सोरठि महला ४ ॥ हरि सिउ प्रीति अंतरु मनु बेधिआ हरि बिनु रहणु न जाई ॥ जिउ मछुली बिनु नीरै बिनसै तिउ नामै बिनु मरि जाई ॥१॥ मेरे प्रभ किरपा जलु देवहु हरि नाई ॥ हउ अंतरि नामु मंगा दिनु राती नामे ही सांति पाई ॥ रहाउ ॥ जिउ चात्रिकु जल बिनु बिललावै बिनु जल पिआस न जाई ॥ गुरमुखि जलु पावै सुख सहजे हरिआ भाइ सुभाई ॥२॥
हे भाई! परमात्मा से प्यार के द्वारा जिस मनुख का हृदय जिस मनुख का मन भीग जाता है, वह परमात्मा (की याद) के बिना रह नहीं सकता। जैसे पानी के बिना मछली मर जाती है, उसी प्रकार मनुख प्रभु के नाम के बिना अपनी आत्मिक मौत आ गयी समझता है॥१॥ हे मेरे प्रभु! (मुझे अपनी) कृपा का जल दे। हे हरी! मुझे अपनी सिफत-सलाह की दात दे। मैं अपने हृदय में दिन रात तेरा नाम (ही) मांगता हूँ, (क्योंकि तेरे) नाम में जुड़ने से ही आत्मिक ठंडक प्राप्त हो सकती है॥रहाउ॥ हे भाई! जैसे वर्षा-जल के बिना पपीहा बिलकता है, वर्षा की बूँद के बिना उस की प्यास नहीं मिटती, उसी प्रकार जो मनुख गुरु की सरन आता है, तब वह प्रभु की बरकत से आत्मिक जीवन वाला बनता है, जब वह आत्मिक अडोलता में टिक के आत्मिक आनंद देने वाला नाम-जल (गुरु पास से) प्राप्त करता है॥२॥
ਅੰਗ : 607
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੪ ॥ ਹਰਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਅੰਤਰੁ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਰਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥ ਜਿਉ ਮਛੁਲੀ ਬਿਨੁ ਨੀਰੈ ਬਿਨਸੈ ਤਿਉ ਨਾਮੈ ਬਿਨੁ ਮਰਿ ਜਾਈ ॥੧॥ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਜਲੁ ਦੇਵਹੁ ਹਰਿ ਨਾਈ ॥ ਹਉ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਮੰਗਾ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਨਾਮੇ ਹੀ ਸਾਂਤਿ ਪਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਜਿਉ ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਜਲ ਬਿਨੁ ਬਿਲਲਾਵੈ ਬਿਨੁ ਜਲ ਪਿਆਸ ਨ ਜਾਈ ॥ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਲੁ ਪਾਵੈ ਸੁਖ ਸਹਜੇ ਹਰਿਆ ਭਾਇ ਸੁਭਾਈ ॥੨॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਹਿਰਦਾ ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਮਨ ਵਿੱਝ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ (ਦੀ ਯਾਦ) ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਰਹਿ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ। ਜਿਵੇਂ ਪਾਣੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਮੱਛੀ ਮਰ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਤਿਵੇਂ ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਆਪਣੀ ਆਤਮਕ ਮੌਤ ਆ ਗਈ ਸਮਝਦਾ ਹੈ ॥੧॥ ਹੇ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭੂ! (ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੀ) ਮੇਹਰ ਦਾ ਜਲ ਦੇਹ। ਹੇ ਹਰੀ! ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਦੀ ਦਾਤਿ ਦੇਹ। ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਦਿਨ ਰਾਤ ਤੇਰਾ ਨਾਮ (ਹੀ) ਮੰਗਦਾ ਹਾਂ (ਕਿਉਂਕਿ ਤੇਰੇ) ਨਾਮ ਵਿਚ ਜੁੜਿਆਂ ਹੀ ਆਤਮਕ ਠੰਡ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ ॥ ਰਹਾਉ॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਜਿਵੇਂ ਵਰਖਾ-ਜਲ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਪਪੀਹਾ ਵਿਲਕਦਾ ਹੈ, ਵਰਖਾ ਦੀ ਬੂੰਦ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਉਸ ਦੀ ਤ੍ਰੇਹ ਨਹੀਂ ਮਿਟਦੀ, ਤਿਵੇਂ ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਉਹ ਤਦੋਂ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਵਾਲਾ ਬਣਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਉਹ ਆਤਮਕ ਅਡੋਲਤਾ ਵਿਚ ਟਿਕ ਕੇ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਨਾਮ-ਜਲ (ਗੁਰੂ ਪਾਸੋਂ) ਹਾਸਲ ਕਰਦਾ ਹੈ ॥੨॥
धनासरी महला ५ ॥ अउखी घड़ी न देखण देई अपना बिरदु समाले ॥ हाथ देइ राखै अपने कउ सासि सासि प्रतिपाले ॥१॥ प्रभ सिउ लागि रहिओ मेरा चीतु ॥ आदि अंति प्रभु सदा सहाई धंनु हमारा मीतु ॥ रहाउ ॥ मनि बिलास भए साहिब के अचरज देखि बडाई ॥ हरि सिमरि सिमरि आनद करि नानक प्रभि पूरन पैज रखाई ॥२॥१५॥४६॥
हे भाई! (वह प्रभु अपने सेवक को) कोई दुःख दुःख देने वाला समय देखने नहीं देता, वह अपना मूढ़-कदीमा का (प्यार वाला) सवभाव सदा याद रखता है। प्रभु अपना हाथ दे के अपने सेवक की राखी करता है, (सेवक को उसकी ) हरेक साँस के साथ पलता है॥१॥ हे भाई! मेरा मन (भी) उस प्रभु से जुदा रहता है, जो शुरु से आखिर तक सदा ही मददगार बना रहता है। हमारा वह मित्र प्रभु धन्य है (उस की सदा सिफत-सलाह करनी चाहिये)॥रहाउ॥ हे भाई! मालिक-प्रभु के हैरान करने वाले कोटक देख के, उस की बढाई देख के, (सेवक के) मन में (भी) खुशियाँ बनी रहती है। हे नानक! तू भी परमात्मा का नाम सुमिरन कर कर के आत्मिक आनंद मना। (जिस भी मनुख ने सिमरन किया) प्रभु ने पूरे तौर पर उस की इज्जत रख ली॥२॥१५॥४६॥
ਅੰਗ : 682
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਅਉਖੀ ਘੜੀ ਨ ਦੇਖਣ ਦੇਈ ਅਪਨਾ ਬਿਰਦੁ ਸਮਾਲੇ ॥ ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖੈ ਅਪਨੇ ਕਉ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੇ ॥੧॥ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਲਾਗਿ ਰਹਿਓ ਮੇਰਾ ਚੀਤੁ ॥ ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ਧੰਨੁ ਹਮਾਰਾ ਮੀਤੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਮਨਿ ਬਿਲਾਸ ਭਏ ਸਾਹਿਬ ਕੇ ਅਚਰਜ ਦੇਖਿ ਬਡਾਈ ॥ ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਆਨਦ ਕਰਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਪੂਰਨ ਪੈਜ ਰਖਾਈ ॥੨॥੧੫॥੪੬॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਭਾਈ! (ਉਹ ਪ੍ਰਭੂ ਆਪਣੇ ਸੇਵਕ ਨੂੰ) ਕੋਈ ਦੁੱਖ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਸਮਾ ਨਹੀਂ ਵੇਖਣ ਦੇਂਦਾ, ਉਹ ਆਪਣਾ ਮੁੱਢ-ਕਦੀਮਾਂ ਦਾ (ਪਿਆਰ ਵਾਲਾ) ਸੁਭਾਉ ਸਦਾ ਚੇਤੇ ਰੱਖਦਾ ਹੈ। ਪ੍ਰਭੂ ਆਪਣਾ ਹੱਥ ਦੇ ਕੇ ਆਪਣੇ ਸੇਵਕ ਦੀ ਰਾਖੀ ਕਰਦਾ ਹੈ, (ਸੇਵਕ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ) ਹਰੇਕ ਸਾਹ ਦੇ ਨਾਲ ਪਾਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ॥੧॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਮੇਰਾ ਮਨ (ਭੀ) ਉਸ ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਅਖ਼ੀਰ ਤਕ ਸਦਾ ਹੀ ਮਦਦਗਾਰ ਬਣਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਸਾਡਾ ਉਹ ਮਿੱਤਰ ਪ੍ਰਭੂ ਧੰਨ ਹੈ (ਉਸ ਦੀ ਸਦਾ ਸਿਫ਼ਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ) ॥ ਰਹਾਉ॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਹੈਰਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕੌਤਕ ਵੇਖ ਕੇ, ਉਸ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ਵੇਖ ਕੇ, (ਸੇਵਕ ਦੇ) ਮਨ ਵਿਚ (ਭੀ) ਖ਼ੁਸ਼ੀਆਂ ਬਣੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਹੇ ਨਾਨਕ! ਤੂੰ ਭੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰ ਸਿਮਰ ਕੇ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਮਾਣ। (ਜਿਸ ਭੀ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਸਿਮਰਨ ਕੀਤਾ) ਪ੍ਰਭੂ ਨੇ ਪੂਰੇ ਤੌਰ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਇੱਜ਼ਤ ਰੱਖ ਲਈ ॥੨॥੧੫॥੪੬॥
धनासरी महला १ ॥ जीवा तेरै नाइ मनि आनंदु है जीउ ॥ साचो साचा नाउ गुण गोविंदु है जीउ ॥ गुर गिआनु अपारा सिरजणहारा जिनि सिरजी तिनि गोई ॥ परवाणा आइआ हुकमि पठाइआ फेरि न सकै कोई ॥ आपे करि वेखै सिरि सिरि लेखै आपे सुरति बुझाई ॥ नानक साहिबु अगम अगोचरु जीवा सची नाई ॥१॥ तुम सरि अवरु न कोइ आइआ जाइसी जीउ ॥ हुकमी होइ निबेड़ु भरमु चुकाइसी जीउ ॥ गुरु भरमु चुकाए अकथु कहाए सच महि साचु समाणा ॥ आपि उपाए आपि समाए हुकमी हुकमु पछाणा ॥ सची वडिआई गुर ते पाई तू मनि अंति सखाई ॥ नानक साहिबु अवरु न दूजा नामि तेरै वडिआई ॥२॥ तू सचा सिरजणहारु अलख सिरंदिआ जीउ ॥ एकु साहिबु दुइ राह वाद वधंदिआ जीउ ॥ दुइ राह चलाए हुकमि सबाए जनमि मुआ संसारा ॥ नाम बिना नाही को बेली बिखु लादी सिरि भारा ॥ हुकमी आइआ हुकमु न बूझै हुकमि सवारणहारा ॥ नानक साहिबु सबदि सिञापै साचा सिरजणहारा ॥३॥ भगत सोहहि दरवारि सबदि सुहाइआ जीउ ॥ बोलहि अम्रित बाणि रसन रसाइआ जीउ ॥ रसन रसाए नामि तिसाए गुर कै सबदि विकाणे ॥ पारसि परसिऐ पारसु होए जा तेरै मनि भाणे ॥ अमरा पदु पाइआ आपु गवाइआ विरला गिआन वीचारी ॥ नानक भगत सोहनि दरि साचै साचे के वापारी ॥४॥ भूख पिआसो आथि किउ दरि जाइसा जीउ ॥ सतिगुर पूछउ जाइ नामु धिआइसा जीउ ॥ सचु नामु धिआई साचु चवाई गुरमुखि साचु पछाणा ॥ दीना नाथु दइआलु निरंजनु अनदिनु नामु वखाणा ॥ करणी कार धुरहु फुरमाई आपि मुआ मनु मारी ॥ नानक नामु महा रसु मीठा त्रिसना नामि निवारी ॥५॥२॥
अर्थ: हे प्रभू जी! तेरे नाम में (जुड़ कर) मेरे अंदर आतमिक जीवन पैदा होता है, मेरे मन में ख़ुश़ी पैदा होती है। हे भाई! परमात्मा का नाम सदा-थिर रहने वाला है, प्रभू गुणों (का ख़ज़ाना) है और धरती के जीवों के दिल की जानने वाला है। गुरू का बख़्श़ा ज्ञान बताता है कि सिरजनहार प्रभू बेअंत है, जिस ने यह सृष्टि पैदा की है, वही इस को नाश करता है। जब उस के हुक्म में भेजा हुआ (मौत का) निमंत्रण आता है तो कोई जीव (उस निमंत्रण को) मोड़ नहीं सकता। परमात्मा आप ही (जीवों को) पैदा कर के आप ही संभाल करता है, आप ही प्रत्येक जीव के सिर पर (उस के किए कार्य अनुसार) लेख लिखता है, आप ही (जीव को सही जीवन-मार्ग की) सूझ बख़्श़ता है। मालिक-प्रभू अपहुँच है, जीवों के ज्ञान-इंद्रियों की उस तक पहुँच नहीं हो सकती। हे नानक जी! (उस के द्वार पर अरदास करो, और कहो – हे प्रभू!) तेरी सदा कायम रहने वाली सिफ़त-सलाह कर के मेरे अंदर आतमिक जीवन पैदा होता है (मुझे अपनी सिफ़त-सलाह बख़्श़) ॥१॥ हे प्रभू जी! तेरे बराबर का अन्य कोई नहीं है, (अन्य जो भी जगत में) आया है, (वह यहाँ से आखिर) चला जाएगा (तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं)। जिस मनुष्य की भटकना (गुरू) दूर करता है, प्रभू के हुक्म अनुसार उस के जन्म मरण के चक्र खत्म हो जाते हैं। गुरू जिस की भटकना दूर करता है, उस से उस परमात्मा की सिफ़त-सलाह करवाता है जिस के गुण बताए नहीं जा सकते। वह मनुष्य सदा-थिर प्रभू (की याद) में रहता है, सदा-थिर प्रभू (उस के हृदय में) प्रगट हो जाता है। वह मनुष्य रज़ा के मालिक-प्रभू का हुक्म पहचान लेता है (और समझ लेता है कि) प्रभू आप ही पैदा करता है और आप ही (अपने में) लीन कर लेता है। हे प्रभू! जिस मनुष्य ने तेरी सिफ़त- सलाह (की दात) गुरू से प्राप्त कर लई है, तूँ उस के मन में आ वसता हैं और अंत समय भी उस का मित्र बनता हैं। हे नानक जी! मालिक-प्रभू सदा कायम रहने वाला है, उस जैसा अन्य कोई नहीं। (उस के द्वार पर अरदास करो और कहो-) हे प्रभू! तेरे नाम से जुड़ने से (लोग परलोग में) आदर मिलता है ॥२॥ हे अदृष्ट रचनहार! तूँ सदा-थिर रहने वाला हैं और सब जीवों को पैदा करने वाला हैं। एक सिरजणहार ही (सारे जगत का) मालिक है, उस ने (जन्म और मरण) के दो रास्ते चलाएं हैं। (उसी की रज़ा अनुसार जगत में) झगड़ों की वृद्धि होती है। दोनों रास्ते प्रभू ने ही चलाएं हैं, सभी जीव उसी के हुक्म में हैं, (उसी के हुक्म अनुसार) जगत जमता और मरता रहता है। (जीव नाम को भुला कर माया के मोह का) ज़हर-रूप बोझ अपने सिर पर इक्कठा करी जाता है, (और यह नहीं समझता कि) परमात्मा के नाम के बिना अन्य कोई भी साथी-मित्र नहीं बन सकता। जीव (परमात्मा के) हुक्म अनुसार (जगत में) आता है, (पर माया के मोह में फंस कर उस) हुक्म को समझता नहीं। प्रभू आप ही जीव को अपने हुक्म अनुसार (सही रास्ते पा कर) संवारने के समर्थ है। हे नानक जी! गुरू के श़ब्द में जुड़ने से यह पहचान आती है कि जगत का मालिक सदा-थिर रहने वाला है और सब का पैदा करने वाला है ॥३॥ हे भाई! परमात्मा की भगती करने वाले मनुष्य परमात्मा की हज़ूरी में शोभा प्राप्त करते हैं, क्योंकि गुरू के श़ब्द की बरकत से वह अपने जीवन को सुंदर बना लेते हैं। वह मनुष्य आतमिक जीवन देने वाली बाणी अपनी जीभ से उचारते रहते हैं, जीव को उस बाणी से एक-रस कर लेते हैं। भगत-जन प्रभू के नाम से जीभ को रसा लेते हैं, नाम में जुड़ कर (नाम के लिए उनकी) प्यास बढ़ती है, गुरू के श़ब्द द्वारा वह प्रभू-नाम से सदके होते हैं (नाम की खातिर अन्य सभी शारीरिक सुख कुर्बान करते हैं। हे प्रभू! जब (भगत जन) तेरे मन को प्यारे लगते हैं, तब वह गुरू-पारस से स्पर्श कर के आप भी पारस हो जाते हैं (अन्यों को पवित्र जीवन देने योग्य हो जाते हैं)। जो मनुष्य आपा-भाव दूर करते हैं उनको वह आतमिक दर्जा मिल जाता है जहाँ आतमिक मौत असर नहीं कर सकती। परन्तु इस तरह कोई विरला ही गुरू के दिए ज्ञान की विचार करने वाला मनुष्य होता है। हे नानक जी! परमात्मा की भगती करने वाले मनुष्य सदा-थिर प्रभू के द्वार पर शोभा प्राप्त करते हैं, वह (अपने सारे जीवन में) सदा-थिर प्रभू के नाम का ही व्यपार करते हैं ॥४॥ जब तक मैं माया के लिए भुखा प्यासा रहता हूँ, तब तक मैं किसी भी तरह प्रभू के द्वार पर पहुँच नहीं सकता। (माया की तृष्णा दूर करने का इलाज) मैं जा कर अपने गुरू से पुछता हूँ (और उन की शिक्षा के अनुसार) मैं परमात्मा का नाम सिमरता हूँ (नाम ही तृष्णा दूर करता है)। गुरू की श़रण पड़ कर मैं सदा-थिर नाम सिमरता हूँ, सदा-थिर प्रभू (की सिफ़त-सलाह) उचारता हूँ, और सदा-थिर प्रभू के साथ सांझ पाता हूँ। मैं हर रोज़ उस प्रभू का नाम मुख से लेता हूँ जो दीनों का सहारा है जो दया का स्रोत है और जिस पर माया का असर नहीं पड़ सकता। परमात्मा ने जिस मनुष्य को अपनी हज़ूरी से ही नाम सिमरन की करने-योग्य कार्य करने का हुक्म दे दिया, वह मनुष्य अपने मन को (माया की तरफ़ से) मार कर तृष्णा के असर से बच जाता है। हे नानक जी! उस मनुष्य को प्रभू का नाम ही मीठा और अन्य सभी रसों से श्रेष्ठ लगता है, उस ने नाम सिमरन की बरकत से माया की तृष्णा (अपने अंदर से) दूर कर ली होती है ॥५॥२॥
ਅੰਗ : 688
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ ਜੀਵਾ ਤੇਰੈ ਨਾਇ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਹੈ ਜੀਉ ॥ ਸਾਚੋ ਸਾਚਾ ਨਾਉ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦੁ ਹੈ ਜੀਉ ॥ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਅਪਾਰਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ਜਿਨਿ ਸਿਰਜੀ ਤਿਨਿ ਗੋਈ ॥ ਪਰਵਾਣਾ ਆਇਆ ਹੁਕਮਿ ਪਠਾਇਆ ਫੇਰਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਈ ॥ ਆਪੇ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਲੇਖੈ ਆਪੇ ਸੁਰਤਿ ਬੁਝਾਈ ॥ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਜੀਵਾ ਸਚੀ ਨਾਈ ॥੧॥ ਤੁਮ ਸਰਿ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਆਇਆ ਜਾਇਸੀ ਜੀਉ ॥ ਹੁਕਮੀ ਹੋਇ ਨਿਬੇੜੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਸੀ ਜੀਉ ॥ ਗੁਰੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ਅਕਥੁ ਕਹਾਏ ਸਚ ਮਹਿ ਸਾਚੁ ਸਮਾਣਾ ॥ ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਆਪਿ ਸਮਾਏ ਹੁਕਮੀ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਾ ॥ ਸਚੀ ਵਡਿਆਈ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਈ ਤੂ ਮਨਿ ਅੰਤਿ ਸਖਾਈ ॥ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਨਾਮਿ ਤੇਰੈ ਵਡਿਆਈ ॥੨॥ ਤੂ ਸਚਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰੁ ਅਲਖ ਸਿਰੰਦਿਆ ਜੀਉ ॥ ਏਕੁ ਸਾਹਿਬੁ ਦੁਇ ਰਾਹ ਵਾਦ ਵਧੰਦਿਆ ਜੀਉ ॥ ਦੁਇ ਰਾਹ ਚਲਾਏ ਹੁਕਮਿ ਸਬਾਏ ਜਨਮਿ ਮੁਆ ਸੰਸਾਰਾ ॥ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਾਹੀ ਕੋ ਬੇਲੀ ਬਿਖੁ ਲਾਦੀ ਸਿਰਿ ਭਾਰਾ ॥ ਹੁਕਮੀ ਆਇਆ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਹੁਕਮਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਸਬਦਿ ਸਿਞਾਪੈ ਸਾਚਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ॥੩॥ ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਦਰਵਾਰਿ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਇਆ ਜੀਉ ॥ ਬੋਲਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣਿ ਰਸਨ ਰਸਾਇਆ ਜੀਉ ॥ ਰਸਨ ਰਸਾਏ ਨਾਮਿ ਤਿਸਾਏ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵਿਕਾਣੇ ॥ ਪਾਰਸਿ ਪਰਸਿਐ ਪਾਰਸੁ ਹੋਏ ਜਾ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਣੇ ॥ ਅਮਰਾ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਵਿਰਲਾ ਗਿਆਨ ਵੀਚਾਰੀ ॥ ਨਾਨਕ ਭਗਤ ਸੋਹਨਿ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸਾਚੇ ਕੇ ਵਾਪਾਰੀ ॥੪॥ ਭੂਖ ਪਿਆਸੋ ਆਥਿ ਕਿਉ ਦਰਿ ਜਾਇਸਾ ਜੀਉ ॥ ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਛਉ ਜਾਇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਸਾ ਜੀਉ ॥ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ਸਾਚੁ ਚਵਾਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੁ ਪਛਾਣਾ ॥ ਦੀਨਾ ਨਾਥੁ ਦਇਆਲੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਾ ॥ ਕਰਣੀ ਕਾਰ ਧੁਰਹੁ ਫੁਰਮਾਈ ਆਪਿ ਮੁਆ ਮਨੁ ਮਾਰੀ ॥ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਨਾਮਿ ਨਿਵਾਰੀ ॥੫॥੨॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ ਜੀ! ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਚ (ਜੁੜ ਕੇ) ਮੇਰੇ ਅੰਦਰ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਮਨ ਵਿਚ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਪ੍ਰਭੂ ਗੁਣਾਂ (ਦਾ ਖ਼ਜ਼ਾਨਾ) ਹੈ ਤੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਜਾਣਨ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਦਾ ਬਖ਼ਸ਼ਿਆ ਗਿਆਨ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਿਰਜਣਹਾਰ ਪ੍ਰਭੂ ਬੇਅੰਤ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੇ ਇਹ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਹੈ, ਉਹੀ ਇਸ ਨੂੰ ਨਾਸ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਉਸ ਦੇ ਹੁਕਮ ਵਿਚ ਭੇਜਿਆ ਹੋਇਆ (ਮੌਤ ਦਾ) ਸੱਦਾ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕੋਈ ਜੀਵ (ਉਸ ਸੱਦੇ ਨੂੰ) ਮੋੜ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਆਪ ਹੀ (ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ) ਪੈਦਾ ਕਰ ਕੇ ਆਪ ਹੀ ਸੰਭਾਲ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਆਪ ਹੀ ਹਰੇਕ ਜੀਵ ਦੇ ਸਿਰ ਉਤੇ (ਉਸ ਦੇ ਕੀਤੇ ਕਰਮਾਂ ਅਨੁਸਾਰ) ਲੇਖ ਲਿਖਦਾ ਹੈ, ਆਪ ਹੀ (ਜੀਵ ਨੂੰ ਸਹੀ ਜੀਵਨ-ਰਾਹ ਦੀ) ਸੂਝ ਬਖ਼ਸ਼ਦਾ ਹੈ। ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਅਪਹੁੰਚ ਹੈ, ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਗਿਆਨ-ਇੰਦ੍ਰਿਆਂ ਦੀ ਉਸ ਤਕ ਪਹੁੰਚ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! (ਉਸ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰੋ, ਤੇ ਆਖੋ-ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ!) ਤੇਰੀ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਕਰ ਕੇ ਮੇਰੇ ਅੰਦਰ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ (ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਬਖ਼ਸ਼) ॥੧॥ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ ਜੀ! ਤੇਰੇ ਬਰਾਬਰ ਦਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੈ, (ਹੋਰ ਜੇਹੜਾ ਭੀ ਜਗਤ ਵਿਚ) ਆਇਆ ਹੈ, (ਉਹ ਇਥੋਂ ਆਖ਼ਰ) ਚਲਾ ਜਾਇਗਾ (ਤੂੰ ਹੀ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ)। ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਭਟਕਣਾ (ਗੁਰੂ) ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ ਉਸ ਦੇ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੇ ਗੇੜ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਜਿਸ ਦੀ ਭਟਕਣਾ ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਪਾਸੋਂ ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਗੁਣ ਬਿਆਨ ਤੋਂ ਪਰੇ ਹਨ। ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ (ਦੀ ਯਾਦ) ਵਿਚ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ (ਉਸ ਦੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ) ਪਰਗਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਰਜ਼ਾ ਦੇ ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਹੁਕਮ ਪਛਾਣ ਲੈਂਦਾ ਹੈ (ਤੇ ਸਮਝ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਕਿ) ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਪ ਹੀ (ਆਪਣੇ ਵਿਚ) ਲੀਨ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ (ਦੀ ਦਾਤਿ) ਗੁਰੂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਈ ਹੈ, ਤੂੰ ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਆ ਵੱਸਦਾ ਹੈਂ ਤੇ ਅੰਤ ਸਮੇ ਭੀ ਉਸ ਦਾ ਸਾਥੀ ਬਣਦਾ ਹੈਂ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਉਸ ਵਰਗਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ। (ਉਸ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰੋ ਤੇ ਆਖੋ-) ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਚ ਜੁੜਿਆਂ (ਲੋਕ ਪਰਲੋਕ ਵਿਚ) ਆਦਰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ॥੨॥ ਹੇ ਅਦ੍ਰਿਸ਼ਟ ਰਚਨਹਾਰ! ਤੂੰ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ ਤੇ ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਦਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈਂ। ਇਕੋ ਸਿਰਜਣਹਾਰ ਹੀ (ਸਾਰੇ ਜਗਤ ਦਾ) ਮਾਲਕ ਹੈ, ਉਸ ਨੇ (ਜੰਮਣਾ ਤੇ ਮਰਨਾ) ਦੋ ਰਸਤੇ ਚਲਾਏ ਹਨ। (ਉਸੇ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਅਨੁਸਾਰ ਜਗਤ ਵਿਚ) ਝਗੜੇ ਵਧਦੇ ਹਨ। ਦੋਵੇਂ ਰਸਤੇ ਪ੍ਰਭੂ ਨੇ ਹੀ ਤੋਰੇ ਹਨ, ਸਾਰੇ ਜੀਵ ਉਸੇ ਦੇ ਹੁਕਮ ਵਿਚ ਹਨ, (ਉਸੇ ਦੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ) ਜਗਤ ਜੰਮਦਾ ਤੇ ਮਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। (ਜੀਵ ਨਾਮ ਨੂੰ ਭੁਲਾ ਕੇ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਦਾ) ਜ਼ਹਰ-ਰੂਪ ਭਾਰ ਆਪਣੇ ਸਿਰ ਉਤੇ ਇਕੱਠਾ ਕਰੀ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, (ਤੇ ਇਹ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦਾ ਕਿ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਭੀ ਸਾਥੀ-ਮਿੱਤਰ ਨਹੀਂ ਬਣ ਸਕਦਾ। ਜੀਵ (ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ) ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ (ਜਗਤ ਵਿਚ) ਆਉਂਦਾ ਹੈ, (ਪਰ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਫਸ ਕੇ ਉਸ) ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਸਮਝਦਾ ਨਹੀਂ। ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਹੀ ਜੀਵ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ (ਸਿੱਧੇ ਰਾਹ ਪਾ ਕੇ) ਸਵਾਰਨ ਦੇ ਸਮਰਥ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਵਿਚ ਜੁੜਿਆਂ ਇਹ ਪਛਾਣ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਜਗਤ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ ਤੇ ਸਭ ਦਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈ ॥੩॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਬੰਦੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਵਿਚ ਸੋਭਦੇ ਹਨ, ਕਿਉਂਕਿ ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ ਉਹ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਸੋਹਣਾ ਬਣਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਉਹ ਬੰਦੇ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਬਾਣੀ ਆਪਣੀ ਜੀਭ ਨਾਲ ਉਚਾਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਜੀਵ ਨੂੰ ਉਸ ਬਾਣੀ ਨਾਲ ਇਕ-ਰਸ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਭਗਤ-ਜਨ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਜੀਭ ਨੂੰ ਰਸਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਨਾਮ ਵਿਚ ਜੁੜ ਕੇ (ਨਾਮ ਵਾਸਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ) ਪਿਆਸ ਵਧਦੀ ਹੈ, ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਉਹ ਪ੍ਰਭੂ-ਨਾਮ ਤੋਂ ਸਦਕੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ (ਨਾਮ ਦੀ ਖ਼ਾਤਰ ਹੋਰ ਸਭ ਸਰੀਰਕ ਸੁਖ ਕੁਰਬਾਨ ਕਰਦੇ ਹਨ)। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਜਦੋਂ (ਭਗਤ ਜਨ) ਤੇਰੇ ਮਨ ਵਿਚ ਪਿਆਰੇ ਲੱਗਦੇ ਹਨ, ਤਾਂ ਉਹ ਗੁਰੂ-ਪਾਰਸ ਨਾਲ ਛੁਹ ਕੇ ਆਪ ਭੀ ਪਾਰਸ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ (ਹੋਰਨਾਂ ਨੂੰ ਪਵਿਤ੍ਰ ਜੀਵਨ ਦੇਣ ਜੋਗੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ)। ਜੇਹੜੇ ਬੰਦੇ ਆਪਾ-ਭਾਵ ਦੂਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਉਹ ਆਤਮਕ ਦਰਜਾ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਥੇ ਆਤਮਕ ਮੌਤ ਅਸਰ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੀ। ਪਰ ਅਜੇਹਾ ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਹੀ ਗੁਰੂ ਦੇ ਦਿੱਤੇ ਗਿਆਨ ਦੀ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਬੰਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਬੰਦੇ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਸੋਭਾ ਪਾਂਦੇ ਹਨ, ਉਹ (ਆਪਣੇ ਸਾਰੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ) ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਨਾਮ ਦਾ ਹੀ ਵਣਜ ਕਰਦੇ ਹਨ ॥੪॥ ਜਦੋਂ ਤਕ ਮੈਂ ਮਾਇਆ ਵਾਸਤੇ ਭੁੱਖਾ ਪਿਆਸਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ, ਤਦ ਤਕ ਮੈਂ ਕਿਸੇ ਭੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਪਹੁੰਚ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ। (ਮਾਇਆ ਦੀ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੂਰ ਕਰਨ ਦਾ ਇਲਾਜ) ਮੈਂ ਜਾ ਕੇ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂ ਤੋਂ ਪੁੱਛਦਾ ਹਾਂ (ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਅਨੁਸਾਰ) ਮੈਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਦਾ ਹਾਂ (ਨਾਮ ਹੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ)। ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਪੈ ਕੇ ਮੈਂ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਨਾਮ ਸਿਮਰਦਾ ਹਾਂ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ (ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ) ਉਚਾਰਦਾ ਹਾਂ, ਤੇ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲ ਸਾਂਝ ਪਾਂਦਾ ਹਾਂ। ਮੈਂ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਉਸ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਨਾਮ ਮੂੰਹੋਂ ਬੋਲਦਾ ਹਾਂ ਜੋ ਦੀਨਾਂ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਹੈ ਜੋ ਦਇਆ ਦਾ ਸੋਮਾ ਹੈ ਤੇ ਜਿਸ ਉਤੇ ਮਾਇਆ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਹੀਂ ਪੈ ਸਕਦਾ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਤੋਂ ਹੀ ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਕਰਨ-ਜੋਗ ਕਾਰ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦੇ ਦਿੱਤਾ, ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ (ਮਾਇਆ ਵਲੋਂ) ਮਾਰ ਕੇ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਤੋਂ ਬਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਉਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਨਾਮ ਹੀ ਮਿੱਠਾ* *ਤੇ ਹੋਰ ਸਭ ਰਸਾਂ ਨਾਲੋਂ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਲੱਗਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੇ ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ ਮਾਇਆ ਦੀ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ (ਆਪਣੇ ਅੰਦਰੋਂ) ਦੂਰ ਕਰ ਲਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ॥੫॥੨॥
सोरठि महला ५ ॥ पुत्र कलत्र लोक ग्रिह बनिता माइआ सनबंधेही ॥ अंत की बार को खरा न होसी सभ मिथिआ असनेही ॥१॥ रे नर काहे पपोरहु देही ॥ ऊडि जाइगो धूमु बादरो इकु भाजहु रामु सनेही ॥ रहाउ ॥ तीनि संङिआ करि देही कीनी जल कूकर भसमेही ॥ होइ आमरो ग्रिह महि बैठा करण कारण बिसरोही ॥२॥ अनिक भाति करि मणीए साजे काचै तागि परोही ॥ तूटि जाइगो सूतु बापुरे फिरि पाछै पछुतोही ॥३॥ जिनि तुम सिरजे सिरजि सवारे तिसु धिआवहु दिनु रैनेही ॥ जन नानक प्रभ किरपा धारी मै सतिगुर ओट गहेही ॥४॥४॥
हे भाई! पुत्र, स्त्री, घर के अन्य मर्द और औरतें (सारे) माया के की रिश्ते हैं। आखिर समय (इनमे से) कोई भी तेरा मददगार नहीं बनेगा, सारे झूठा ही प्यार करने वाले हैं॥१॥ हे मनुख! (केवल इस) सरीर को ही क्यों लाड प्यार से पालता रहता है? (जैसे) धुंआ, (जैसे) बादल (उड़ जाता है, उसी प्रकार यह सरीर) नास हो जायेगा। सिर्फ परमात्मा का भजन करा कर, वोही असली प्यार करने वाला है॥रहाउ॥ हे भाई! (परमात्मा ने) माया के तीनो गुणों के असर में रहने वाला तेरा सरीर बना दिया है, (यह अंत को) पानी के, कुतों के, या मिटटी के हवाले हो जाता है। तू इस सरीर-घर में (अपने आप को) अमर समझ बैठा रहता है, और जगत के मूल परमात्मा को भुला रहा है॥२॥ हे भाई! अनेकों तरीकों से (परमात्मा ने तेरे सारे अंग) मणके बनाए हैं; (पर, साँसों के) कच्चे धागे में परोए हुए हैं। हे निमाणे जीव! ये धागा (आखिर) टूट जाएगा, (अब इस शरीर के मोह में प्रभू को बिसारे बैठा है) फिर समय बीत जाने पर हाथ मलेगा।3। हे भाई! जिस परमात्मा ने तुझे पैदा किया है, पैदा करके तुझे सुंदर बनाया है उसे दिन-रात (हर वक्त) सिमरते रहा कर। हे दास नानक! (अरदास कर और कह–) हे प्रभू! (मेरे पर) मेहर कर, मैं गुरू का आसरा पकड़े रखूँ।4।4।
ਅੰਗ : 609
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਲੋਕ ਗ੍ਰਿਹ ਬਨਿਤਾ ਮਾਇਆ ਸਨਬੰਧੇਹੀ ॥ ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਕੋ ਖਰਾ ਨ ਹੋਸੀ ਸਭ ਮਿਥਿਆ ਅਸਨੇਹੀ ॥੧॥ ਰੇ ਨਰ ਕਾਹੇ ਪਪੋਰਹੁ ਦੇਹੀ ॥ ਊਡਿ ਜਾਇਗੋ ਧੂਮੁ ਬਾਦਰੋ ਇਕੁ ਭਾਜਹੁ ਰਾਮੁ ਸਨੇਹੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਤੀਨਿ ਸੰਙਿਆ ਕਰਿ ਦੇਹੀ ਕੀਨੀ ਜਲ ਕੂਕਰ ਭਸਮੇਹੀ ॥ ਹੋਇ ਆਮਰੋ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਬੈਠਾ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਬਿਸਰੋਹੀ ॥੨॥ ਅਨਿਕ ਭਾਤਿ ਕਰਿ ਮਣੀਏ ਸਾਜੇ ਕਾਚੈ ਤਾਗਿ ਪਰੋਹੀ ॥ ਤੂਟਿ ਜਾਇਗੋ ਸੂਤੁ ਬਾਪੁਰੇ ਫਿਰਿ ਪਾਛੈ ਪਛੁਤੋਹੀ ॥੩॥ ਜਿਨਿ ਤੁਮ ਸਿਰਜੇ ਸਿਰਜਿ ਸਵਾਰੇ ਤਿਸੁ ਧਿਆਵਹੁ ਦਿਨੁ ਰੈਨੇਹੀ ॥ ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰ ਓਟ ਗਹੇਹੀ ॥੪॥੪॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਭਾਈ! ਪ੍ਰਤ੍ਰ, ਇਸਤ੍ਰੀ, ਘਰ ਦੇ ਹੋਰ ਬੰਦੇ ਤੇ ਜ਼ਨਾਨੀਆਂ (ਸਾਰੇ) ਮਾਇਆ ਦੇ ਹੀ ਸਾਕ ਹਨ। ਅਖ਼ੀਰ ਵੇਲੇ (ਇਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ) ਕੋਈ ਭੀ ਤੇਰਾ ਮਦਦਗਾਰ ਨਹੀਂ ਬਣੇਗਾ, ਸਾਰੇ ਝੂਠਾ ਹੀ ਪਿਆਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਹਨ ॥੧॥ ਹੇ ਮਨੁੱਖ! (ਨਿਰਾ ਇਸ) ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਹੀ ਕਿਉਂ ਲਾਡਾਂ ਨਾਲ ਪਾਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈਂ? (ਜਿਵੇਂ) ਧੂਆਂ, (ਜਿਵੇਂ) ਬੱਦਲ (ਉੱਡ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਤਿਵੇਂ ਇਹ ਸਰੀਰ) ਨਾਸ ਹੋ ਜਾਇਗਾ। ਸਿਰਫ਼ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਭਜਨ ਕਰਿਆ ਕਰ, ਉਹੀ ਅਸਲ ਪਿਆਰ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈ ॥ ਰਹਾਉ॥ ਹੇ ਭਾਈ! (ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ) ਮਾਇਆ ਦੇ ਤਿੰਨ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਅਸਰ ਹੇਠ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਤੇਰਾ ਸਰੀਰ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ, (ਇਹ ਅੰਤ ਨੂੰ) ਪਾਣੀ ਦੇ, ਕੁੱਤਿਆਂ ਦੇ, ਜਾਂ, ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਤੂੰ ਇਸ ਸਰੀਰ-ਘਰ ਵਿਚ (ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ) ਅਮਰ ਸਮਝ ਕੇ ਬੈਠਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈਂ, ਤੇ ਜਗਤ ਦੇ ਮੂਲ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ ਭੁਲਾ ਰਿਹਾ ਹੈਂ ॥੨॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਅਨੇਕਾਂ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ (ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਤੇਰੇ ਸਾਰੇ ਅੰਗ) ਮਣਕੇ ਬਣਾਏ ਹਨ; (ਪਰ ਸੁਆਸਾਂ ਦੇ) ਕੱਚੇ ਧਾਗੇ ਵਿਚ ਪਰੋਏ ਹੋਏ ਹਨ। ਹੇ ਨਿਮਾਣੇ ਜੀਵ! ਇਹ ਧਾਗਾ (ਆਖ਼ਰ) ਟੁੱਟ ਜਾਇਗਾ, (ਹੁਣ ਇਸ ਸਰੀਰ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਵਿਸਾਰੀ ਬੈਠਾ ਹੈਂ) ਫਿਰ ਸਮਾ ਵਿਹਾ ਜਾਣ ਤੇ ਹੱਥ ਮਲੇਂਗਾ।੩। ਹੇ ਭਾਈ! ਜਿਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਤੈਨੂੰ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਪੈਦਾ ਕਰ ਕੇ ਤੈਨੂੰ ਸੋਹਣਾ ਬਣਾਇਆ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਦਿਨ ਰਾਤ (ਹਰ ਵੇਲੇ) ਸਿਮਰਦਾ ਰਿਹਾ ਕਰ। ਹੇ ਦਾਸ ਨਾਨਕ! ਅਰਦਾਸ ਕਰ ਤੇ ਆਖ-) ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੇਰੇ ਉਤੇ) ਮੇਹਰ ਕਰ, ਮੈਂ ਗੁਰੂ ਦਾ ਆਸਰਾ ਫੜੀ ਰੱਖਾਂ।੪।੪।
तिलंग घरु २ महला ५ ॥ तुधु बिनु दूजा नाही कोइ ॥ तू करतारु करहि सो होइ ॥ तेरा जोरु तेरी मनि टेक ॥ सदा सदा जपि नानक एक ॥१॥ सभ ऊपरि पारब्रहमु दातारु ॥ तेरी टेक तेरा आधारु ॥ रहाउ ॥ है तूहै तू होवनहार ॥ अगम अगाधि ऊच आपार ॥ जो तुधु सेवहि तिन भउ दुखु नाहि ॥ गुर परसादि नानक गुण गाहि ॥२॥ जो दीसै सो तेरा रूपु ॥ गुण निधान गोविंद अनूप ॥ सिमरि सिमरि सिमरि जन सोइ ॥ नानक करमि परापति होइ ॥३॥ जिनि जपिआ तिस कउ बलिहार ॥ तिस कै संगि तरै संसार ॥ कहु नानक प्रभ लोचा पूरि ॥ संत जना की बाछउ धूरि ॥४॥२॥
अर्थ: हे प्रभू! तेरे बिना और कोई दूसरा कुछ कर सकने वाला नहीं है। तूँ सारे जगत को पैदा करने वाला हैं, जो कुछ तूँ करता हैं, वही होता है, (हम जीवों को) तेरी ही शक्ति है, (हमारे) मन में तेरा ही सहारा है। हे नानक जी! सदा ही उस एक परमात्मा का नाम जपते रहो ॥१॥ हे भाई! सब जीवों को दाताँ देने वाला परमात्मा सब जीवों के सिर ऊपर राखा है। हे प्रभू! (हम जीवों को) तेरा ही आसरा है, तेरा ही सहारा है ॥ रहाउ ॥ हे प्रभू! हर जगह हर समय तूँ ही तूँ मौजूद हैं, तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं। हे अपहुँच प्रभू! हे अथाह प्रभू! हे सब से ऊँचे और बेअंत प्रभू! जो मनुष्य तुम्हें याद करते हैं, उनको कोई डर कोई दुःख परेशान नहीं कर सकता। हे नानक जी! गुरू की कृपा से ही (मनुष्य परमात्मा के) गुण गा सकते हैं ॥२॥ हे प्रभू! (जगत में) जो कुछ दिखता है तेरा ही स्वरूप है, हे गुणों के ख़ज़ाने! हे सुंदर गोबिंद! (यह जगत तेरा ही रूप है) हे मनुष्य! सदा उस परमात्मा का सिमरन करते रहो। हे नानक जी! (परमात्मा का सिमरन) परमात्मा की कृपा से ही मिलता है ॥३॥ हे भाई! जिस मनुष्य ने परमात्मा का नाम जपा है, उस से कुर्बान होना चाहिए। उस मनुष्य की संगत में (रह कर) सारा जगत संसार-समुँद्र से पार निकल जाता है। नानक जी कहते हैं – हे प्रभू! मेरी इच्छा पूरी करो जी, मैं (तेरे दर से) तेरे संत जनों के चरणों की धूल माँगता हूँ ॥४॥२॥
ਅੰਗ : 723
ਤਿਲੰਗ ਘਰੁ ੨ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ ਤੂ ਕਰਤਾਰੁ ਕਰਹਿ ਸੋ ਹੋਇ ॥ ਤੇਰਾ ਜੋਰੁ ਤੇਰੀ ਮਨਿ ਟੇਕ ॥ ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਏਕ ॥੧॥ ਸਭ ਊਪਰਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਦਾਤਾਰੁ ॥ ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਤੇਰਾ ਆਧਾਰੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹੈ ਤੂਹੈ ਤੂ ਹੋਵਨਹਾਰ ॥ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਊਚ ਆਪਾਰ ॥ ਜੋ ਤੁਧੁ ਸੇਵਹਿ ਤਿਨ ਭਉ ਦੁਖੁ ਨਾਹਿ ॥ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਹਿ ॥੨॥ ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਤੇਰਾ ਰੂਪੁ ॥ ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਗੋਵਿੰਦ ਅਨੂਪ ॥ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਜਨ ਸੋਇ ॥ ਨਾਨਕ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੩॥ ਜਿਨਿ ਜਪਿਆ ਤਿਸ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰ ॥ ਤਿਸ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਰੈ ਸੰਸਾਰ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਲੋਚਾ ਪੂਰਿ ॥ ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੀ ਬਾਛਉ ਧੂਰਿ ॥੪॥੨॥
ਅਰਥ: ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੈਥੋਂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਦੂਜਾ ਕੁਝ ਕਰ ਸਕਣ ਵਾਲਾ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਤੂੰ ਸਾਰੇ ਜਗਤ ਦਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈਂ, ਜੋ ਕੁਝ ਤੂੰ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਉਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, (ਅਸਾਂ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ) ਤੇਰਾ ਹੀ ਤਾਣ ਹੈ, (ਸਾਡੇ) ਮਨ ਵਿਚ ਤੇਰਾ ਹੀ ਸਹਾਰਾ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਸਦਾ ਹੀ ਉਸ ਇਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਜਪਦਾ ਰਹੁ ॥੧॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਦਾਤਾਂ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਪਰਮਾਤਮਾ ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਸਿਰ ਉਤੇ ਰਾਖਾ ਹੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! (ਅਸਾਂ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ) ਤੇਰਾ ਹੀ ਆਸਰਾ ਹੈ, ਤੇਰਾ ਹੀ ਸਹਾਰਾ ਹੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਹਰ ਥਾਂ ਹਰ ਵੇਲੇ ਤੂੰ ਹੀ ਤੂੰ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਹੀ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ। ਹੇ ਅਪਹੁੰਚ ਪ੍ਰਭੂ! ਹੇ ਅਥਾਹ ਪ੍ਰਭੂ! ਹੇ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚੇ ਤੇ ਬੇਅੰਤ ਪ੍ਰਭੂ! ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਤੈਨੂੰ ਸਿਮਰਦੇ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕੋਈ ਡਰ ਕੋਈ ਦੁੱਖ ਪੋਹ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਹੀ (ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ) ਗੁਣ ਗਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ॥੨॥ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! (ਜਗਤ ਵਿਚ) ਜੋ ਕੁਝ ਦਿੱਸਦਾ ਹੈ ਤੇਰਾ ਹੀ ਸਰੂਪ ਹੈ, ਹੇ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ! ਹੇ ਸੋਹਣੇ ਗੋਬਿੰਦ! (ਇਹ ਜਗਤ ਤੇਰਾ ਹੀ ਰੂਪ ਹੈ) ਹੇ ਮਨੁੱਖ! ਸਦਾ ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਦਾ ਰਹੁ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! (ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਸਿਮਰਨ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਹੀ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ॥੩॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਜਪਿਆ ਹੈ, ਉਸ ਤੋਂ ਕੁਰਬਾਨ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸੰਗਤਿ ਵਿਚ (ਰਹਿ ਕੇ) ਸਾਰਾ ਜਗਤ ਸੰਸਾਰ-ਸਮੁੰਦਰ ਤੋਂ ਪਾਰ ਲੰਘ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਨਾਨਕ ਜੀ ਆਖਦੇ ਹਨ – ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੇਰੀ ਤਾਂਘ ਪੂਰੀ ਕਰੋ ਜੀ, ਮੈਂ (ਤੇਰੇ ਦਰ ਤੋਂ) ਤੇਰੇ ਸੰਤ ਜਨਾਂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਦੀ ਧੂੜ ਮੰਗਦਾ ਹਾਂ ॥੪॥੨॥
सोरठि महला ५ ॥ सतिगुर पूरे भाणा ॥ ता जपिआ नामु रमाणा ॥ गोबिंद किरपा धारी ॥ प्रभि राखी पैज हमारी ॥१॥ हरि के चरन सदा सुखदाई ॥ जो इछहि सोई फलु पावहि बिरथी आस न जाई ॥१॥ रहाउ ॥ क्रिपा करे जिसु प्रानपति दाता सोई संतु गुण गावै ॥ प्रेम भगति ता का मनु लीणा पारब्रहम मनि भावै ॥२॥ आठ पहर हरि का जसु रवणा बिखै ठगउरी लाथी ॥ संगि मिलाइ लीआ मेरै करतै संत साध भए साथी ॥३॥ करु गहि लीने सरबसु दीने आपहि आपु मिलाइआ ॥ कहु नानक सरब थोक पूरन पूरा सतिगुरु पाइआ ॥४॥१५॥७९॥
अर्थ :- (हे भाई!) जब गुरू को अच्छा लगता है जब गुरू प्रसन्न होता है) तब ही परमात्मा का नाम जपा जा सकता है। परमात्मा ने मेहर की (गुरू मिलाया! गुरू की कृपा से हमने नाम जपा, तब) परमात्मा ने हमारी लाज रख ली (हमें ठगने से बचा लिया) ॥१॥ हे भाई! परमात्मा के चरण सदा सुख देने वाले हैं। (जो मनुष्य हरी-चरणों का सहारा लेते हैं, वह) जो कुछ (परमात्मा से) मांगते हैं वही फल प्राप्त कर लेते हैं। (परमात्मा के ऊपर रखी हुई कोई भी) आस व्यर्थ नहीं जाती ॥१॥ रहाउ ॥ हे भाई! जीवन का मालिक दातार प्रभू जिस मनुष्य पर मेहर करता है वह संत (स्वभाव बन जाता है, और) परमात्मा की सिफ़त-सलाह के गीत गाता है। उस मनुष्य का मन परमात्मा की प्यार-भरी भक्ति में मस्त हो जाता है, वह मनुष्य परमात्मा के मन को प्यारा लगने लग जाता है ॥२॥ हे भाई! आठों पहर (हर समय) परमात्मा की सिफ़त-सलाह करने से विकारों की ठग-बूटी का ज़ोर खत्म हो जाता है। (जिस भी मनुष्य ने परमात्मा की सिफ़त-सलाह में मन जोड़ा) करतार ने (उस को) अपने साथ मिला लिया, संत जन उस के संगी-साथी बन गए ॥३॥ (हे भाई! गुरू की श़रण पड़ कर जिस भी मनुष्य ने प्रभू-चरणों का अराधन किया) प्रभू ने उस का हाथ पकड़ कर उस को सब कुछ बख़्श़ दिया, प्रभू ने उस को अपना आप ही मिला दिया। नानक जी कहते हैं – जिस मनुष्य को पूरा गुरू मिल गया, उस के सभी कार्य सफल हो गए ॥४॥१५॥७९॥
ਅੰਗ : 628
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਰੇ ਭਾਣਾ ॥ ਤਾ ਜਪਿਆ ਨਾਮੁ ਰਮਾਣਾ ॥ ਗੋਬਿੰਦ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥ ਪ੍ਰਭਿ ਰਾਖੀ ਪੈਜ ਹਮਾਰੀ ॥੧॥ ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਨ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਈ ॥ ਜੋ ਇਛਹਿ ਸੋਈ ਫਲੁ ਪਾਵਹਿ ਬਿਰਥੀ ਆਸ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਦਾਤਾ ਸੋਈ ਸੰਤੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਤਾ ਕਾ ਮਨੁ ਲੀਣਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥੨॥ ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਕਾ ਜਸੁ ਰਵਣਾ ਬਿਖੈ ਠਗਉਰੀ ਲਾਥੀ ॥ ਸੰਗਿ ਮਿਲਾਇ ਲੀਆ ਮੇਰੈ ਕਰਤੈ ਸੰਤ ਸਾਧ ਭਏ ਸਾਥੀ ॥੩॥ ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੀਨੇ ਸਰਬਸੁ ਦੀਨੇ ਆਪਹਿ ਆਪੁ ਮਿਲਾਇਆ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਰਬ ਥੋਕ ਪੂਰਨ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੧੫॥੭੯॥
ਅਰਥ: (ਹੇ ਭਾਈ!) ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਚੰਗਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਤ੍ਰੁੱਠਦਾ ਹੈ) ਤਦੋਂ ਹੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਜਪਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਮੇਹਰ ਕੀਤੀ (ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਇਆ! ਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਅਸਾਂ ਨਾਮ ਜਪਿਆ, ਤਾਂ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਸਾਡੀ ਲਾਜ ਰੱਖ ਲਈ (ਬਿਖੈ ਠਗਉਰੀ ਤੋਂ ਬਚਾ ਲਿਆ) ॥੧॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਚਰਨ ਸਦਾ ਸੁਖ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਹਨ। (ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਹਰਿ-ਚਰਨਾਂ ਦਾ ਆਸਰਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਉਹ) ਜੋ ਕੁਝ (ਪਰਮਾਤਮਾ ਪਾਸੋਂ) ਮੰਗਦੇ ਹਨ ਉਹੀ ਫਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। (ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਹੈਤਾ ਉਤੇ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਕੋਈ ਭੀ) ਆਸ ਖ਼ਾਲੀ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਜੀਵਨ ਦਾ ਮਾਲਕ ਦਾਤਾਰ ਪ੍ਰਭੂ ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਉਤੇ ਮੇਹਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਹ ਸੰਤ (ਸੁਭਾਉ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਤੇ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਦੇ ਗੀਤ ਗਾਂਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਮਨ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਪਿਆਰ-ਭਰੀ ਭਗਤੀ ਵਿਚ ਮਸਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਪਿਆਰਾ ਲੱਗਣ ਲੱਗ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ॥੨॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਅੱਠੇ ਪਹਿਰ (ਹਰ ਵੇਲੇ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਨ ਨਾਲ ਵਿਕਾਰਾਂ ਦੀ ਠਗ-ਬੂਟੀ ਦਾ ਜ਼ੋਰ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। (ਜਿਸ ਭੀ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਵਿਚ ਮਨ ਜੋੜਿਆ) ਕਰਤਾਰ ਨੇ (ਉਸ ਨੂੰ) ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾ ਲਿਆ, ਸੰਤ ਜਨ ਉਸ ਦੇ ਸੰਗੀ-ਸਾਥੀ ਬਣ ਗਏ ॥੩॥ (ਹੇ ਭਾਈ! ਗੁਰੂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਪੈ ਕੇ ਜਿਸ ਭੀ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਪ੍ਰਭੂ-ਚਰਨਾਂ ਦਾ ਆਰਾਧਨ ਕੀਤਾ) ਪ੍ਰਭੂ ਨੇ ਉਸ ਦਾ ਹੱਥ ਫੜ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਭ ਕੁਝ ਬਖ਼ਸ਼ ਦਿੱਤਾ, ਪ੍ਰਭੂ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਆਪ ਹੀ ਮਿਲਾ ਦਿੱਤਾ। ਨਾਨਕ ਜੀ ਆਖਦੇ ਹਨ – ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਗੁਰੂ ਮਿਲ ਪਿਆ, ਉਸ ਦੇ ਸਾਰੇ ਕੰਮ ਸਫਲ ਹੋ ਗਏ ॥੪॥੧੫॥੭੯॥
30 ਅਪ੍ਰੈਲ, ਸਾਹਿਬ ਸ਼੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ
ਦੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪੁਰਬ ਦੀਆਂ ਸਰਬੱਤ ਸੰਗਤਾਂ ਨੂੰ
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सलोकु मः ३ ॥ पूरबि लिखिआ कमावणा जि करतै आपि लिखिआसु ॥ मोह ठगउली पाईअनु विसरिआ गुणतासु ॥ मतु जाणहु जगु जीवदा दूजै भाइ मुइआसु ॥ जिनी गुरमुखि नामु न चेतिओ से बहणि न मिलनी पासि ॥ दुखु लागा बहु अति घणा पुतु कलतु न साथि कोई जासि ॥ लोका विचि मुहु काला होआ अंदरि उभे सास ॥ मनमुखा नो को न विसही चुकि गइआ वेसासु ॥ नानक गुरमुखा नो सुखु अगला जिना अंतरि नाम निवासु ॥१॥ मः ३ ॥ से सैण से सजणा जि गुरमुखि मिलहि सुभाइ ॥ सतिगुर का भाणा अनदिनु करहि से सचि रहे समाइ ॥ दूजै भाइ लगे सजण न आखीअहि जि अभिमानु करहि वेकार ॥ मनमुख आप सुआरथी कारजु न सकहि सवारि ॥ नानक पूरबि लिखिआ कमावणा कोइ न मेटणहारु ॥२॥ पउड़ी ॥ तुधु आपे जगतु उपाइ कै आपि खेलु रचाइआ ॥ त्रै गुण आपि सिरजिआ माइआ मोहु वधाइआ ॥ विचि हउमै लेखा मंगीऐ फिरि आवै जाइआ ॥ जिना हरि आपि क्रिपा करे से गुरि समझाइआ ॥ बलिहारी गुर आपणे सदा सदा घुमाइआ ॥३॥
अर्थ: (पूर्व किए कर्मो अनुसार) आरम्भ से जो (संसार-रूप लेख) लिखा (भाव-लिखा) हुआ है और जो करतार ने आप लिख दिया है वह (जरूर) कमाना पड़ता है; (उस लेख अनुसार ही) मोह की ठगबूटी (जिस को) मिल गयी है उस को गुणों का खज़ाना हरी विसर गया है। (उस) संसार को जीवित न समझो (जो) माया के मोह मे मुर्दा पड़ा है, जिन्होंने सतगुरु के सनमुख हो कर नाम नहीं सिमरा, उनको प्रभु पास बैठना नहीं मिलता। वह मनमुख बहुत ही दुखी होते हैं, (क्योंकि जिन की खातिर माया के मोह में मुर्दा पड़े थे, वह) पुत्र स्त्री तो कोई साथ नहीं जाएगा, संसार के लोगों में भी उनका मुख काला हुआ (भाव, शर्मिंदा हुए) और रोते रहे, मनमुख का कोई विसाह नहीं करता, उनका इतबार खत्म हो जाता है। हे नानक जी! गुरमुखों को बहुत सुख होता है क्योंकि उनके हृदय में नाम का निवास होता है ॥१॥ सतिगुरु के सनमुख हुए जो मनुष्य (आपा भुला कर प्रभू में सुभावक ही) लीन हो जाते हैं वह भले लोग हैं और (हमारे) मित्र हैं; जो सदा सतिगुरू का हुक्म मानते है, वह सच्चे हरी में समाए रहते हैं। उन को संत जन नहीं कहते जो माया के मोह में लग कर अंहकार और विकार करते हैं। मनमुख अपने मतलब के प्यारे (होन कर के) किसे का काम नहीं सवार सकते; (पर) हे नानक जी! (उन के सिर क्या दोष ?) (पुर्व किए कार्य अनुसार) आरम्भ से लिखा हुआ (संस्कार-रूप लेख) कमाना पड़ता है, कोई मिटाने-योग नहीं ॥२॥ हे हरी! तूँ आप ही संसार रच कर आप ही खेल बनाई है; तूँ आप ही (माया के) तीन गुण बनाए हैं और आप ही माया का मोह (जगत में) अधिक कर दिया है। (इस मोह से पैदा) अंहकार में (लगने से) (दरगाह में) लेखा मांगते हैं और फिर जम्मना मरना पड़ता है; जिन पर हरी आप कृपा करता है उन को सतिगुरू ने (यह) समझ दे दी है। (इस लिए) मैं अपने सतिगुरू से सदके जाता हूँ और सदा बलिहारे जाता हूँ ॥३॥
ਅੰਗ : 643
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਕਮਾਵਣਾ ਜਿ ਕਰਤੈ ਆਪਿ ਲਿਖਿਆਸੁ ॥ ਮੋਹ ਠਗਉਲੀ ਪਾਈਅਨੁ ਵਿਸਰਿਆ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥ ਮਤੁ ਜਾਣਹੁ ਜਗੁ ਜੀਵਦਾ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਮੁਇਆਸੁ ॥ ਜਿਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਿਓ ਸੇ ਬਹਿਣ ਨ ਮਿਲਨੀ ਪਾਸਿ ॥ ਦੁਖੁ ਲਾਗਾ ਬਹੁ ਅਤਿ ਘਣਾ ਪੁਤੁ ਕਲਤੁ ਨ ਸਾਥਿ ਕੋਈ ਜਾਸਿ ॥ ਲੋਕਾ ਵਿਚਿ ਮੁਹੁ ਕਾਲਾ ਹੋਆ ਅੰਦਰਿ ਉਭੇ ਸਾਸ ॥ ਮਨਮੁਖਾ ਨੋ ਕੋ ਨ ਵਿਸਹੀ ਚੁਕਿ ਗਇਆ ਵੇਸਾਸੁ ॥ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਾ ਨੋ ਸੁਖੁ ਅਗਲਾ ਜਿਨਾ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮ ਨਿਵਾਸੁ ॥੧॥ ਮਃ ੩ ॥ ਸੇ ਸੈਣ ਸੇ ਸਜਣਾ ਜਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲਹਿ ਸੁਭਾਇ ॥ ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਭਾਣਾ ਅਨਦਿਨੁ ਕਰਹਿ ਸੇ ਸਚਿ ਰਹੇ ਸਮਾਇ ॥ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਲਗੇ ਸਜਣ ਨ ਆਖੀਅਹਿ ਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਕਰਹਿ ਵੇਕਾਰ ॥ ਮਨਮੁਖ ਆਪ ਸੁਆਰਥੀ ਕਾਰਜੁ ਨ ਸਕਹਿ ਸਵਾਰਿ ॥ ਨਾਨਕ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਕਮਾਵਣਾ ਕੋਇ ਨ ਮੇਟਣਹਾਰੁ ॥੨॥ ਪਉੜੀ ॥ ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇ ਕੈ ਆਪਿ ਖੇਲੁ ਰਚਾਇਆ ॥ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਆਪਿ ਸਿਰਜਿਆ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਵਧਾਇਆ ॥ ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਲੇਖਾ ਮੰਗੀਅੈ ਫਿਰਿ ਆਵੈ ਜਾਇਆ ॥ ਜਿਨਾ ਹਰਿ ਆਪਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਸੇ ਗੁਰਿ ਸਮਝਾਇਆ ॥ ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਸਦਾ ਸਦਾ ਘੁਮਾਇਆ ॥੩॥
ਅਰਥ: (ਪਿਛਲੇ ਕੀਤੇ ਕਰਮਾਂ ਅਨੁਸਾਰ) ਮੁੱਢ ਤੋਂ ਜੋ (ਸੰਸਕਾਰ-ਰੂਪ ਲੇਖ) ਲਿਖਿਆ (ਭਾਵ, ਉੱਕਰਿਆ) ਹੋਇਆ ਹੈ ਤੇ ਜੋ ਕਰਤਾਰ ਨੇ ਆਪ ਲਿਖ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਉਹ (ਜ਼ਰੂਰ) ਕਮਾਉਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ; (ਉਸ ਲੇਖ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ) ਮੋਹ ਦੀ ਠਗਬੂਟੀ (ਜਿਸ ਨੂੰ) ਮਿਲ ਗਈ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਣਾਂ ਦਾ ਖ਼ਜ਼ਾਨਾ ਹਰੀ ਵਿੱਸਰ ਗਿਆ ਹੈ। (ਉਸ) ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਜੀਊਂਦਾ ਨਾ ਸਮਝੋ (ਜੋ) ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਮੁਇਆ ਪਿਆ ਹੈ; ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੇ ਸਨਮੁਖ ਹੋ ਕੇ ਨਾਮ ਨਹੀਂ ਸਿਮਰਿਆ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਕੋਲ ਬਹਿਣਾ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ। ਉਹ ਮਨਮੁਖ ਬਹੁਤ ਹੀ ਦੁੱਖੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, (ਕਿਉਂਕਿ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਖ਼ਾਤਰ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਮੁਏ ਪਏ ਸਨ, ਉਹ) ਪੁੱਤ੍ਰ ਇਸਤ੍ਰੀ ਤਾਂ ਕੋਈ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਜਾਏਗਾ; ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਭੀ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਮੂੰਹ ਕਾਲਾ ਹੋਇਆ (ਭਾਵ, ਸ਼ਰਮਿੰਦੇ ਹੋਏ) ਤੇ ਹਾਹੁਕੇ ਲੈਂਦੇ ਹਨ; ਮਨਮੁਖਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਵਿਸਾਹ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ, ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਇਤਬਾਰ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਗੁਰਮੁਖਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸੁਖ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਨਾਮ ਦਾ ਨਿਵਾਸ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ॥੧॥ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੇ ਸਨਮੁਖ ਹੋਏ ਜੋ ਮਨੁੱਖ (ਆਪਾ ਨਿਵਾਰ ਕੇ ਪ੍ਰਭੂ ਵਿਚ ਸੁਭਾਵਿਕ ਹੀ) ਲੀਨ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਉਹ ਭਲੇ ਲੋਕ ਹਨ ਤੇ (ਸਾਡੇ) ਸਾਥੀ ਹਨ; ਜੋ ਸਦਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦਾ ਭਾਣਾ ਮੰਨਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਸੱਚੇ ਹਰੀ ਵਿਚ ਸਮਾਏ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ ਜਨ ਨਹੀਂ ਆਖੀਦਾ ਜੋ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਅਹੰਕਾਰ ਤੇ ਵਿਕਾਰ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਮਨਮੁਖ ਆਪਣੇ ਮਤਲਬ ਦੇ ਪਿਆਰੇ (ਹੋਣ ਕਰ ਕੇ) ਕਿਸੇ ਦਾ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਸਵਾਰ ਸਕਦੇ; (ਪਰ) ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! (ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਸਿਰ ਕੀਹ ਦੋਸ਼ ?) (ਪਿਛਲੇ ਕੀਤੇ ਕੰਮਾਂ ਅਨੁਸਾਰ) ਮੁੱਢ ਤੋਂ ਉੱਕਰਿਆ ਹੋਇਆ (ਸੰਸਕਾਰ-ਰੂਪ ਲੇਖ) ਕਮਾਉਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਮਿਟਾਉਣ-ਜੋਗਾ ਨਹੀਂ ॥੨॥ ਹੇ ਹਰੀ! ਤੂੰ ਆਪ ਹੀ ਸੰਸਾਰ ਰਚ ਕੇ ਆਪ ਹੀ ਖੇਡ ਬਣਾਈ ਹੈ; ਤੂੰ ਆਪ ਹੀ (ਮਾਇਆ ਦੇ) ਤਿੰਨ ਗੁਣ ਬਣਾਏ ਹਨ ਤੇ ਆਪ ਹੀ ਮਾਇਆ ਦਾ ਮੋਹ (ਜਗਤ ਵਿਚ) ਵਧਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। (ਇਸ ਮੋਹ ਤੋਂ ਉਪਜੇ) ਅਹੰਕਾਰ ਵਿਚ (ਲੱਗਿਆਂ) (ਦਰਗਾਹ ਵਿਚ) ਲੇਖਾ ਮੰਗੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਫਿਰ ਜੰਮਣਾ ਮਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੇ ਹਰੀ ਆਪ ਮੇਹਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਗੁਰੂ ਨੇ (ਇਹ) ਸਮਝ ਪਾ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। (ਇਸ ਕਰਕੇ) ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਤੋਂ ਸਦਕੇ ਹਾਂ ਤੇ ਸਦਾ ਵਾਰਨੇ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ ॥੩॥