋਰ ਕਿਸ ਪਾਸ (ਆਪਣੀ ਬਿਰਥਾ) ਆਖ ਕੇ ਸੁਣਾਈ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ? ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਿਰੀਆਂ ਜ਼ਬਾਨੀ ਗੱਲਾਂ ਨਾਲ ਖ਼ੁਸ਼ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ। (ਕਰਣੀ ਕਰ ਕੇ ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ ਚੰਗਾ ਲੱਗ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦੀ ਉਹ ਇੱਜ਼ਤ ਰੱਖ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੈਂ ਹੋਰ ਸਾਰੇ ਆਸਰੇ ਵੇਖ ਲਏ ਹਨ, ਮੈਂ ਇਕ ਤੇਰਾ ਆਸਰਾ ਹੀ ਰੱਖਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ॥੩॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਦਇਆਵਾਨ ਹੋ ਕੇ ਕਿਰਪਾਲ ਹੋ ਕੇ ਆਪ ਹੀ (ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦੀ) ਬੇਨਤੀ ਸੁਣ ਲੈਂਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾ ਦੇਂਦਾ ਹੈ (ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ, ਉਸ ਮਨੁੱਖ ਦੇ) ਮਨ ਦੀ ਹਰੇਕ ਚਿੰਤਾ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਦਾਸ ਨਾਨਕ ਜੀ! (ਆਖੋ – ਗੁਰੂ ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦੇ) ਮੂੰਹ ਵਿਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ-ਦਵਾਈ ਪਾ ਦੇਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਵਿਚ ਜੀਵਨ ਬਿਤੀਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ॥੪॥੧੨॥੬੨॥



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सोरठि महला १ ॥ जिन्ही सतिगुरु सेविआ पिआरे तिन्ह के साथ तरे ॥ तिन्हा ठाक न पाईऐ पिआरे अम्रित रसन हरे ॥ बूडे भारे भै बिना पिआरे तारे नदरि करे ॥१॥ भी तूहै सालाहणा पिआरे भी तेरी सालाह ॥ विणु बोहिथ भै डुबीऐ पिआरे कंधी पाइ कहाह ॥१॥ रहाउ ॥ सालाही सालाहणा पिआरे दूजा अवरु न कोइ ॥ मेरे प्रभ सालाहनि से भले पिआरे सबदि रते रंगु होइ ॥ तिस की संगति जे मिलै पिआरे रसु लै ततु विलोइ ॥२॥ पति परवाना साच का पिआरे नामु सचा नीसाणु ॥ आइआ लिखि लै जावणा पिआरे हुकमी हुकमु पछाणु ॥ गुर बिनु हुकमु न बूझीऐ पिआरे साचे साचा ताणु ॥३॥ हुकमै अंदरि निमिआ पिआरे हुकमै उदर मझारि ॥ हुकमै अंदरि जमिआ पिआरे ऊधउ सिर कै भारि ॥ गुरमुखि दरगह जाणीऐ पिआरे चलै कारज सारि ॥४॥ हुकमै अंदरि आइआ पिआरे हुकमे जादो जाइ ॥ हुकमे बंन्हि चलाईऐ पिआरे मनमुखि लहै सजाइ ॥ हुकमे सबदि पछाणीऐ पिआरे दरगह पैधा जाइ ॥५॥ हुकमे गणत गणाईऐ पिआरे हुकमे हउमै दोइ ॥ हुकमे भवै भवाईऐ पिआरे अवगणि मुठी रोइ ॥ हुकमु सिञापै साह का पिआरे सचु मिलै वडिआई होइ ॥६॥ आखणि अउखा आखीऐ पिआरे किउ सुणीऐ सचु नाउ ॥ जिन्ही सो सालाहिआ पिआरे हउ तिन्ह बलिहारै जाउ ॥ नाउ मिलै संतोखीआं पिआरे नदरी मेलि मिलाउ ॥७॥ काइआ कागदु जे थीऐ पिआरे मनु मसवाणी धारि ॥ ललता लेखणि सच की पिआरे हरि गुण लिखहु वीचारि ॥ धनु लेखारी नानका पिआरे साचु लिखै उरि धारि ॥८॥३॥

अर्थ: जिन लोगों ने सतिगुरू का पल्ला पकड़ा है, हे सज्जन! उनके संगी-साथी भी पार लांघ जाते हैं। जिनकी जीभ परमात्मा का नाम-अमृत चखती है उनके (जीवन-यात्रा में विकार आदि की) रुकावटें नहीं पड़ती। हे सज्जन! जो लोग परमात्मा के डर-अदब से वंचित रहते हैं वे विकारों के भार से लादे जाते हैं और संसार समुंद्र में डूब जाते हैं। पर जब परमात्मा मेहर की निगाह करता है तो उनको भी पार लंघा लेता है।1। हे सज्जन प्रभू! सदा तुझे ही सलाहना चाहिए, हमेशा तेरी ही सिफत सालाह करनी चाहिए। (इस संसार-समुंद्र में से पार लांघने के लिए तेरी सिफत सालाह ही जीवों के लिए जहाज है, इस) जहाज के बिना भव-सागर में डूब जाते हैं। (कोई भी जीव समुंद्र का) दूसरा छोर ढूँढ नहीं सकता। रहाउ। हे सज्जन! सलाहने योग्य परमात्मा की सिफत सालाह करनी चाहिए, उस जैसा और कोई नहीं है। जो लोग प्यारे प्रभू की सिफत सालाह करते हैं वे भाग्यशाली हैं। गुरू के शबद में गहरी लगन रखने वाले व्यक्ति को परमात्मा का प्रेम रंग चढ़ता है। ऐसे आदमी की संगति अगर (किसी को) प्राप्त हो जाए तो वह हरी नाम का रस लेता है। और (नाम-दूध को) मथ के वह जगत के मूल प्रभू में मिल जाता है।2। हे भाई! सदा स्थिर रहने वाले प्रभू का नाम प्रभू-पति को मिलने के लिए (इस जीवन-सफर में) राहदारी है, ये नाम सदा-स्थिर रहने वाली मेहर है। (प्रभू का यही हुकम है कि) जगत में जो भी आया है उसने (प्रभू को मिलने के लिए, ये नाम-रूपी राहदारी) लिख के अपने साथ ले जानी है। हे भाई! प्रभू की इस आज्ञा को समझ (पर इस हुकम को समझने के लिए गुरू की शरण पड़ना पड़ेगा) गुरू के बिना प्रभू का हुकम समझा नहीं जा सकता। हे भाई! (जो मनुष्य गुरू की शरण पड़ के समझ लेता है, विकारों का मुकाबला करने के लिए उसको) सदा-स्थिर प्रभू का बल हासिल हो जाता है।3। हे भाई! जीव परमात्मा के हुकम अनुसार (पहले) माता के गर्भ में ठहरता है, और माँ के पेट में (दस महीने निवास रखता है)। उल्टे सिर भार रह के प्रभू के हुकम अनुसार ही (फिर) जनम लेता है। (किसी खास जीवन उद्देश्य के लिए ही जीव जगत में आता है) जो जीव गुरू की शरण पड़ कर जीवन-उद्देश्य को सँवार के यहाँ से जाता है वही परमात्मा की हजूरी में आदर पाता है।4। हे सज्जन! परमात्मा की रजा के अनुसार ही जीव जगत में आता है, रजा के अनुसार ही यहाँ से चला जाता है। जो मनुष्य अपने मन के पीछे चलता है (और माया के मोह में फस जाता है) उसे प्रभू की रजा के अनुसार ही बाँध के (भाव, जबरदस्ती) यहाँ से रवाना किया जाता है (क्योंकि मोह के कारण वह इस माया को छोड़ना नहीं चाहता)। परमात्मा की रजा के अनुसार ही जिसने गुरू के शबद के द्वारा (जीवन-उद्देश्य को) पहचान लिया है वह परमात्मा की हजूरी में आदर सहित जाता है।5। हे भाई! परमात्मा की रजा के अनुसार ही (कहीं) माया की सोच सोची जा रही है, प्रभू की रजा में ही कहीं अहंकार व कहीं द्वैत है। प्रभू की रजा के अनुसार ही (कहीं कोई माया की खातिर) भटक रहा है, (कहीं कोई) जनम-मरन के चक्कर में डाला जा रहा है, कहीं पाप की ठॅगी हुई दुनिया (अपने दुख) रो रही है। जिस मनुष्य को शाह-प्रभू की रजा की समझ आ जाती है, उसे सदा-स्थिर रहने वाला प्रभू मिल जाता है, उसकी (लोक-परलोक में) उपमा होती है।6। हे भाई! (जगत में माया का प्रभाव इतना है कि) परमात्मा का सदा-स्थिर रहने वाला नाम सिमरना बड़ा कठिन हो रहा है, ना ही प्रभू-नाम सुना जा रहा है (माया के प्रभाव तले जीव नाम नहीं सिमरते, नाम नहीं सुनते)। हे भाई! मैं उन लोगों से कुर्बान जाता हूँ जिन्होंने प्रभू की सिफत सालाह की है। (मेरी यही प्रार्थना है कि उन की संगति में) मुझे भी नाम मिले और मेरा जीवन संतोषी हो जाए, मेहर की नज़र वाले प्रभू के चरणों में मैं जुड़ा रहूँ।7। हे भाई! हमारा शरीर कागज बन जाए, यदि मन को स्याही की दवात बना लें, यदि हमारी जीभ प्रभू की सिफत सालाह बनने के लिए कलम बन जाए, तो हे भाई! (सौभाग्य इसी बात में है कि) परमात्मा के गुणों को अपने विचार-मण्डल में ला के (अपने अंदर) उकरते चलो। हे नानक! वह लिखारी धन्य है जो सदा-स्थिर प्रभू के नाम को हृदय में टिका के (अपने अंदर) उकर लेता है।8।3।



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ਅੰਗ : 636

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੧ ॥ ਜਿਨ੍ਹੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਪਿਆਰੇ ਤਿਨ੍ਹ ਕੇ ਸਾਥ ਤਰੇ ॥ ਤਿਨ੍ਹਾ ਠਾਕ ਨ ਪਾਈਐ ਪਿਆਰੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸਨ ਹਰੇ ॥ ਬੂਡੇ ਭਾਰੇ ਭੈ ਬਿਨਾ ਪਿਆਰੇ ਤਾਰੇ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੧॥ ਭੀ ਤੂਹੈ ਸਾਲਾਹਣਾ ਪਿਆਰੇ ਭੀ ਤੇਰੀ ਸਾਲਾਹ ॥ ਵਿਣੁ ਬੋਹਿਥ ਭੈ ਡੁਬੀਐ ਪਿਆਰੇ ਕੰਧੀ ਪਾਇ ਕਹਾਹ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਸਾਲਾਹੀ ਸਾਲਾਹਣਾ ਪਿਆਰੇ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਸਾਲਾਹਨਿ ਸੇ ਭਲੇ ਪਿਆਰੇ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਰੰਗੁ ਹੋਇ ॥ ਤਿਸ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਜੇ ਮਿਲੈ ਪਿਆਰੇ ਰਸੁ ਲੈ ਤਤੁ ਵਿਲੋਇ ॥੨॥ ਪਤਿ ਪਰਵਾਨਾ ਸਾਚ ਕਾ ਪਿਆਰੇ ਨਾਮੁ ਸਚਾ ਨੀਸਾਣੁ ॥ ਆਇਆ ਲਿਖਿ ਲੈ ਜਾਵਣਾ ਪਿਆਰੇ ਹੁਕਮੀ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੁ ॥ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੀਐ ਪਿਆਰੇ ਸਾਚੇ ਸਾਚਾ ਤਾਣੁ ॥੩॥ ਹੁਕਮੈ ਅੰਦਰਿ ਨਿੰਮਿਆ ਪਿਆਰੇ ਹੁਕਮੈ ਉਦਰ ਮਝਾਰਿ ॥ ਹੁਕਮੈ ਅੰਦਰਿ ਜੰਮਿਆ ਪਿਆਰੇ ਊਧਉ ਸਿਰ ਕੈ ਭਾਰਿ ॥ ਗੁਰਮੁਖਿ ਦਰਗਹ ਜਾਣੀਐ ਪਿਆਰੇ ਚਲੈ ਕਾਰਜ ਸਾਰਿ ॥੪॥ ਹੁਕਮੈ ਅੰਦਰਿ ਆਇਆ ਪਿਆਰੇ ਹੁਕਮੇ ਜਾਦੋ ਜਾਇ ॥ ਹੁਕਮੇ ਬੰਨ੍ਹਿ ਚਲਾਈਐ ਪਿਆਰੇ ਮਨਮੁਖਿ ਲਹੈ ਸਜਾਇ ॥ ਹੁਕਮੇ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੀਐ ਪਿਆਰੇ ਦਰਗਹ ਪੈਧਾ ਜਾਇ ॥੫॥ ਹੁਕਮੇ ਗਣਤ ਗਣਾਈਐ ਪਿਆਰੇ ਹੁਕਮੇ ਹਉਮੈ ਦੋਇ ॥ ਹੁਕਮੇ ਭਵੈ ਭਵਾਈਐ ਪਿਆਰੇ ਅਵਗਣਿ ਮੁਠੀ ਰੋਇ ॥ ਹੁਕਮੁ ਸਿਞਾਪੈ ਸਾਹ ਕਾ ਪਿਆਰੇ ਸਚੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਹੋਇ ॥੬॥ ਆਖਣਿ ਅਉਖਾ ਆਖੀਐ ਪਿਆਰੇ ਕਿਉ ਸੁਣੀਐ ਸਚੁ ਨਾਉ ॥ ਜਿਨ੍ਹੀ ਸੋ ਸਾਲਾਹਿਆ ਪਿਆਰੇ ਹਉ ਤਿਨ੍ਹ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥ ਨਾਉ ਮਿਲੈ ਸੰਤੋਖੀਆਂ ਪਿਆਰੇ ਨਦਰੀ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਉ ॥੭॥ ਕਾਇਆ ਕਾਗਦੁ ਜੇ ਥੀਐ ਪਿਆਰੇ ਮਨੁ ਮਸਵਾਣੀ ਧਾਰਿ ॥ ਲਲਤਾ ਲੇਖਣਿ ਸਚ ਕੀ ਪਿਆਰੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਲਿਖਹੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥ ਧਨੁ ਲੇਖਾਰੀ ਨਾਨਕਾ ਪਿਆਰੇ ਸਾਚੁ ਲਿਖੈ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥੮॥੩॥

ਅਰਥ : ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਬੰਦਿਆਂ ਨੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦਾ ਪੱਲਾ ਫੜਿਆ ਹੈ, ਹੇ ਸੱਜਣ! ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਸੰਗੀ-ਸਾਥੀ ਭੀ ਪਾਰ ਲੰਘ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜੀਭ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ-ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਚੱਖਦੀ ਹੈ ਉਹਨਾਂ ਦੇ (ਜੀਵਨ-ਸਫ਼ਰ ਵਿਚ ਵਿਕਾਰ ਆਦਿਕਾਂ ਦੀ) ਰੁਕਾਵਟ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦੀ। ਹੇ ਸੱਜਣ! ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਡਰ-ਅਦਬ ਤੋਂ ਸੱਖਣੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਉਹ ਵਿਕਾਰਾਂ ਦੇ ਭਾਰ ਨਾਲ ਲੱਦੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਸੰਸਾਰ-ਸਮੁੰਦਰ ਵਿਚ ਡੁੱਬ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਪਰ ਜਦੋਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਮੇਹਰ ਦੀ ਨਿਗਾਹ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਭੀ ਪਾਰ ਲੰਘਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ॥੧॥ ਹੇ ਸੱਜਣ-ਪ੍ਰਭੂ! ਸਦਾ ਤੈਨੂੰ ਹੀ ਸਾਲਾਹਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਸਦਾ ਤੇਰੀ ਹੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ। (ਇਸ ਸੰਸਾਰ-ਸਮੁੰਦਰ ਵਿਚੋਂ ਪਾਰ ਲੰਘਣ ਵਾਸਤੇ ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਜੀਵਾਂ ਵਾਸਤੇ ਜਹਾਜ਼ ਹੈ, ਇਸ) ਜਹਾਜ਼ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਭਉ-ਸਾਗਰ ਵਿਚ ਡੁੱਬ ਜਾਈਦਾ ਹੈ। (ਕੋਈ ਭੀ ਜੀਵ ਸਮੁੰਦਰ ਦਾ) ਪਾਰਲਾ ਕੰਢਾ ਲੱਭ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹੇ ਸੱਜਣ! ਸਾਲਾਹਣ-ਜੋਗ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ, ਉਸ ਵਰਗਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਜੇਹੜੇ ਬੰਦੇ ਪਿਆਰੇ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਦੇ ਹਨ ਉਹ ਭਾਗਾਂ ਵਾਲੇ ਹਨ। ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਵਿਚ ਡੂੰਘੀ ਲਗਨ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਪ੍ਰੇਮ-ਰੰਗ ਚੜ੍ਹਦਾ ਹੈ। ਅਜੇਹੇ ਬੰਦੇ ਦੀ ਸੰਗਤਿ ਜੇ (ਕਿਸੇ ਨੂੰ) ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਏ ਤਾਂ ਉਹ ਹਰੀ-ਨਾਮ ਦਾ ਰਸ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਤੇ (ਨਾਮ-ਦੁੱਧ ਨੂੰ) ਰਿੜਕ ਕੇ ਉਹ ਜਗਤ ਮੂਲ-ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਮਿਲ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ॥੨॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਨਾਮ ਪ੍ਰਭੂ-ਪਤੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਸਤੇ (ਇਸ ਜੀਵਨ-ਸਫ਼ਰ ਵਿਚ) ਰਾਹਦਾਰੀ ਹੈ, ਇਹ ਨਾਮ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ ਮੋਹਰ ਹੈ। (ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਇਹੀ ਹੁਕਮ ਹੈ ਕਿ) ਜਗਤ ਵਿਚ ਜੋ ਭੀ ਆਇਆ ਹੈ ਉਸ ਨੇ (ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਸਤੇ, ਇਹ ਨਾਮ-ਰੂਪ ਰਾਹਦਾਰੀ) ਲਿਖ ਕੇ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਲੈ ਜਾਣੀ ਹੈ। ਹੇ ਭਾਈ! ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਇਸ ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਸਮਝ (ਪਰ ਇਸ ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਲਈ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਪੈਣਾ ਪਏਗਾ) ਗੁਰੂ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਹੁਕਮ ਸਮਝਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਹੇ ਭਾਈ! (ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਪੈ ਕੇ ਸਮਝ ਲੈਂਦਾ ਹੈ, ਵਿਕਾਰਾਂ ਦਾ ਟਾਕਰਾ ਕਰਨ ਲਈ ਉਸ ਨੂੰ) ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਬਲ ਹਾਸਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ॥੩॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਜੀਵ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ (ਪਹਿਲਾਂ) ਮਾਤਾ ਦੇ ਗਰਭ ਵਿਚ ਟਿਕਦਾ ਹੈ, ਤੇ ਮਾਂ ਦੇ ਪੇਟ ਵਿਚ (ਦਸ ਮਹੀਨੇ ਨਿਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਹੈ)। ਪੁੱਠਾ ਸਿਰ ਭਾਰ ਰਹਿ ਕੇ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ (ਫਿਰ) ਜਨਮ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। (ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਜੀਵਨ-ਮਨੋਰਥ ਵਾਸਤੇ ਜੀਵ ਜਗਤ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ) ਜੋ ਜੀਵ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਪੈ ਕੇ ਜੀਵਨ-ਮਨੋਰਥ ਨੂੰ ਸਵਾਰ ਕੇ ਇਥੋਂ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਵਿਚ ਆਦਰ ਪਾਂਦਾ ਹੈ ॥੪॥ ਹੇ ਸੱਜਣ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਜੀਵ ਜਗਤ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ, ਰਜ਼ਾ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਇਥੋਂ ਚਲਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਤੁਰਦਾ ਹੈ (ਤੇ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਫਸ ਜਾਂਦਾ ਹੈ) ਉਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਬੰਨ੍ਹ ਕੇ (ਭਾਵ, ਜੋਰੋ ਜੋਰੀ) ਇਥੋਂ ਤੋਰਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ (ਕਿਉਂਕਿ ਮੋਹ ਦੇ ਕਾਰਨ ਉਹ ਇਸ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਛੱਡਣਾ ਨਹੀਂ ਚਾਹੁੰਦਾ)। ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਜਿਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਰਾਹੀਂ (ਜਨਮ-ਮਨੋਰਥ ਨੂੰ) ਪਛਾਣ ਲਿਆ ਹੈ ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਵਿਚ ਆਦਰ ਨਾਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ॥੫॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ (ਕਿਤੇ) ਮਾਇਆ ਦੀ ਸੋਚ ਸੋਚੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ, ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਵਿਚ ਹੀ ਕਿਤੇ ਹਉਮੈ ਹੈ ਕਿਤੇ ਦ੍ਵੈਤ ਹੈ। ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ (ਕਿਤੇ ਕੋਈ ਮਾਇਆ ਦੀ ਖ਼ਾਤਰ) ਭਟਕ ਰਿਹਾ ਹੈ, (ਕਿਤੇ ਕੋਈ) ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੇ ਗੇੜ ਵਿਚ ਪਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਕਿਤੇ ਪਾਪ ਦੀ ਠੱਗੀ ਹੋਈ ਲੋਕਾਈ (ਆਪਣੇ ਦੁੱਖ) ਰੋ ਰਹੀ ਹੈ। ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹ-ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਦੀ ਸਮਝ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦੀ (ਲੋਕ ਪਰਲੋਕ ਵਿਚ) ਵਡਿਆਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ॥੬॥ ਹੇ ਭਾਈ! (ਜਗਤ ਵਿਚ ਮਾਇਆ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਇਤਨਾ ਹੈ ਕਿ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਨਾ ਬੜਾ ਕਠਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਨਾਹ ਹੀ ਪ੍ਰਭੂ-ਨਾਮ ਸੁਣਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ (ਮਾਇਆ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੇਠ ਜੀਵ ਨਾਮ ਨਹੀਂ ਸਿਮਰਦੇ, ਨਾਮ ਨਹੀਂ ਸੁਣਦੇ)। ਹੇ ਭਾਈ! ਮੈਂ ਉਹਨਾਂ ਬੰਦਿਆਂ ਤੋਂ ਕੁਰਬਾਨ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਕੀਤੀ ਹੈ। (ਮੇਰੀ ਇਹੀ ਅਰਦਾਸ ਹੈ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਸੰਗਤਿ ਵਿਚ) ਮੈਨੂੰ ਭੀ ਨਾਮ ਮਿਲੇ ਤੇ ਮੇਰਾ ਜੀਵਨ ਸੰਤੋਖੀ ਹੋ ਜਾਏ, ਮੇਹਰ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਮੈਂ ਜੁੜਿਆ ਰਹਾਂ ॥੭॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਜੇ ਸਾਡਾ ਸਰੀਰ ਕਾਗ਼ਜ਼ ਬਣ ਜਾਏ, ਜੇ ਮਨ ਨੂੰ ਸਿਆਹੀ ਦੀ ਦਵਾਤ ਬਣਾ ਲਈਏ, ਜੇ ਸਾਡੀ ਜੀਭ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਲਿਖਣ ਲਈ ਕਲਮ ਬਣ ਜਾਏ, ਤਾਂ, ਹੇ ਭਾਈ! (ਸੁਭਾਗਤਾ ਇਸੇ ਗੱਲ ਵਿਚ ਹੈ ਕਿ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਗੁਣਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸੋਚ-ਮੰਦਰ ਵਿਚ ਲਿਆ ਕੇ (ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ) ਉੱਕਰਦੇ ਚੱਲੋ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਉਹ ਲਿਖਾਰੀ ਭਾਗਾਂ ਵਾਲਾ ਹੈ ਜੋ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਨਾਮ ਨੂੰ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਟਿਕਾ ਕੇ (ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ) ਉੱਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ॥੮॥੩॥



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SIMRANJOT SINGH : Waheguru Ji🙏

ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਵਿਆਹ ਅਸਥਾਨ ਸਾਹਿਬ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਅਤੇ ਮਾਤਾ ਗੁਜਰੀ ਜੀ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਰਬਾਬੀਆਂ ਵਾਲੀ ਗਲੀ ਵਿਚ ਸਥਿਤ ਹੈ | ਇਸ ਪਾਵਨ ਅਸਥਾਨ ਉੱਪਰ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ, ਬਾਬਾ ਤਿਆਗ ਮੱਲ (ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਸਾਹਿਬ) ਨੂੰ ਵਿਆਹੁਣ ਵਾਸਤੇ ਬਰਾਤ ਲੈ ਕੇ ਆਏ ਸਨ, ਜਿੱਥੇ ਪਿਤਾ ਲਾਲ ਚੰਦ ਸੁਭਿਖੀ ਖੱਤਰੀ ਤੇ ਮਾਤਾ ਬਿਸ਼ਨ ਕੌਰ (ਦੇਈ) ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ਮਾਤਾ ਗੁਜਰੀ ਨਾਲ 30 ਸਤੰਬਰ 1632 ਈ: (15 ਅੱਸੂ, ਗਿਆਨੀ ਗਿਆਨ ਸਿੰਘ ਤਵਾਰੀਖ ਖ਼ਾਲਸਾ) ਨੂੰ ਇਸ ਪਾਵਨ ਅਸਥਾਨ ਉੱਪਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਵਿਆਹ ਹੋਇਆ | ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਹੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਪੁੱਤਰ ਸੂਰਜ ਮੱਲ ਦੀ ਸ਼ਾਦੀ ਪ੍ਰੇਮ ਚੰਦ ਸਿਲੀ ਦੀ ਲੜਕੀ ਖੇਮ ਕੌਰ ਨਾਲ ਹੋਈ ਸੀ | ਬਰਾਤ ਗੁਰੂ ਕੇ ਮਹਿਲ ਅੰਮਿ੍ਤਸਰ ਤੋਂ ਚੱਲ ਕੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਗੰਗਸਰ ਸਾਹਿਬ ਪੁੱਜੀ ਜਿੱਥੋਂ ਤਿਆਰ ਹੋ ਕੇ ਸ਼ਹਿਰ ਅੰਦਰ ਚਾਲੇ ਪਾਏ | ਇਸ ਬਰਾਤ ‘ਚ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਸਾਹਿਬ ਵੀ ਆਏ ਸਨ | ਇਸ ਵਿਆਹ ਦੌਰਾਨ ਹੀ ਪ੍ਰੇਮ ਚੰਦ ਨਾਲ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਕੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਮੰਗਣੀ ਮਾਤਾ ਗੁਜਰੀ ਜੀ ਨਾਲ ਇਸ ਵਿਆਹ ਦੌਰਾਨ ਹੀ ਹੋ ਗਈ | ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਰਿਵਾਰ ਅੰਮਿ੍ਤਸਰ ਦੀ ਜੰਗ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਆ ਕੇ ਰਹਿਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਸੀ | ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਰਾਤ ਸ਼ੀਸ਼ ਮਹਿਲ ਵਿਚੋਂ ਤੁਰੀ ਤੇ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਥੰਮ੍ਹ ਸਾਹਿਬ ਸੀਸ ਨਿਵਾ ਕੇ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਦੀ ਹੁੰਦੀ ਹੋਈ ਇਸ ਪਾਵਨ ਅਸਥਾਨ ਉੱਪਰ ਪੁੱਜੀ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵੰਸ਼ਜ ਡੇਰਾ ਬਾਬਾ ਨਾਨਕ ਤੋਂ, ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵੰਸ਼ਜ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ, ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਵੰਸ਼ਜ ਭੱਲੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ, ਬੀਬੀ ਵੀਰੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪੰਜ ਪੁੱਤਰ ਵੀ ਇਸ ਬਰਾਤ ਦੀ ਸ਼ੋਭਾ ਵਧਾ ਰਹੇ ਸਨ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਅਤੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੇ ਅਨੰਦ ਕਾਰਜ ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ (ਪੋਤਰੇ ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਸਾਹਿਬ ਜੀ) ਨੇ ਕਰਵਾਏ | ਇੱਥੇ ਪਹਿਲਾਂ ਇਕ ਛੋਟੀ ਜਿਹੀ ਯਾਦਗਾਰ ਸੀ, ਜਿਸ ਦੀ ਸੇਵਾ-ਸੰਭਾਲ ਖ਼ਾਲਸਾ ਸੇਵਕ ਜਥਾ ਵਲੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਫਿਰ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਆਈ ਸੇਵਾ ਨਾਲ ਨੇੜੇ ਦੀ ਕੁਝ ਜਗ੍ਹਾ ਖ਼ਰੀਦੀ ਗਈ | ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ ਨੇ ਅੰਮਿ੍ਤਸਰ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜਥੇਦਾਰ ਗੁਰਚਰਨ ਸਿੰਘ ਟੌਹੜਾ ਨਾਲ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਕੇ ਇਤਿਹਾਸ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਕਰਵਾਇਆ ਤਾਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਨੇ ਇਸ ਅਸਥਾਨ ਦੀ ਸੇਵਾ ਬਾਬਾ ਉੱਤਮ ਸਿੰਘ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਕਾਰਸੇਵਾ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਸੌਂਪ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ 51 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦੀ ਸੇਵਾ ਦੇ ਕੇ ਇਸ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਖੁਦ ਨੀਂਹ ਪੱਥਰ ਰੱਖ ਕੇ 1978 ਵਿਚ ਸੇਵਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਜਿੱਥੇ ਹੁਣ ਇਕ ਸੁੰਦਰ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਵਿਆਹ ਅਸਥਾਨ ਸਾਹਿਬ ਸੁਸ਼ੋਭਿਤ ਹੈ | ਇਸ ਪਾਵਨ ਅਸਥਾਨ ਉੱਪਰ 1984 ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੰਗਤਾਂ ਵਲੋਂ 3 ਦਿਨ ਵਿਆਹ ਪੁਰਬ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਕਰਵਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਕਵੀ ਦਰਬਾਰ, ਭਾਸ਼ਨ ਮੁਕਾਬਲੇ, ਕੀਰਤਨ ਮੁਕਾਬਲੇ ਅਤੇ ਕੀਰਤਨ ਦਰਬਾਰ ਸਕੂਲ ਤੇ ਕਾਲਜ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਕਰਵਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ਪਰ ਕੁਝ ਸਮਾਂ ਇਹ ਸਮਾਗਮ ਨਾ ਹੋ ਸਕੇ | ਮਾਤਾ ਗੁਜਰੀ ਜੀ ਇਸਤਰੀ ਸਤਿਸੰਗ ਸਭਾ ਅਤੇ ਸੰਗਤਾਂ ਸ਼ਰਧਾ ਭਾਵਨਾ ਨਾਲ ਵਿਆਹ ਪੁਰਬ ਸਮਾਗਮ ਕਰਵਾਉਂਦੀਆਂ ਰਹੀਆਂ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਸਦਕਾ ਹੁਣ ਫਿਰ ਇਹ ਵਿਆਹ ਪੁਰਬ ਹਰ ਸਾਲ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ, ਬਾਬਾ ਸੇਵਾ ਸਿੰਘ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਾਲੇ, ਮਾਤਾ ਗੁਜਰੀ ਇਸਤਰੀ ਸਤਿਸੰਗ ਸਭਾ ਅਤੇ ਸੰਗਤਾਂ ਵਲੋਂ ਵੱਡੀ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਭਾਵਨਾ ਨਾਲ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ |



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Ninder Chand : Waheguru Ji

ਅੱਜ ਮੈ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਸਿੱਖ ਸ਼ਹੀਦ ਦਾ ਜਿਕਰ ਕਰਨ ਲੱਗਾ ਜੋ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵੇਲੇ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ਤੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਣ ਦਾ ਮਾਨ ਹਾਸਿਲ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਸਿੱਖ ਬਾਰੇ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਸੰਗਤ ਨੂੰ ਪਤਾ ਹੋਵੇਗਾ ਕਿਉਕਿ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸਿੱਖ ਦਾ ਜਿਕਰ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਆਇਆ ਪਰ ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਸਿੱਖ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਬਾਰੇ ਲਿਖਿਆ ਹੈ । ਤਾਰੂ ਭਾਈ ਜੀ ਦਾ ਨਾਮ ਸੀ ਤੇ ਪੋਪਟ ਇਹਨਾ ਦੀ ਗੋਤ ਸੀ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਹਨਾ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਕਰਕੇ ਹੀ ਆਇਆ ਹੈ । ਆਉ ਇਕ ਝਾਤ ਮਾਰੀਏ ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਵਾਰ ਤੇ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਵੇਲੇ ਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਜਿਕਰ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਤੇ ਬਾਅਦ ਫੇਰ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਤੇ ਇਕ ਝਾਤ ਮਾਰਾਗੇ ਜੀ ।
ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਤਾਰਿਆ ਗੁਰਮੁਖ ਬਾਲ ਸੁਭਾਇ ਉਦਾਸੀ।
ਮੂਲਾ ਕੀੜ ਵਖਾਣੀਏ ਚਲਿਤ ਅਚਰਜ ਲੁਭਤ ਗੁਰਦਾਸੀ
ਪਿਰਥਾ ਖੇਡਾ ਸੋਇਰੀ ਚਰਣ ਸਰਣ ਸੁਖ ਸਹਿਜ ਨਿਵਾਸੀ
ਭਲਾ ਰਬਾਬ ਵਜਾਇੰਦਾ ਮਜਲਸ ‘ਮਰਦਾਨਾ’ ਮੀਰਾਸੀ
ਪਿਰਥੀ ਮਲ ਸਹਿਗਲ ਭਲਾ ਰਾਮਾ ਡਿਡੀ ਭਗਤ ਅਭਿਆਸੀ।
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਦੀ ਭਲਾ ਹੋਆ ਜਿੰਦ ਪੀਰ ਅਬਿਨਾਸੀ
ਮਾਲੋ ਮਾਂਗਾ ਸਿਖ ਦੁਇ ਗੁਰਬਾਣੀ ਰਸ ਰਸਿਕ ਬਿਲਾਸੀ
ਸਨਮੁਖ ਕਾਲੂ ਆਸ ਧਾਰ ਗੁਰਬਾਣੀ ਦਰਗਹਿ ਸਾਬਾਸੀ
ਗੁਰਮਤਿ ਭਾਉ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਗਾਸੀ॥ ੧੩॥
ਭਗਰ ਜੋ ਭਗਤਾ ਓਹਰੀ, ਜਾਪੂ ਵੰਸੀ ਸੇਵ ਕਮਾਵੈ
ਸੀਹਾਂ ਉਪਲ ਜਾਣੀਏ ਗਜਨ ਉਪਲ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਵੈ
ਮੈਲਸੀਆਂ ਵਿਚ ਆਖੀਏ ਭਾਗੀਰਥ ਕਾਲੀ ਗੁਨ ਗਾਵੈ
ਜਿਤਾ ਰੰਧਾਵਾਂ ਭਲਾ ਬੂੜਾ ਬੁਢਾ ਇਕ ਮਨ ਧਿਆਵੈ। (ਵਾਰ ੧੧)
ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ ਇਕ ਵਾਰ ਛੋਟੇ ਹੁੰਦਿਆਂ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਨੂੰ ਆਇਆ। ਤੇ ਜਦ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਤਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਉਤੇ ਸਿਰ ਰੱਖ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਦਾ ਤਰੀਕਾ ਪੁਛਿਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਖਿਆ ਤੂੰ ਏਡੀ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਏਨੀਆਂ ਸਿਆਣਪ ਭਰੀਆਂ ਗਲਾ ਕਰ ਰਿਹਾ ਇਸ ਦੀ ਵਜਾ ਦਸੋ । ਤਾ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਕਹਿਣ ਲਗੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਜੀ ਮੌਤ ਜਰੂਰੀ ਨਹੀ ਬਜੁਰਗ ਹੋ ਕੇ ਹੀ ਆਵੇ ਕਈ ਵਾਰ ਛੋਟੇ ਹੁੰਦਿਆਂ ਵੀ ਆ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਤੁਸੀ ਮਿਹਰ ਕਰੋ ਇਸ ਮੌਤ ਤੋ ਪਹਿਲਾ ਉਸ ਰੱਬ ਤਕ ਮਨ ਪਹੁੰਚ ਜਾਵੇ । ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ ਹੋਏ ਤੇ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਿੱਖ ਬਣਾ ਲਿਆ ਤੇ ਉਪਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਉਸ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਨੂੰ ਕਦੇ ਵੀ ਨਹੀ ਵਿਸਾਰਨਾ । ਹੱਕ ਸੱਚ ਦੀ ਕਮਾਈ ਕਰਨੀ ਕਿਤੇ ਵੀ ਅੱਗ ਲਗ ਜਾਵੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਨਾਲ ਬਝੌਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਨੀ ਕਿਸੇ ਦਾ ਦਿਲ ਨਹੀ ਦਖੌਣਾ ਹਰ ਇਕ ਦੀ ਮੱਦਦ ਕਰਨੀ । ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਬਚਨਾ ਤੇ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਨੇ ਡਟ ਕੇ ਪਹਿਰਾ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋ ਬਾਬਰ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਤਾ ਉਸ ਨੇ ਸ਼ਹਿਰ ਲੁੱਟ ਕੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਅੱਗ ਲਗਾ ਦਿੱਤੀ । ਜਦੋ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਨੇ ਅੱਗ ਲਗੀ ਦੇਖੀ ਤਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਬਚਨਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਘਰ ਜਾ ਕੇ ਖੂਹੀ ਤੋ ਪਾਣੀ ਦੀ ਬਾਲਟੀ ਭਰ ਕੇ ਉਸ ਅੱਗ ਤੇ ਪਾਉਣ ਲਈ ਗਿਆ । ਜਦੋ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਦੇ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਨੂੰ ਬਾਲਟੀ ਨਾਲ ਪਾਣੀ ਪਾਉਦਿਆ ਦੇਖਿਆ ਤਾ ਹੱਸ ਕੇ ਕਹਿਣ ਲਗੇ ਤੇਰੀ ਬਾਲਟੀ ਪਾਣੀ ਨਾਲ ਕਿਤੇ ਅੱਗ ਬੁਝ ਜਾਵੇਗੀ । ਤਾ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਨੇ ਆਖਿਆ ਮੈ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂ ਦਾ ਹੁਕਮ ਮੰਨ ਕੇ ਬਲਦੀ ਅੱਗ ਤੇ ਪਾਣੀ ਪਾ ਰਿਹਾ । ਅੱਗ ਬੁਝੇ ਚਾਹੇ ਨਾ ਬੁਝੇ ਮੈ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂ ਦਾ ਹੁਕਮ ਮੰਨ ਰਿਹਾ ਇਹ ਕਹਿ ਕੇ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਨੇ ਦੂਸਰੀ ਬਾਲਟੀ ਵੀ ਪਾਣੀ ਦੀ ਪਾ ਕੇ ਆਏ । ਜਦੋ ਤੀਸਰੀ ਬਾਲਟੀ ਪਾਣੀ ਦੀ ਲੈ ਕੇ ਭਾਈ ਜੀ ਆਏ ਤਾ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਸਲਾਹ ਕੀਤੀ ਕਦੇ ਇਸ ਨੂੰ ਵੇਖ ਸਾਰੇ ਨਗਰ ਦੇ ਪਾਣੀ ਪਾ ਕੇ ਅੱਗ ਨਾ ਬੁਝਾ ਦੇਣ । ਇਹ ਸਲਾਹ ਕਰਕੇ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਨੂੰ ਜਿਉਦਿਆਂ ਹੀ ਬਲਦੀ ਅੱਗ ਵਿੱਚ ਸੁੱਟ ਕੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਭਾਈ ਤਾਰੂ ਪੋਪਟ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਹੁਕਮ ਮੰਨਦਿਆਂ ਸ਼ਹਾਦਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਤੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚੋ ਪਹਿਲੇ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਣ ਦਾ ਮਾਂਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ।
ਜੋਰਾਵਰ ਸਿੰਘ ਤਰਸਿੱਕਾ ।



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ਗੱਲ ਸੁਣ ਓਏ ਦਿੱਲੀ ਦਿਆ ਕਵੀਆ ਸਿੰਘ ਬਾਰਾਂ ਵਜੇ ਤੀਵੀਆਂ ਛੱਡਉਂਦੇ ਸੀ
ਇਹ ਤਸਵੀਰ ਐ ਅਫ਼ਗ਼ਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰ ਗਜ਼ਨੀ ਦੀ ਜਿੱਥੇ ਹਸੀਨਾ-ਏ-ਹਿੰਦ ਮੇਲਾ ਲਗਦਾ ਸੀ, ਸੰਨ 1720 ਤੋਂ 1800 ਤੱਕ ਗਜ਼ਨੀ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਹਰ ਸਾਲ ਹਸੀਨਾ-ਏ-ਹਿੰਦ ਮੇਲਾ ਲਗਦਾ ਸੀ ਜਿੱਥੇ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਮੁਗਲ ਆ ਕੇ ਹਸੀਨ ਕੁੜੀਆਂ ਦੀ ਖਰੀਦੋ-ਫਰੋਖਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਘਰਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਜਾ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਰਖੈਲ ਬਣਾ ਕੇ ਰਖਦੇ ਸਨ, ਆਪਣੀ ਅਮੀਰੀ ਦਿਖਾਉਣ ਵਾਸਤੇ ਉਹਨਾਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦੋਸਤਾਂ ਅੱਗੇ ਪਰੋਸਦੇ, ਤੁਹਾਨੂੰ ਇਹ ਜਾਣ ਕੇ ਹੈਰਾਨੀ ਹੋਵੇਗੀ ਕਿ ਇਹ ਕੁੜੀਆਂ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਮੁਗਲਾਂ ਵੱਲੋਂ ਜਦੋਂ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਲੁੱਟਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਕੀਮਤੀ ਸਮਾਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਇਹ ਨੋਜਵਾਨ ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਨਾਲ ਲੈ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ਪਰ ਜਦੋਂ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਸਰਦਾਰ ਜੱਸਾ ਸਿੰਘ ਆਹਲੂਵਾਲੀਆ, ਸਰਦਾਰ ਜੱਸਾ ਸਿੰਘ ਰਾਮਗੜ੍ਹੀਆ, ਸਰਦਾਰ ਚੱੜ੍ਹਤ ਸਿੰਘ, ਸਰਦਾਰ ਬਘੇਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਯੋਧਿਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਰਾਤਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਦੀ ਕਾਠੀਆਂ ਤੇ ਗੁਜਾਰ ਕੇ ਉਸ ਗਜ਼ਨੀ ਦੇ ਬਾਜ਼ਾਰਾਂ ਨੂੰ ਲੁੱਟ ਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਮੁਗਲਾਂ ਤੋਂ ਅਜ਼ਾਦ ਕਰਵਾ ਕੇ ਬਾ-ਇੱਜ਼ਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਘਰਾਂ ਵਿੱਚ ਪਹੁਚਾਇਆ, ਬਹੁਤਿਆਂ ਨੋਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖ ਯੋਧਿਆਂ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗੀ… ਸਾਰੇ ਵੀਰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੇਅਰ ਕਰੋ ਤਾਂ ਕਿ ਸਾਡੀ ਨਵੀਂ ਪੀੜ੍ਹੀ ਨੂੰ ਪਤਾ ਚੱਲ ਸਕੇ ਵੀ ਸਰਦਾਰ ਕੌਣ ਸੀ



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Guri Sarari : waheguru ji 👏

ਭਾਈ ਲਛਮਣ ਸਿੰਘ ਧਾਰੋਵਾਲੀ ਨੂੰ
ਕਿਵੇਂ ਅਤੇ ਕਦੋਂ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ?



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सोरठि महला ५ घरु २ दुपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सगल बनसपति महि बैसंतरु सगल दूध महि घीआ ॥ ऊच नीच महि जोति समाणी घटि घटि माधउ जीआ ॥१॥ संतहु घटि घटि रहिआ समाहिओ ॥ पूरन पूरि रहिओ सरब महि जलि थलि रमईआ आहिओ ॥१॥ रहाउ ॥ गुण निधान नानकु जसु गावै सतिगुरि भरमु चुकाइओ ॥ सरब निवासी सदा अलेपा सभ महि रहिआ समाइओ ॥२॥१॥२९॥

हे भाई! जैसे सब जड़ी बूटियों मैं अग्नि (गुप्त मौजूद) है, जैसे हरेक किसम के दूध में घी (माखन) गुप्त मौजूद है, उसी प्रकार अच्छे बुरे सब जीवों में प्रभु ज्योति समाई हुई है, परमात्मा हरेक सरीर में है, सब जीवों में है।१। हे संत जानो! परमात्मा हरेक सरीर में मौजूद है। वेह पूरी तरह सारे जीवों में वेयापक है, वेह सुंदर राम पानी में है, धरती में है।१।रहाउ। हे भाई! नानक (उस) गुणों के खजाने परमात्मा की सिफत-सलाह का गीत गाता है। गुरु ने (नानक का) भ्रम दूर कर दिया है। (तभी नानक को यकीन है कि) परमात्मा सब जीवों में बस्ता है (फिर भी) सदा (माया के मोह से) निरलेप है, सब जीवों में समा रहा है॥2॥1॥2॥



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ਅੰਗ : 617

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਦੁਪਦੇ ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ਸਗਲ ਬਨਸਪਤਿ ਮਹਿ ਬੈਸੰਤਰੁ ਸਗਲ ਦੂਧ ਮਹਿ ਘੀਆ ॥ ਊਚ ਨੀਚ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ਘਟਿ ਘਟਿ ਮਾਧਉ ਜੀਆ ॥੧॥ ਸੰਤਹੁ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਹਿਓ ॥ ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸਰਬ ਮਹਿ ਜਲਿ ਥਲਿ ਰਮਈਆ ਆਹਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਨਾਨਕੁ ਜਸੁ ਗਾਵੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਓ ॥ ਸਰਬ ਨਿਵਾਸੀ ਸਦਾ ਅਲੇਪਾ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇਓ ॥੨॥੧॥੨੯॥

ਅਰਥ : ਰਾਗ ਸੋਰਠਿ, ਘਰ ੨ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਦੋ-ਬੰਦਾਂ ਵਾਲੀ ਬਾਣੀ। ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਇੱਕ ਹੈ ਅਤੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਮਿਲਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਭਾਈ! ਜਿਵੇਂ ਸਭ ਬੂਟਿਆਂ ਵਿਚ ਅੱਗ (ਗੁਪਤ ਮੌਜੂਦ) ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਹਰੇਕ ਕਿਸਮ ਦੇ ਦੁੱਧ ਵਿਚ ਘਿਉ (ਮੱਖਣ) ਗੁਪਤ ਮੌਜੂਦ ਹੈ, ਤਿਵੇਂ ਚੰਗੇ ਮੰਦੇ ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਈ ਹੋਈ ਹੈ, ਪਰਮਾਤਮਾ ਹਰੇਕ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਹੈ, ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਹੈ।੧। ਹੇ ਸੰਤ ਜਨੋ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਹਰੇਕ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਹੈ। ਉਹ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਵਿਆਪਕ ਹੈ, ਉਹ ਸੋਹਣਾ ਰਾਮ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਹੈ ਧਰਤੀ ਵਿਚ ਹੈ।੧।ਰਹਾਉ। ਹੇ ਭਾਈ! ਨਾਨਕ (ਉਸ) ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਦਾ ਗੀਤ ਗਾਂਦਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਨੇ (ਨਾਨਕ ਦਾ) ਭੁਲੇਖਾ ਦੂਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। (ਤਾਂਹੀਏਂ ਨਾਨਕ ਨੂੰ ਯਕੀਨ ਹੈ ਕਿ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਵੱਸਦਾ ਹੈ (ਫਿਰ ਭੀ) ਸਦਾ (ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਤੋਂ) ਨਿਰਲੇਪ ਹੈ, ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਸਮਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ॥੨॥੧॥੨੯॥



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सोरठि महला ५ ॥ राजन महि राजा उरझाइओ मानन महि अभिमानी ॥ लोभन महि लोभी लोभाइओ तिउ हरि रंगि रचे गिआनी ॥१॥ हरि जन कउ इही सुहावै ॥ पेखि निकटि करि सेवा सतिगुर हरि कीरतनि ही त्रिपतावै ॥ रहाउ ॥ अमलन सिउ अमली लपटाइओ भूमन भूमि पिआरी ॥ खीर संगि बारिकु है लीना प्रभ संत ऐसे हितकारी ॥२॥

(हे भाई!) जैसे राज के कामों में राजा मगन रहता है, जैसे मान बढ़ाने वाले कामों में आदर-मान का भूखा मनुख मस्त रहता है, जैसे लालची मनुख लालच बढ़ाने वाले कर्मों में फँसा रहता है, उसी प्रकार जीवन के सूझ वाला मनुख प्रेम-रंग में मस्त रहता है।१। परमात्मा के भागर को यही कर्म अच्छा लगता है। (भक्त परमात्मा को) अंग-संग देख कर, और, गुरु की सेवा करके परमात्मा की सिफत सलाह में प्रसन रहता है।रहाउ। हे भाई! नशे करने का प्रेमी मनुख नशों के साथ जुड़ा रहता है, जमीं के मालिकों को जमीन प्यारी लगती हैं, बच्चा दूध के साथ ही पचरता रहता है। इसी प्रकार संत जन परमात्मा के साथ प्यार करते हैं।२।



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ਅੰਗ : 613

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਰਾਜਨ ਮਹਿ ਰਾਜਾ ਉਰਝਾਇਓ ਮਾਨਨ ਮਹਿ ਅਭਿਮਾਨੀ ॥ ਲੋਭਨ ਮਹਿ ਲੋਭੀ ਲੋਭਾਇਓ ਤਿਉ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਚੇ ਗਿਆਨੀ ॥੧॥ ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਇਹੀ ਸੁਹਾਵੈ ॥ ਪੇਖਿ ਨਿਕਟਿ ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਸਤਿਗੁਰ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਿ ਹੀ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਅਮਲਨ ਸਿਉ ਅਮਲੀ ਲਪਟਾਇਓ ਭੂਮਨ ਭੂਮਿ ਪਿਆਰੀ ॥ ਖੀਰ ਸੰਗਿ ਬਾਰਿਕੁ ਹੈ ਲੀਨਾ ਪ੍ਰਭ ਸੰਤ ਐਸੇ ਹਿਤਕਾਰੀ ॥੨॥

ਅਰਥ : (ਹੇ ਭਾਈ! ਜਿਵੇਂ) ਰਾਜ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਰਾਜਾ ਮਗਨ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਮਾਣ ਵਧਾਣ ਵਾਲੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਆਦਰ-ਮਾਣ ਦਾ ਭੁੱਖਾ ਮਨੁੱਖ ਪਰਚਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਲਾਲਚੀ ਮਨੁੱਖ ਲਾਲਚ ਵਧਾਣ ਵਾਲੇ ਆਹਰਾਂ ਵਿਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਤਿਵੇਂ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੀ ਸੂਝ ਵਾਲਾ ਮਨੁੱਖ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਪ੍ਰੇਮ-ਰੰਗ ਵਿਚ ਮਸਤ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।੧। ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਭਗਤ ਨੂੰ ਇਹੀ ਕਾਰ ਚੰਗੀ ਲੱਗਦੀ ਹੈ। (ਭਗਤ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ) ਅੰਗ-ਸੰਗ ਵੇਖ ਕੇ, ਤੇ, ਗੁਰੂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਕੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਵਿਚ ਹੀ ਪ੍ਰਸੰਨ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।ਰਹਾਉ। ਹੇ ਭਾਈ! ਨਸ਼ਿਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰੇਮੀ ਮਨੁੱਖ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨਾਲ ਚੰਬੜਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਮਾਲਕਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਮੀਨ ਪਿਆਰੀ ਲੱਗਦੀ ਹੈ, ਬੱਚਾ ਦੁੱਧ ਨਾਲ ਪਰਚਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੰਤ ਜਨ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਹਨ।੨।



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SIMRANJOT SINGH : Waheguru Ji🙏





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Ritika : Waheguru Ji



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